अजय सेतिया / आप यूक्रेन की जंग को टीवी पर लाईव देख रहे हो , लेकिन क्या आप जानते हो कि यूक्रेन की इस हालत के लिए कौन जिम्मेदार है | यूक्रेन की इस हालत के लिए जिम्मेदार है अमेरिकन राष्ट्रपति जो बिडेन और नाटो गठबंधन | इन दोनों की रूस को दी गई गीदड़ भभकियों ने जंग करवा दी | जो बिडेन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ वही किया , जो उन्होंने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ सात महीने पहले किया था | पहले दोनों को सातवें आसमान पर चढा दिया और बाद में कहा भाग जाओ | लेकिन जेलेंस्की अशरफ गनी की तरह मैदान छोड़ कर भागे नहीं | अगर वह भाग गए होते तो जैसे अफगानिस्तान पर 24 घंटे से भी कम समय में तालिबान का कब्जा हो गया था , वैसे ही रूस का यूक्रेन पर 24 घंटे में कब्जा हो जाता |
यह तो युद्ध के अगले दिन ही पता चल गया था कि नाटो फौजें यूक्रेन की मदद के लिए आगे नहीं आएंगी | लेकिन युद्ध के छटे दिन जो बिडेन , ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जानसन और नाटो महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने साफ़ साफ़ कह दिया कि यूक्रेन को अपने आप निपटना होगा | नाटो ने एक तरह से रूस के आगे हथियार डाल दिए हैं , यह बात अब यूक्रेन के राष्ट्रपति को भी समझ आ गई है , इसलिए उन्होंने एक बंकर से इंटरव्यू देते हुए राष्ट्रपति पुतिन से कहा है कि चलो यूक्रेन नाटो का सदस्य देश नहीं बनेगा , लेकिन वह गारंटी दे कि रूस की फ़ौज यूक्रेन पर हमला नहीं करेगी |
अमेरिकन राष्ट्रपति जो बिडेन ने अमेरिकन कांग्रेस को संबोधित करते हुए बहुत बड़ी बड़ी बातें की , रूस के राष्ट्रपति पुतिन को एक तानाशाह कहा , यह भी कहा कि पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर के दुनिया की नींव हिलाने की कोशिश की है | लेकिन आखिर में यह कह कर लीद कर दी कि अमेरिका और नाटो फौजें यूक्रेन को बचाने नहीं जाएँगी | नाटो देशों की हिम्मत नहीं हो रही कि रूस से सीधा पंगा लें , पुतिन को यह पहले से पता था कि अमेरिका में इतनी हिम्मत नहीं है , इसलिए उस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया | हमले की तैयारी पिछले छह महीनों से हो रही थी , नाटो देश लोकतंत्र के इतने ही पैरोकार होते तो यूक्रेन को नाटो का स्थाई सदस्य नहीं , तो कम से कम सहयोगी देश बना लेते | नाटो देशों ने यह कदम इस लिए नहीं उठाया , क्योंकि वे जानते थे कि यूक्रेन को अपने पाले में लाने का मतलब होगा रूस से पंगा लेना | 1949 में नाटो की स्थापना सोवियत संघ से साझा मुकाबले के लिए की गई थी , लेकिन अब जब रूस ने अपनी विस्तारवादी योजना पर अम्ल शुरू किया है , तो नाटो भाग रहा है |
इस की बड़ी वजह यह है कि अमेरिका को चीन के ताईवान पर हमले की आशंका है | एक महीना पहले शी जिनपिंग और पुतिन की मुलाक़ात में दोनों ने यूक्रेन और ताईवान पर एक दूसरे का साथ देने का साझा बयान जारी किया था | ताईवान भी नाटो का हिस्सा नहीं है , लेकिन ताईवान में अमेरिका का सैनिक अड्डा है , वह एशिया में अपना एकमात्र सैनिक अड्डा खोना नहीं चाहता | इस लिए मंगलवार को जो बिडेन ने यूक्रेन पर ज़ुबानी जमा खर्च कर के ताइवान को बचाने की रणनीति बनाने के लिए डिफेन्स एक्सपर्टस का एक डेलिगेशन ताईवान रवाना कर दिया | मान लो चीन ताईवान पर हमला कर देता है , तो क्या अमेरिका वहां से भी भाग जाएगा | अमेरिका वहां से नहीं भागेगा , तो अक्लमंदी यही थी कि अमेरिका वक्त रहते पुतिन और शी जिनपिंग की जुगलबन्दी को रोकता , और वह तभी रूक सकती थी , अगर अमेरिकी फौजें एक साथ यूक्रेन और ताइवान पहुंच कर दोनों लोकतांत्रिक देशों की रक्षा करती | अब पूरी दुनिया लफ्फाजी के सिवा कुछ नहीं कर रही | संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद में रूस के प्रतिनिधि का 100 देशों ने बहिष्कार किया , तो इस से रूस का क्या बिगड़ा , वह पूरी दुनिया को जूते की नौक पर रख रहा है , और अमेरिका भीगी बिल्ली बन गया है | बिडेन कमजोर राष्ट्रपति और पुतिन मजबूत राष्ट्रपति साबित हो गए हैं |
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