खालिद की गिरफ्तारी से मीडिया में बेचैनी क्यों

Publsihed: 22.Sep.2020, 21:05

अजय सेतिया /दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार राजीव शर्मा की जासूसी के आरोप में गिरफ्तारी से मीडिया कर्मी स्तब्ध है । राजीव कोई अनाम पत्रकार नहीं है , उन्होंने यूएनआई , ईनाडू , द ट्रिब्यून जैसे प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों के साथ काम किया है । रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय को कम से कम तीन दशक तक अपने मीडिया संस्थानों के लिए कवर किया । जब अजीत डोवल आईबी के प्रमुख थे , उस समय आईबी के गिने-चुने विशेषज्ञ पत्रकारों में से थे । उनकी अजीत डोवल तक से निकटता थी , रिटायरमेंट के बाद अजीत डोवल जब विवेकानंद फाउंडेशन से जुडे तो राजीव वहां फैलो और को-आरडिनेटर के नाते उनके साथ थे ,लेकिन विचारधारा के टकराव के कारण ज्यादा देर उन के साथ नहीं रह सके क्योंकि लालकृष्ण आडवाणी के गृहमंत्री काल में अजीत डोवल संघ भाजपा के नजदीक आ गए थे , जबकि राजीव कांग्रेसी विचारधारा के करीबी और संघ भाजपा के कट्टर विरोधी थे । इसके बावजूद जब नरेंद्र मोदी ने डोवल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया तो राजीव शर्मा ने उनकी तारीफ में लेख लिखा था । हैरीनी यह है कि जब राजीव थी गिरफ्तारी की खबर आई तो सब से कांग्रेस ने उन का साथ छोड़ा । कांग्रेस के डिजिटल और सोशल मीडिया के राष्ट्रीय समन्वयक गौरव पांधी ने ट्विट कर के लिखा कि जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के करीबी चीन के लिए जासूसी करते हुए पकड़े गए हैं तो कोई हैरानी नहीं कि राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में है। मुख्यधारा के पत्रकार की चीन के लिए जासूसी करने के मामले में गिरफ्तारी पत्रकारों और पत्रकारों के संगठनों के गले नहीं उतर रही , लेकिन चीन सरकार के अधिकृत अखबार और वैबसाइट ग्लोबल टाइम्स के लिए कई साल तक उन के लेखन की सच्चाई को कोई नहीं झुठला सकता , लेकिन 2016 से वह ग्लोबल टाइम्स के रेगुलर लेखक नहीं थे । 2010 के बाद चीन के यूसी ब्राउज़र , ग्लोबल टाइम्स और चीन की अन्य कई वैबसाइटों ने भारत में बड़े पैमाने पर पत्रकारों को अपना वेतनभोगी बनाया था । चीन में बड़े पैमाने पर आज भी हिंदी की वेबसाइटों पर भारतीयों को निशाना बना कर काम हो रहा है । प्रेस क्लब आफ इंडिया जिस पर दो दशक से वामपंथी विचारधारा हावी हो गई है , ने भी यूसी ब्राउजर के साथ साझेदारी की थी , जबकि पहले पांच दशक तक प्रेस क्लब विचारधाराओं के बंधन से मुक्त रहा था । जबकि वाजपेई सरकार के समय और अब मोदी सरकार के समय प्रेस क्लब सरकार विरोधी गतिविधियों का केंद्र बन गया है । प्रेस क्लब में कोई भी बैठक सेमिनार, कार्यक्रम कर सकता है , लेकिन सरकार विरोधी कार्यक्रमों में क्लब के निर्वाचित पदाधिकारी बढ चढ कर हिस्सा लेते हैं । पहले प्रेस क्लब सिर्फ मिलने जुलने , खाने पीने , दलगत राजनीति से ऊपर उठकर "मीट द प्रेस" आयोजित करने का केंद्र था , अब सरकार विरोधी राजनीतिक गतिविधियों का अड्डा बन गया है । ऐसे समय में जब मीडिया की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है तो कम से कम प्रेस क्लब जैसी संस्थाओं को ऐसे विवादों से दूर रहना चाहिए , जिन से मीडिया के एक विचारधारा के लिए काम करने की छवि बनती हो और मीडिया के निष्पक्ष होने पर सवाल उठते हों । अलबत्ता प्रेस क्लब को मीडिया के निष्पक्ष होने की छवि बनाने और मीडिया की विश्वसनीयता बचाने के लिए कदम उठाने चाहिए । राजीव शर्मा की गिरफ्तारी से मीडिया जगत स्तब्ध है , दिल्ली पुलिस के दावे पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा , खासकर तब जब पिछली एनडीए सरकार के समय भी दिल्ली पुलिस ने इसी तरह वरिष्ठ पत्रकार इफ्तिखार गिलानी को गिरफ्तार किया था , लेकिन अदालत में आरोप साबित नहीं कर पाई थी । इसलिए हर मिडिया संगठन को यह अधिकार है कि वह तब तक राजीव शर्मा के साथ खडा हो, जब तक अदालत में उस पर आरोप साबित न हो । लेकिन प्रेस क्लब ने राजीव शर्मा की गिरफ्तारी पर सवाल उठाते हुए जिस तरह उमर खालिद और कन्हैया कुमार की गिरफ्तारियों का उदाहरण दे कर बयान जारी किया है , उस पर पत्रकारों में बेचैनी है । उमर खालिद और कन्हैया दोनों ही पत्रकार नहीं हैं , अलबत्ता दोनों राजनीतिक पार्टी से जुड़े राजनीतिक एक्टिविस्ट है । जेएनयू में कम्युनिस्ट पार्टी के छात्र संगठन का नेता रहते समय भी दोनों विवादास्पद रहे हैं । दोनों भारत तेरे टुकडे होंगे इन्शा अल्लाह , इंशाअल्लाह नारों के आरोपी है । उन के साथ राजीव शर्मा की तुलना करना पत्रकारिता के लिए शर्म की बात है , वैसे भी गैर पत्रकारों की गिरफ्तारी पर प्रेस क्लब का कोई स्टैंड लेना गलत है । ऐसे समय में जब मीडिया को गलत तरीके से 'प्रेस्टीट्यूट्स', 'फर्जी मीडिया', 'लुटियन दलाल' इत्यादि जैसे अपमानजनक नाम कहा जाता है, जरूरत इस बात की है कि मीडिया क्षेत्र को समग्र रूप से सुरक्षित किया जाए। ऐसे समय में जब सभी संस्थानों के संचालन की अभूतपूर्व छानबीन हो रही है, सार्वजनिक रुख और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) जैसे संस्थानों के बयानों में दोगुनी सावधानी और चौकसी की जरूरत है । प्रेस क्लब के अनावश्यक और अतार्किक बयान ने क्लब के हजारों सदस्यों की अखंडता पर सवालिया निशान लगा दिया है। खासकर तब जब उमर खालिद दिल्ली के दंगों में शामिल होने के एक आरोपी के रूप में दस दिन के पुलिस रिमांड पर हैं । दस दिन का पुलिस रिमांड असमान्य परिस्थितियों में मिलता है , ऐसे समय में उसकी गिरफ्तारी पर सवाल उठाना पुलिस को उस का काम करने से रोकने की कोशिश करने जैसा है । - [ ]

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