युद्ध के मध्य में देश की आर्थिक चिंता

Publsihed: 05.May.2020, 14:47

अजय सेतिया / सरकार के कई अधिकारी बताते हैं कि नरेंद्र मोदी की कार्यशैली के कई फायदे हैं , तो कई नुक्सान भी हैं | मौजूदा हालात के कारणों पर जाने से पहले वे नोटबंदी की याद दिलाते हैं , जब प्रधानमंत्री ने बिना किसी तैयारी के नोट बंदी का एलान कर दिया था और फिर सौ बार नियमों में बदलाव किया गया | उस के कई फायदे हुए तो कई नुक्सान भी हुए | फायदा यह हुआ कि लाखों की तादाद में चल रही फर्जी कम्पनियों का पता चल गया और उन्हें बंद कर दिया गया , इन कम्पनियों के माध्यम से हवाला का काला धंधा होता था | नुक्सान यह हुआ कि सुराखों को पहले बंद नहीं किया गया , नतीजतन धेले का भी काला धन नहीं मिला | उलटे बाज़ार में नगदी की कमी के चलते देश तब से आर्थिक तंगी को झेल रहा है |

अब वही बात नरेंद्र मोदी ने जल्दबाजी में लाकडाउन कर के दोहराई | जब इटली , फ्रांस और स्पेन की हालत देखी जा चुकी थी , तो पता था कि लाकडाउन लम्बा चलेगा , तो उस नफे नुक्सान और नुक्सान की भरपाई का आकलन होना चाहिए था | पर जैसा कि सरकारी अधिकारी बताते हैं , मोदी सलाह नहीं लेते , फैसला सुनाते हैं , तो अधिकारियों ने सलाह देना बंद कर दिया है | अपने राजनीतिक सहयोगियों से सलाह का सिलसिला तो उन्होंने कभी शुरू ही नहीं किया था | इस दौरान राजनीतिक मामलों की केबिनेट कमेटी होने की कोई खबर नहीं है , आर्थिक मामलों की केबिनेट कमेटी की बैठक भी लाक डाउन के 23 दिन बाद 16 अप्रेल को हुई , जब चारों तरफ से 2020 की जीडीपी 1.6 प्रतिशत रहने की भविष्यवानियाँ होने लगी | आर्थिक मामलों की केबिनेट कमेटी का काम मोदी ने लाक डाउन शुरू करते ही निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में एक कार्यबल को सौंप दिया था |  

दुनिया भर में मोदी की तारीफ़ हो रही है कि उन्होंने भारत को दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले बेहतर ढंग से मेनेज किया | मेनेज इस लिहाज से जरुर हुआ है कि हमारे यहाँ मौतें कम हुई हैं | लेकिन अब जब कि कोरोनावायरस के ज्यादा फैलने का खतरा मंडराने लगा है तो सारी व्यवस्था चरमराने लगी है | लाक डाउन मखौल बन कर रह गया है | मुम्बई, दिल्ली, चेन्नई , कोलकाता से माइग्रेटेड वर्कर्स को उन के घर पहुँचाने का जो काम 19 से 23 मार्च के बीच होना चाहिए था वह पहली अप्रेल को शुरू किया गया | इस बीच सरकारी संसाधनों और गैर सरकारी सामाजिक , धार्मिक संस्थाओं के सारे संसाधन उन के रहने खाने की व्यवस्था करने में सूख गए | सरकार के 1.70 लाख करोड़ रुपए लोगों को भोजन करवाने में डूब गए | केजरीवाल जैसों ने 8 लाख लोगों को रोज भोजन करवाने के नाम पर जो कुकर्म किया , वह भी बाद में जांच हुई तो सब के सामने आएगा | राजस्थान में सरकारी अफसरों ने गरीबों को भोजन परोसने के नाम पर जो लूट मचाई वह तो सब के सामने आ ही चुकी है | ऐसा सभी राज्यों में हुआ है |

जिस तरह नोट बंदी के वक्त हर रोज नियम बदले जाते थे , ठीक वैसा ही अब हो रहा है | यह पहले सोचा जाना चाहिए था कि देश के आर्थिक संसाधन सूख जाएंगे तो देश कैसे चलेगा | मुख्यमंत्रियों की बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 35 हजार करोड़ , अमरेन्द्र सिंह 20 हजार करोड़ न मांगते , और इन दोनों के पीछे उद्धव ठाकरे और चन्द्र शेखर राव आर्थिक स्रोत सूख जाने की बात न कहते तो केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती | मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने दूसरे कोरोना वायरस सम्बोधन में देश को आश्वस्त किया था कि आर्थिक तंगी नहीं है , लेकिन यह सच नहीं है | अगर सच होता तो राज्यों को आर्थिक संसाधन जुटाने के लिए शराब की दूकाने खोलने और मनमाना अधिभार लगाने की छूट न देते | अगर जनता कर्फ्यू से पहले ही राजनीतिक और आर्थिक मामलों की कमेटियों की सामूहिक बैठक हो जाती तो आज यह नौबत न आती | शराब की दूकाने शुरू में ही बंद करने की जरूरत नहीं थी , सरकारों के आर्थिक स्रोत सूखते ही नहीं |

अमेरिका में कोरोना वायरस से 70 हजार मौतें हो चुकी हैं , भारत में सिर्फ डेढ़ हजार हुई हैं , लेकिन अमेरिका में लाक डाउन करते समय मानव रक्षा और आर्थिक स्रोतों का संतुलन बना कर रखा गया | घरेलू उड़ानें और लोकल ट्रेनें बंद नहीं की गई हैं , एक दिन भी बाज़ार बंद नहीं हुए , ओनलाईन बिक्री भी बंद नहीं की गई | जबकि भारत में सारे फैसले हडबडी में लिए गए | अब 40 दिन बाद उन में सुधार किया जा रहा है | हर मंत्रालय को अगले दो महीने का रोडमैप बनाने को कहा गया है | अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और कोरोना की मार झेल रहे उद्योगों को फिर से उभारने के लिए एक व्यापक वित्तीय पैकेज का इंतजार किया जा रहा है यानी अध् बीच में सब खोल कर किए कराए पर पानी फेरने की तैयारी |  

 

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