अजय सेतिया / सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने नाबालिग लडकी के बलात्कारी से पूछा है कि क्या वह लडकी से शादी करने को तैयार है ? हालांकि अपराधी ने यह कह कर शादी करने से इनकार कर दिया कि वह तो शादीशुदा है | यह सवाल कानूनी तौर पर गलत है | पोक्सो क़ानून इस अपराध के लिए सजा तय करता है , अपराधी को विकल्प नहीं देता | सुप्रीमकोर्ट का काम संसद से पारित क़ानून के मुताबिक़ न्याय करना है , अपराधी के साथ सद्भाव बनाना नही हैं | अपन समय समय पर अदालतों की ऐसी बातों पर ध्यान आकर्षित करते रहे हैं , यही पत्रकार का धर्म है , पत्रकार का धर्म गलत होते देख कर आँख मूंदना नहीं है | ऐसे कई उदाहरण सामने आ चुके हैं कि जज खुद को क़ानून मानने लगते हैं | राम जन्मभूमि विवाद के समय भी अदालत ने उस के सामने रखे गए तथ्यों के मुताबिक़ फैसला करने की बजाए दोनों पक्षों को बातचीत से हल निकालने का सुझाव देते हुए कमेटी बना दी थी |
क़ानून व्यवस्था राज्य और प्रसाशन का मामला है , लेकिन अदालतें सरकारों को हिदायतें देने लगती हैं , शाहीन बाग़ से धरने के समय भी सुप्रीमकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर प्रसाशन को सडक खाली करवाने का आदेश देने की बजाए आन्दोलनकारियों से बातचीत के लिए कमेटी बना दी थी | किसानों के आन्दोलन के समय भी राष्ट्रीय राजमार्ग खाली करवाने के आदेश देने की बजाए तीन सदसीय कमेटी बना दी , उस कमेटी को किसानों ने माना ही नहीं , तो कोर्ट अपना सा मुहं लेकर रह गई | लेकिन नाबालिग से बलात्कार के मामले में चीफ जस्टिस का प्रस्ताव घोर आपत्तिजनक और कानून व्यवस्था के लिए खतरे को न्योता है | क्या वह नाबालिग से बलात्कार को कानूनी मान्यता देना चाहते हैं | कल को लडकी की ओर से शादी के लिए मना करने पर उसे बलात्कार का शिकार बनाया जाएगा और सुप्रीमकोर्ट उस की शादी करवा देगा | यह खाप पंचायत का फैसला होगा या अदालत का | कल को खाप पंचायतें बलात्कार के मामले में इस तरह का फैसला करने लगेंगी तो क्या होगा |
वरिष्ठ पत्रकार आरती टिकू सिंह ने इस मामले की गम्भीरता को उठाते हुए ट्विटर पर लिखा है कि नाबालिग लडकी से बार बार बलात्कार करने , उसे तेज़ाब डाल कर जलाने और उस के परिजनों को नुक्सान पहुँचाने की धमकी देने वाले सरकारी कर्मचारी से भारत के चीफ जस्टिस का अपराधी के सामने शादी का विकल्प रखने से ज्यादा महिला विरोधी और क्या हो सकता है | ट्विटर पर आरती टिकू सिंह की इस टिप्पणी पर लोगों ने खुल कर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए चीफ जस्टिस के खिलाफ लिखा है | चीफ जस्टिस ने सिर्फ पोक्सो एक्ट का उलंघन नहीं किया , अलबत्ता हिन्दू मैरिज एक्ट का भी उलंघन किया है , क्योंकि अपराधी पहले से शादीशुदा है | उसने शादी का झांसा दे कर कई साल तक नाबालिग से बलात्कार किया और बाद में किसी और से शादी कर ली |
सुप्रीमकोर्ट की यह गैर कानूनी पेशकश पहली बार नहीं हुई है | दस साल पहले सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस मार्कन्डेय काटजू पहले ही आपसी समझौते को मान्यता देते हुए नाबालिग के तीन बलात्कारियों की सजा कम कर चुके हैं | चौदह साल की नाबालिग लडकी ने बलदेव सिंह और दो अन्यों पर बलात्कार का आरोप लगाया था | पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने तीनों को दस दस साल कैद की सजा सुनाई थी , लेकिन जस्टिस काटजू और ज्ञान सुधा मिश्रा ने आपसी समझौते को आधार बना कर तीनों को रिहा कर दिया था | सवाल यह है कि क़ानून अपराधी को क़ानून के मुताबिक़ सजा देगा या समझौते का विकल्प देगा | आरती टिकू सिंह के ट्विट पर एक सख्त टिप्पणी आई है , जिस में कहा गया है यह जजों के खुद को क़ानून समझने का सबूत है | वे समझते हैं उन की और से कही गई बात ही क़ानून है , जबकि उन का काम क़ानून के मुताबिक़ फैसला करना मात्र है | एक टिप्पणी में कहा गया है कि न्याय व्यवस्था को बदलने और जजों को नीचले स्तर से लेकर सर्वोच्च स्तर तक बेहतर ट्रेनिंग देने की जरूरत है | क्या आप अदालतों की और से अपराधी के सामने विकल्प रखे जाने से सहमत हैं |
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