सेना का आज से लद्दाख पहुंचना आसान

Publsihed: 02.Oct.2020, 21:11

अजय सेतिया / जून 1985 की बात है | मैं लाहौल स्पीती जिले के मुख्यालय केलांग गया था | वहां से लौट कर मैंने एक खबर लिखी थी-“ लाहौल स्पीती पर चीनी नजर “ | यह खबर 14 जुलाई 1985 को पांचजन्य की लीड  स्टोरी बनी थी | जनसत्ता में उन दिनों खोज खबर नाम से हर शुक्रवार को एक पेज छपता था , यह खबर उस में भी लीड स्टोरी बनी थी | मैंने लिखा था –“ तिब्बत पर कब्जा कर लेने के बाद अब चीन ने भारतीय क्षेत्र लाहौल स्पीती पर निगाह डालना शुरू कर दिया है | तिब्बतियों के माध्यम से हिमाचल प्रदेश के इस सीमान्त एंव पिछड़े जिले में चीन एक गहरी साजिश रच रहा है ......सीमा पार से आए तिब्बती न केवल तस्करी कर के पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को चोपट करने में लगे हैं बल्कि चीन के लिए गहरे षड्यंत्र की भूमि भी तैयार कर रहे हैं | चीनी गुप्तर एजेंसियां इन्हें अपने षड्यंत्र में शामिल होने के लिए आर्थिक सहायता एंव अन्य प्रकार के लालच दे रही हैं | यह भी मालूम हुआ है कि चीन लाहौल वासियों में अलगाव के बीज बोने की कोशिश कर रहा है | उन्हें भारत के कथित चंगुल से निकाल कर स्वतंत्र होने के लिए उकसा रहे हैं ...... चीन का अलगाववादी षड्यंत्र शीघ्र ही भयंकर रूप ले कर हमारे सामने आने वाला है .......भारत सरकार की गुप्तचर एजेंसियां अगर तस्करी और तस्करी के सामान की इस प्रकार सरेआम बिक्री नहीं रोक सकती , तो स्पष्ट है कि लाहौल स्पीती को हडपने के लिए रचे जा रहे चीनी षड्यंत्र को विफल बनाने का प्रयास क्या करेंगी |” मध्य प्रदेश के प्यारे लाल खंडेलवाल उस समय राज्य सभा के सांसद थे और उन्होंने पांचजन्य की खबर के आधार पर राज्यसभा में सवाल पूछा था कि क्या केंद्र को चीन के इस षड्यंत्र की जानकारी है | उस समय केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री कुमुद बिन जोशी ने मेरी इस खबर की पुष्टि करते हुए कहा था कि सरकार कदम उठा रही है |

असल में लाहौल स्पीती से भारत का सडक मार्ग सिर्फ तीन महीने ही खुला रहता था और 9 महीने सम्बन्ध टूट जाता था , इसी कारण चीन को अलगाववाद फैलाने का मौक़ा मिल रहा था , कुमुद बिन जोशी ने राज्यसभा को बताया था कि पंडित जवाहर लाल नेहरु भी लाहौल स्पीती से सारा साल सडक सम्पर्क के खोलने के लिए चिंतित थे और एक योजना बनाई गई थी , अब सरकार उस तरफ आगे बढ़ेगी | हालांकि यह सच नहीं था , नेहरु ज्यादा खर्चे के कारण सुरंग के लिए कतई गम्भीर नहीं थे , चीन के बार्डर को लेकर वह कभी भी गंभीर नहीं रहे थे | हाँ 1962 के युद्ध के बाद नेहरु ने रोहतांग दर्रे पर रोप-वे बनाने का सर्वेक्षण जरुर करवाया था , लेकिन उस पर भी कोई कारवाई नहीं थी | इंदिरा गांधी ने जरुर 1983 में मनाली और लेह के बीच सालभर कनेक्टिविटी देने वाली सड़क के निर्माण की परियोजना बनवाई थी | लेकिन 1984 में उन की हत्या के बाद फाईल फिर रूक गई थी , 1985 में राज्यसभा में आश्वासन के बावजूद 2002 तक किसी ने कोई कदम नहीं बढाया था | रोहतांग दर्रे के नीचे रणनीतिक महत्‍व की सुरंग बनाए जाने का असली फैसला 3 जून 2000 को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लिया था और उन्होंने खुद 26 मई 2002 को आधारशीला रखी थी |

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैसे तो आज 3 अक्टूबर को अटल सुरंग का उद्घाटन कर रहे हैं , लेकिन ढाई महीने और इन्तजार कर के वाजपेयी जी के जन्मदिन 25 दिसम्बर को ही उद्घाटन होता तो सोने पर सुहागा हो जाता | लेकिन शायद जल्दी है इसलिए क्योंकि सुरंग के रास्ते सामरिक दृष्टी से महत्वपूर्ण लद्दाख तक पहुंच मार्ग भी आसान हो जाएगा, जहां चीन के साथ एलएसी पर तनाव बना हुआ है और यही ढाई महीने ज्यादा महत्वपूर्ण हैं |

हिमाचल मंत्रिमंडल ने 20 अगस्त 2018 को रोहतांग टनल का नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखने की सिफारिश की थी , जिसे मंजूर करते हुए वाजपेयी जी के जन्मदिन 25 दिसम्बर पर 2018 में मोदी ने नामकरण का एलान किया | समुद्र तल से 3,000 मीटर की ऊंचाई पर 1,458 करोड़ रुपये की लगात से बनी दुनिया की यह सबसे लंबी सुरंग लद्दाख के हिस्से को साल भर संपर्क सुविधा प्रदान करेगी | पूर्वी पीर पंजाल की पर्वत श्रृंखला में बनी यह सुरंग 9.02 किलोमीटर, 10.5 मीटर चौड़ी और 5.52 मीटर ऊंची है | सुरंग के भीतर किसी कार की अधिकतम रफ्तार 80 किलोमीटर प्रतिघंटा हो सकती है | इससे मनाली-रोहतांग दर्रा-सरचू-लेह राजमार्ग पर 46 किलोमीटर की दूरी घटेगी और यात्रा समय भी चार से पांच घंटा कम हो जाएगा |

 

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