अजय सेतिया / राम विलास पासवान को राजनीतिक मौसम का थर्मामीटर और मौसम विज्ञानी कहा जाता है | इसी लिए 2005 में केंद्र में मंत्री होने के बावजूद फरवरी 2005 का बिहार विधानसभा चुनाव राजद-कांग्रेस के साथ गठबंधन में नहीं लडे | क्योंकि वह केंद्र में मंत्री थे , इस लिए राजग में शामिल हो कर चुनाव लड़ना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना होता | अपने मंत्री पद को सुरक्षित रखते हुए पासवान ने अकेले चुनाव लडा | राज्य की 243 सीटों में से 203 सीटों पर चुनाव लड़ कर लोजपा ने 29 सीटें जीत लीं थीं , जबकि कांग्रेस सिर्फ 10 सीटें जीती थी | लालू यादव की राजद ने सर्वाधिक 75 सीटें जीती थी ,लालू यादव और पासवान दोनों ही उस समय मनमोहन सरकार में मंत्री थे , पासवान अगर लालू यादव का समर्थन कर देते तो वह मुख्यमंत्री बन जाते | पासवान अगर नीतीश कुमार का समर्थन कर देते तो वह भी मुख्यमंत्री बन सकते थे | सत्ता की चाबी उन के पास थी और उन्होंने दोनों के सामने मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की शर्त रख कर सरकार ही नहीं बनने दी | राज्यपाल बूटा सिंह ने किसी को न्योता ही नहीं दे कर विधानसभा भंग कर दी थी , जिस के लिए बाद में उन्हें सुप्रीमकोर्ट से फटकार भी मिली थी |
खैर अक्टूबर-नवम्बर 2005 में दुबारा चुनाव हुए तो भाजपा- जदयू की सीटों में 51 सीटों का उछाल हुआ और गठबंधन की सरकार बन गई | रामविलास पासवान की लोजपा 29 से 10 पर आ कर अटक गई थी और राजद 75 से 54 पर | सरकार में आते ही नीतीश कुमार ने रामविलास पासवान से हिसाब चुकता करना शुरू कर दिया था | नीतीश सरकार ने बिहार में महादलित कैटेगरी बनाई, जिसमें पांच प्रतिशत वोट वाली पासवान जाति को छोड़ कर बाकी सभी दलित जातियों को शामिल किया गया था | सरकार में ज्यादातर योजनाएं महादलितों के लिए बनाई गई , जिससे पासवान जाति के लोग दलित होने के बावजूद इसका लाभ नहीं ले पा रहे थे | इसके बाद 2016 में जब नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर दोबारा सरकार बनाई तो एनडीए में होने के बावजूद लोजपा को सरकार में शामिल नहीं किया | इस तरह नीतीश कुमार और राम विलास पासवान का झगड़ा बना रहा है |
अब रामविलास पासवान दिल के आपरेशन के चलते अस्पताल में हैं और पार्टी की बागडौर उन के बेटे चिराग पासवान के हाथ में है , उन्होंने रविवार को पार्टी की संसदीय दल की बैठक के बाद एलान किया कि लोजपा बिहार में एनडीए के पार्टनर के तौर पर चुनाव नहीं लड़ेगी , लेकिन केंद्र में एनडीए का हिस्सा बनी रहेगी | हालांकि यह एलान अप्रत्याशित नहीं है , 15 सितम्बर को प्रधानमंत्री मोदी को लिखी चिठ्ठी में और 16 सितम्बर को लोजपा संसदीय पार्टी की बैठक में विधानसभा की 143 सीटों पर चुनाव लड़ने का इशारा वह पहले ही कर चुके थे | इतना ही नहीं , बल्कि चिराग पासवान ने यह भी कहा है कि चुनाव बाद भाजपा-लोजपा की साझा सरकार बनेगी | यानी नीतीश कुमार की जदयू को सत्ता से बाहर कर दिया जाएगा | बिहार इस तरह का सबक पहले भी सिखाता रहा है , नीतीश कुमार ने 2015 का चुनाव लालू यादव और कांग्रेस के साथ मिल कर लडा था, और कुछ महीने बाद ही राजद को बाहर निकाल कर भाजपा के साथ सरकार बना ली थी | महाराष्ट्र में शिवसेना ने चुनाव नतीजे आने के तुरंत बाद ऐसा किया , जब उन्होंने भाजपा को किनारे कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिल कर सरकार बना ली , अब वही बिहार में दोहराने की भविश्यवाणी चिराग पासवान ने की है |
नीतीश और भाजपा में दरार पैदा करने का यह सब से बड़ा मौक़ा है, इसलिए इस तरह की खबरें उछाली जा रही हैं कि चिराग पासवान ने यह रणनीति अमित शाह के इशारे पर बनाई है ताकि जदयू विधानसभा में कम सीटें जीते और भाजपा के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ़ हो | वैसे भी कोरोना में अव्यवस्था के चलते नीतीश कुमार की लोकप्रियता में कमी आई है , जबकि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं है , भाजपा नीतीश कुमार की लीडरशिप में चुनाव लड़ने के बावजूद मोदी के नाम पर चुनाव लड़ेगी | पासवान की लोजपा वोट कटुआ पार्टी बन कर जदयू को हरवाएगी , जबकि उन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी , जहां भाजपा के उम्मीन्द्वार होंगे | बिहार में राजद से बाहर और दिल्ली में राजद के साथ होने पर कांग्रेस ने चिराग पासवान को अपने पिता से भी बड़ा राजनीतिक मौसम विज्ञानी घोषित किया है |
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