अजय सेतिया/ विधानसभा चुनाव से पहले जम्मू कश्मीर में बड़ा बदलाव हो रहा है| अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार मुस्लिम वोट बैंक के जरिए सत्ता हथियाने के पुराने फार्मूले पर ही अटकी पड़ी हैं| दोनों 370 और 35 ए की वापसी को ही उन की सत्ता वापसी की गारंटी मान कर आन्दोलन चला रही हैं| उधर मोदी सरकार ने भारत की इस एक मात्र मुस्लिम स्टेट को इन दो परिवारों की गिरफ्त से निकालने के लिए नए नए प्रयोग शुरू कर दिए हैं| पहला प्रयोग तो जम्मू कश्मीर की 16 विधानसभा सीटों को आरक्षित करना है| जिनमें से 9 एसटी वर्ग के लिए और 7 एससी वर्ग के लिए हैं| परिसीमन आयोग की उस रिपोर्ट का गजट नोटिफिकेशन हो गया है जिसमें एसटी-एससी वर्ग के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं| यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि जम्मू कश्मीर में पहली बार एससी - एसटी के लिए सीटें रिजर्व की गई हैं| अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सभी सात सीटों पर भाजपा की दावेदारी सब से ज्यादा मजबूत होगी, क्योंकि उन्हें तो वोट का अधिकार ही पहली बार मोदी सरकार ने दिया है|
जहां तक एसटी सीटों का सवाल है, 1991 में कश्मीर घाटी से हिन्दुओं के पलायन होने के बाद तब की चन्द्र शेखर सरकार ने गुजरों और बकरवालों को एसटी का दर्जा दिया था| मोदी सरकार ने जम्मू की छह और कश्मीर घाटी की तीन विधानसभा सीटों को एसटी के लिए आरक्षित कर के नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी कर दी है| 2011 की जनगणना के मुताबिक़ राज्य की कुल आबादी में से 11 प्रतिशत गुर्जर-बकरवाल समुदाय के लोग हैं| राजौरी पूंछ बेल्ट की जिन छह सीटों को आरक्षित किया गया है, वहां 35 प्रतिशत आबादी गुज्जर बकरवाल की है, जो सभी मुस्लिम हैं| इसलिए नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी दोनों ही आरक्षण का विरोध नहीं कर पाए| विधानसभा में उन के लिए सीटें आरक्षित होने से वे पहली बार राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होंगे| यह उन के लिए बड़ा राजनीतिक लाभ है|
अब गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर में पहाड़ी समुदाय को भी आरक्षण का लाभ देने की घोषणा कर दी है| चार अक्टूबर को राजौरी की विशाल रैली में अमित शाह ने हजारों पहाड़ियों की मौजूदगी में कहा कि जीडी शर्मा आयोग ने पहाड़ियों को आरक्षण की सिफारिश की है, मोदी सरकार प्रशासनिक औपचारिकताएं पूरी कर के उन्हें आरक्षण का लाभ देगी| अमित शाह ने भले ही पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देने का एलान नहीं किया, लेकिन जिस जीडी शर्मा आयोग की सिफारिशों का उन्होंने उल्लेख किया, उस ने पहाड़ियों को एसटी वर्ग में शामिल करने की सिफारिश की है| इस एलान की उम्मीद पहले से थी, जिससे नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी में खलबली मची हुई थी| राजौरी से नेशनल कांफ्रेंस के एक वरिष्ठ नेता मुश्ताक बुखारी और कई अन्य लोगों ने पार्टी से इस्तीफा दे कर पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देने पर भाजपा का खुलकर समर्थन किया है| पहाड़ियों में हिन्दू सिख और मुस्लिम तीनों हैं, लेकिन उन में जो मुस्लिम हैं , वे सईद, काजी, पीर, बेग, मलिक मिर्जा, खान जैसे ऊंची जातियों के मुसलमान हैं| जबकि गुज्जर और बकरवाल करीब करीब सौ फीसदी बेकवार्ड क्लास मुस्लिम हैं| इसलिए वे पहाडी भाषियों को एसटी वर्ग में शामिल करने का विरोध करते रहे हैं| नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के नेता भी गुजरों और बकार्वालों को भडका रहे हैं कि उन को मिलने वाले आरक्षण के लाभ में पहाड़ियों की भी हिस्सेदारी हो जाएगी| लेकिन यह सब जानते हुए भी कि अमित शाह पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देने का एलान करेंगे, गुज्जर और बकरवाल राजौरी की रैली में बहुत बड़ी तादाद में पहुंचे थे| वे मोदी से खुश हैं, क्योंकि केंद्र में मोदी की सरकार बनने के बाद ही उन्हें राजनीतिक और सामाजिक अधिकार मिलने शुरू हुए हैं|
गुजर, बकरावाल और पहाडी सीमान्त क्षेत्र में मिलजुल कर रहते आए हैं| अमित शाह ने गुजरों और बकारावालों को आश्वासन दिया है कि पहाड़ियों को आरक्षण देने से उन के आरक्षण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा| इसलिए गुजर और बकरवाल समुदाय ने पहाड़ियों को एसटी का दर्जा दिए जाने का विरोध नहीं किया, वरना अमित शाह की रैली में ही बवाल खड़ा हो जाता , क्योंकि इस रैली में यही दोनों समुदाय बड़ी तादाद में जमा थे| गुजरों और बकरावालों को भडकाने का नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी का दाव भी उलटा पडता दिखाई दे रहा है, क्योंकि एसटी का दर्जा मिलने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के पहाडी नेता अपनी पार्टियों को छोड़ कर भाजपा में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं| इस तरह भाजपा का मुस्लिमों में भी बड़ा वोट बैंक तैयार हो रहा है| राजौरी के बाद पांच अक्टूबर को अमित शाह बारामूला में रैली करने वाले है| उन की रैली से पहले ही नेशनल कांफ्रेंस के एक वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक कफील उर रहमान ने लोगों से रैली में शामिल होने की अपील कर दी| दो बार नेशनल कांफ्रेंस के पूर्व विधायक कफील उर रहमान ने कहा, कि उनके लिए समुदाय पहले आता है, राजनीति बाद में| कफील उर रहमान भी पहाडी हैं, जिन्हें एसटी का दर्जा दिए जाने का एलान किया गया है| रहमान ने अपने समर्थकों को बारामूला पहुँचाने के लिए 20 बसों का इंतजाम किया है| इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर बेग ने भी पहाड़ी समुदाय के लोगों से रैली में बढ़चढ़कर भाग लेने के लिए कहा है| बेग भी पहाड़ी नेता हैं और उन्होंने नवंबर 2020 में पीडीपी से इस्तीफा दे दिया था|
जम्मू-कश्मीर में गुर्जर-बकरवाल एक घुमंतू जाति है| खानाबदोश होते हैं, रहने के ठिकाने बदलते रहते हैं| सीमा पर युद्ध के समय कई मौकों पर बकरवाल समुदाय के लोग सेना की आंख और कान बने रहे| जैसे ही उन्हें सीमा पर घुसपैठ की जानकारी मिलती है, वे फौरन सेना को अलर्ट करते हैं| कारगिल युद्ध से पहले भी भारतीय सीमा में घुसपैठ की सबसे पहले खबर बकरवाल समुदाय के लोगों ने ही दी थी| अमित शाह ने उनकी तारीफ़ की कि वे सच्चे देशभक्त हैं, जो सीमाओं की रक्षा करते हैं| दूसरी तरफ जम्मू कश्मीर में पहाड़ियों की अलग पहचान उनकी पहाडी भाषा के कारण है| पहले पहाडी भाषा को पंजाबी की एक बोली ही माना जाता था, लेकिन 1911 की जनगनणा में पहाडी भाषा को अलग मान्यता मिली| पहाडी एलओसी से लगते इलाकों में बोली जाती है, जिनमे में ज्यादातर 1947 में पीओके से आये हिन्दू, सिख और मुस्लिम शरणार्थी हैं| इन में काफी बड़ी तादाद मुसलमानों की है, जो नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी का परंपरागत वोट बैंक था| भाजपा सधी राजनीति के तहत दोनों पारिवारिक दलों के वोट बैंक में सेंध मार रही है|
दूसरी तरफ नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी अनुच्छेद 370 और 35-ए पर ही अटके हुए हैं| पहले इन दोनों दलों का इरादा चुनावों का बहिष्कार करने का था, लेकिन जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार की धडकने बढ़ रही हैं और चुनाव में हिस्सा लेने के संकेत देने लगे हैं| फारूख अब्दुल्ला ने कल ही कहा कि जब भी चुनाव होगा, जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी बड़ी संख्या में मतदान करने के लिए अपनी भूमिका निभानी होगी| महबूबा मुफ्ती को जब यह भनक लगी कि अमित शाह अपने तीन दिन के दौरे में पहाड़ियों को एसटी का दर्जा नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की घोषणा करने वाले हैं , तभी से उन्होंने पीर पंजाल क्षेत्र में गुजरों और बकारावालों को भडकाना शुरू कर दिया था| उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी जम्मू क्षेत्र में पहाड़ियों और गुर्जरों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रही है| हालांकि वह खुद ही गुजरों और बकारावालों को भडकाने में लगी थीं|
आपकी प्रतिक्रिया