देशद्रोह की स्पष्ट परिभाषा वाला क़ानून जरूरी

Publsihed: 02.Mar.2017, 22:02

कम्यूनिस्ट और आरएसएस दिल्ली की सडकों पर आमने सामने आ चुके | कोई दिन नहीं जाता जब प्रदर्शन न हो | किसी दिन कम्यूनिस्टों के छात्र संगठनों का प्रदर्शन | तो किसी दिन विद्यार्थी परिषद का प्रदर्शन | अखाड़ा बन गया है दिल्ली | पिछले साल बिहार के चुनाव थे , तब भी अभिव्यक्ति की आज़ादी का बवंडर खडा हुआ  | अब यूपी के चुनाव हैं,तो फिर अभिव्यक्ति की आज़ादी का बवंडर | कश्मीर और बस्तर की आज़ादी के नारों को अभिव्यक्ति की आज़ादी बताया जा रहा | देश के टुकडे होंगे, इंशा अल्लाह  ,इंशा अल्लाह के नारे लग रहे | और इन नारों को अभिव्यक्ति की आजादी कहा जा रहा | इन नारों को देशद्रोह मानने को तैयार नहीं | सारे कम्यूनिस्ट अपने पक्ष में सुप्रीमकोर्ट का 1962 वाला  फैसला बता रहे |  सोली सोह्रराबजी तक 1962 के सुप्रीमकोर्ट के फैसले का हवाला दे रहे | वह चर्चित केदार नाथ सिंह केस क्या था | पहले वह समझ लें | केदारनाथ सिंह भी फारवर्ड कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता थे | उन्होंने एक पब्लिक मीटिंग में भाषण दिया |  उस भाषण की भाषा बेहूदा थी  | कांग्रेस पार्टी के खिलाफ था वह भाषण | पर राष्ट्रद्रोह जैसी कोई बात नहीं थी, उस भाषण में | कांग्रेस उन दिनों में खुद को अंग्रेजों की तरह देश का मालिक समझती थी | इस लिए बिहार की कांग्रेस सरकार ने उसी तरह देशद्रोह का मुकद्दमा बना दिया | जैसे अंग्रेजों ने 1891 में जोगेंद्र सिंह बोस के खिलाफ बनाया था | बाद में बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ भी बनाया था | क्या कहा था केदार नाथ सिंह ने | पहले उसे पढ़ लें | उन्होंने अपने भाषण में कहा-"आज सीआईडी के कुछ कुत्ते बरौनी में घूम रहे हैं | कई अधिकारी कुत्ते इस मीटिंग में भी बैठे हैं | देश की जनता ने अंग्रेजों को देश से बाहर निकाल दिया और इन कांग्रेसी गुंडों को चुन लिया और गद्दी पर बिठा दिया |  आज जनता की गलती के कारण कांग्रेसी गुंडे गद्दी पर बैठे हैं | जब हम ने अंग्रेजों को निकाल बाहर किया ,तो हम इन कांग्रेसी गुंडों को भी निकाल बाहर फेंकेंगे |" पहली ही नजर में यह देशद्रोह का केस नहीं लगता | सिर्फ कांग्रेस के खिलाफ बोला गया है, सरकार के खिलाफ भी कुछ नहीं है इस भाषण में | पर उन दिनों ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के जज तो माशाल्लाह थे | ज्यादातर कांग्रेस की मेहरबानी से बने हुए जज | सो ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने इसे देशद्रोह मान कर केदारनाथ सिंह को सजा दे दी | जब मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो दो मुद्दों पर सुनवाई हुई | पहला मुद्दा-"क्या सविधान के अनुच्छेद 19 (1) ए के बाद देशद्रोह की धारा 124 ए और 505 अस्तित्वहीन हो गयी है ?" दूसरा-"क्या अव्यवस्था फैलाने का इरादा या क़ानून व्यवस्था को खराब करने , हिंसा के लिए उकसाने को राष्ट्रद्रोह माना जाना चाहिए |" सुप्रीमकोर्ट सुनवाई के बाद इस नतीजे पर पहुँची  कि केदारनाथ सिंह का भाषण हिंसा भड़काने वाला नहीं | वरना ऊपर के दोनों सवालों पर कोर्ट ने कहा -" 19 (1) ए के बाद भी 124 ए और 505 ठीक हैं | लेकिन यह क़ानून सिर्फ हिंसा भड़काने तक सीमित रहेगा | " अब इस फैसले का अर्थ यह निकाला जा रहा है कि देश के खिलाफ हिंसा ही देशद्रोह माना जाएगा | क्या केदारनाथ सिंह के भाषण की तुलना जेएनयूं  के नारों से हो सकती है | वह एक व्यक्ति का भाषण था, एक राजनीतिक दल के खिलाफ | केदारनाथ सिंह ने कांग्रेस को गुंडों की पार्टी कहा था | यह उन के लिए देशद्रोह था, जो इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया मानते थे | इस भाषण में देशद्रोह तो था ही नहीं | भारत के खिलाफ कहाँ कुछ कहा था | जबकि अब यह एक विचारधारा के नारे हैं,  देश के खिलाफ | भारत तेरे टुकडे होंगे, इंशा अल्लाह, इंशा अल्लाह | ये उसी तरह के नारे हैं , जो भारत के बंटवारे के समय इस्लाम के नाम पर लगे थे | इंशा अल्लाह, इंशा अल्लाह वही लोग कह रहे हैं | क्या यह राष्ट्र की शान्ति,एकता और सुरक्षा के लिए खतरा नहीं | क्या यह देश की एकता, शान्ति, सुरक्षा के लिए सीमाओं पर लड़ रहे जवानो को उकसाने वाला नहीं | अगर हथियार उठाना ही देशद्रोह माना जाएगा | तो जेएनयूं  वाले वामपंथी बस्तर में हथियार उठाने वालों की ही ब्रांच है | वे बस्तर में हथियार उठाए हुए हैं | ये उन के समर्थन में युवाओं को भड़का रहे हैं | यह देश के खिलाफ हथियारबंद विद्रोह ही तो है | यही बात कश्मीर की | कश्मीर में तो पाकिस्तान की साजिश है | जैसे रिपब्लिकन 179० में विदेशी ताकतों के साथ मिल कर फेडरल्स का विरोध कर रहे थे | तब पहली बार 1798 में दुनिया में पहली बार देशद्रोह का क़ानून बना था | अब वक्त आ गया है जब देशद्रोह का नया क़ानून बने | केदारनाथ सिंह के मामले में कोर्ट ने जो कहा था | अब उस की परिभाषा तय हो | तय हो- देश के टुकडे करने के लिए  कश्मीर में सेना के खिलाफ पत्थर उठाना देशद्रोह है या नहीं | बस्तर में हथियार उठाना देशद्रोह है या नहीं | जेएनयूं में उन के समर्थन में नारे लगाना देशद्रोह है या नहीं | अखबारों में उन के पक्ष में लेख लिखना देशद्रोह है या नहीं | उन के पक्ष में भाषण देना राष्ट्रद्रोह है या नहीं | और अब भारत सरकार ने तय किया है नई परिभाषा के साथ नया क़ानून आएगा | वैंकया नायडू ने खुलासा कर दिया है | वैसे आसान नहीं है क़ानून पास करवाना | कांग्रेस वामपंथियों के साथ घी-शक्कर हुई पडी है | देखते हैं देश किस दिशा में ले जाती है कांग्रेस | 

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