चौटाला, उद्धव के बाद नीतीश भी

Publsihed: 06.Oct.2020, 20:58

अजय सेतिया / चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अपनी पार्टी को दोफाड़ कर लिया | उन की पार्टी लोजपा बिहार में एनडीए के खिलाफ चुनाव लड़ेगी , लेकिन दिल्ली में रामविलास पासवान की केन्द्रीय मंत्री की कुर्सी बचाए रखने के लिए एनडीए में रहेगी | शिवसेना और अकाली दल के मंत्रिमंडल से निकल जाने के बाद नरेंद्र मोदी खुद से पासवान को हटाने की स्थिति में नहीं हैं | पासवान का मंत्रिमंडल में बना रहना ही बिहार में एनडीए की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा है | वैसे पासवान इस तरह के काम करते रहते हैं , 2005 के चुनाव में यूपीए सरकार में मंत्री होते हुए उन्होंने अकेले चुनाव लड कर यूपीए को नुक्सान पहुंचाया था |

चिराग के इस बयान ने एनडीए का खेल बिगाड़ने के लिए मीडिया को अच्छा खासा मसाला दे दिया है  कि वह केंद्र में एनडीए में ही रहेंगे , लेकिन बाद में भाजपा की सरकार बनवाएंगे | चिराग पासवान की मोदी को लिखी गई चिठ्ठी और अमित शाह से हुई मुलाक़ात ने इस धारणा को मजबूत करने में मीडिया की मदद की कि वह भाजपा की रणनीति से ही अकेले चुनाव लड रहे हैं , ताकि चुनावों में जनता दल यू को हरा कर उन की सीटें कम करवाई जाएं , जिस से बाद में भाजपा का मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ़ हो सके | मीडिया के ताबड़तोड़ विश्लेष्ण ने नीतीश कुमार की नींद हराम कर दी , लेकिन खुद को मुख्यमंत्री घोषित करवाने के लिए नीतीश कुमार को सीटों पर समझौता करना ही पड़ा | 

सीटों के बंटवारे का एलान होने से पहले पटना के भाजपा कार्यालय में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने एलान किया कि बिहार में एनडीए के नेता नीतीश कुमार ही हैं , भाजपा की सीटें ज्यादा आई तो भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे | त्रिशंकू नतीजों का चिराग पासवान का सपना तोड़ते हुए जायसवाल ने कहा कि एनडीए तीन-चौथाई बहुमत से जीतेगा और एनडीए गठबंधन में वही रहेंगे जो नीतीश कुमार के नेतृत्व को बिहार में स्वीकार करते हैं | स्वाभाविक है कि चिराग की रणनीति से गलत संदेश जाने के कारण भाजपा को तुरंत सफाई देनी पड़ी | बाद में एनडीए की साझा प्रेस कांफ्रेंस में सीट बंटवारे का एलान चौंकाने वाला था | सुशील मोदी ने देवेन्द्र फडनवीस और भूपेन्द्र यादव की मौजूदगी में हूँ-ब-हूँ वही दोहराया जो संजय जायसवाल ने कहा था , लेकिन चौकाने वाली बात यह थी कि नीतीश कुमार के बड़े भाई वाली भूमिका खत्म हो गई है |

हरियाणा में चौटाला (भालोद) के छोटे भाई की भूमिका और महाराष्ट्र में बाला साहब ठाकरे की शिवसेना के छोटे भाई की भूमिका से बाहर निकलने के बाद अब बिहार में भी नीतीश कुमार के जदयू के छोटे भाई की भूमिका से मुक्ति | यह अंदेशा तो पहले से ही था कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता में कमी और मोदी की लोकप्रियता बरकरार रहने का फायदा भाजपा को होगा , लेकिन बराबर की सीटें लड़ने और जदयू के सामने लोजपा के उम्मीन्द्वार खड़े होने से साफ़ है कि भाजपा नम्बर एक की पार्टी बन कर उभरेगी , इस लिए सुशील मोदी ने कहा कि भाजपा की ज्यादा सीटें आई तो भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे | 2015 के चुनाव में जब नीतीश कुमार ने राजग को छोड़ यूपीए के साथ मिलकर चुनाव लडा था , तो यही एलान लालू यादव ने भी किया था और ज्यादा सीटें (81)आने के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (71) को ही बनाया था |

2005 के चुनाव में जदयू 139 लड़ कर 88 और भाजपा 102 लड़ कर 55 सीटें जीती थी , 2010 में जदयू 141 लड़ कर 111 और भाजपा 102 पर लड़ कर 91 जीत गई थीं | 2015 में नीतीश एनडीए से बाहर हुए तो जदयू 101 सीटें लड़ कर 71 जीती , जबकि भाजपा 200 सीटें लड़ कर सिर्फ 53 जीती थी | जबकि इस बार जदयू 115 और भाजपा 121 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि 7 सीटों पर जीतन राम माझी की पार्टी चुनाव लड़ेगी | लोजपा हर बार नया प्रयोग करती रही है , 2005 में अकेले, 2010 में लालू यादव के साथ , 2015 में एनडीए के साथ और अब फिर अकेले |  2015 में भाजपा ने लोजपा को 42 सीटें दी थीं , लेकिन जीती सिर्फ 2 , अब पहली बार रामविलास की छत्रछाया से निकल कर चिराग पासवान के युवा नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी | रामविलास के नेतृत्व में लोजपा अकेले चुनाव लड कर 2005 में सर्वाधिक 29 सीटें जीती थीं , जो कुछ महीने बाद ही हुए मध्यवधि चुनावों में घट कर 10 रह गई थी | इस बार भी जीतेगी तो दस से कम ही , लेकिन जदयू के वोट काटकर भाजपा को सब से बड़ी पार्टी बनाने में अहम भूमिका जरुर निभाएगी |

 

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