तमिलनाडू बना सकता है जलीकट्ट पर कानून 

Publsihed: 19.Jan.2017, 22:51

तमिलनाडू के नौजवान सडको पर हैं.  चैन्नई के मरीना  बीच पर दिन-रात का प्रदर्शन चल रहा. सरकार को कालेज बंद करने पडे.  ताकि  नौजवानो को घरो में जाने को मजबूर किया जा सके.  पर इस का भी कोई असर नहीं हुआ.  इस हालात ने दो-तीन घटनाओ की याद ताजा की.  एक घटना गौ रक्षा आंदोलन की . जब गौ हत्या पर बैन के लिए गौ भक्तो ने संसद  घेर ली थी.  कुछ साधु दिवार फांद कर संसद में घुस गए थे. नेहरू ने गोली चलवा दी थी. तब सैंकडो लोग मारे गए थे. दूसरी घटना राजपथ पर टिकैत के धरने की.  अभी हाल ही के सालो में रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के अनशन की.. तमिलनाडू का ताज़ा आंदोलन जलीकट्टू नाम के एक परपरागत खेल की. सांडों को काबू करने का प्राचीन और मशहूर पारंपरिक खेल है.  जिस में सांड को मैदान में भगाने और पकडने का खेल होता है. इस खेल में सांड को भी चोट पहुंचती है. कई बार खेल खेलने वाले को भी भयंकर चोटे पहुंचती है. संसद ने 1960 में एक कानून बनाया था. यह कानून जानवरो पर अत्याचार रोकने का है. जलीकट्टू का विवाद 2004 में तब शुरु हुआ था.  जब एक नौजवान की मौत को गई थी. जिस की मौत हुई , उस का परिवार कोर्ट में गया. मद्रास हाईकोर्ट ने 2007 में जलीकट्टू को बैन कर दिया. मानला सुप्रीमकोर्ट में आया. 2008 से मामला सुप्रीमकोर्ट में .  तब से सुप्रीम कोर्ट कई गाईड लाईन जारी करता रहा. उन गाईड लाईन का पालन होता रहा. 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जलीकट्टू  पर रोक लगा दी. उस पर पुनर्विचार याचिका दाखिल हुई. नवम्बर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी.  लिहाजा जलीकट्टू पर लगी रोक जारी हो गई.. सुप्रीम कोर्ट ने कहा :-" मनोरंजन के नाम पर जानवरों पर अत्याचार को इजाजत नहीं दी जा सकती.  जब जानवरों को अत्याचार से बचाने के लिए केंद्रीय कानून हैं.  तो जानवरों की दौड़ तरह के आयोजनों को इजाजत नहीं दी जा सकती."  कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा-" इंसानों के मनोरंजन के लिए बैलों की दौड़ की इजाजत नहीं दी जा सकती. ये संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ तो है ही. जानवरों के प्रति क्रूरता  भी है." कोर्ट ने एक अजीबो-गरीब सुझाव दिया-" अगर कोई ऐसा मनोरंजन करना चाहता है . तो फिर वो कंप्यूटर पर करे." कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ़ जयललिता सरकार गई थी. सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु ने कहा-" मैराथन में भी लोग दौडते हैं तो जलीकट्ट में क्या दिक्कत हो सकती है? "  इस पर  कोर्ट ने कहा -" मैराथन दौड़े या नहीं ये लोगों की इच्छा पर है . जलीकट्ट में दौड़ने वाले बैल अपनी इच्छा नहीं रख सकते. " कोर्ट अपनी जगह पर अड गया है.  फिलहाल जलीकट्ट पर रोक लगा दी. अब तमिलनाडू में लोग सडको पर हैं. सरकार मुश्किल में फंस गई.  सीएम पन्नीरसेल्वन  बुधवार को भागे-भागे दिल्ली आए. पीएम से मिले. पर पीएम मोदी सुप्रीम कोर्ट से पंगा लेने के मूड में नहीं . ऊपर से जानवरो से प्यार करने वाली संस्थाओ का दबाव. मोदी ने जलीकट्ट के सांस्कृतिक अहमियत की तारीफ तो की .हर तरह की मदद देने का आश्वासन भी दिया. पर कोर्ट के आदेश को रोकने वाले आदेश के खिलाफ आर्डिनेंस से इंकार कर दिया. जैसे ही यह खबर चैन्नई के मरीना बीच पर प्रदर्शन कर रहे लोगों को मिली. वे भडक गए . गुस्सा  कोर्ट की बजाए मोदी के खिलाफ हो गया. मोदी की तस्वीर वाले प्लेकार्ड प्रदर्शनकारियों के हाथों में नजर आए. मोदी के खिलाफ नारेबाजी शुरु हो गई. पन्नीरसेल्वम, शशिकला और मेनका गांधी के खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई. फिल्मी हस्तिया भी जलीकट्ट के समर्थन में उतर आई हैं. यह कोई भारत के एक प्रांत का ही खेल नहीं. स्पेन का तो राष्ट्रीय खेल ही है सांडो की लड़ाई . तो फिर इसमे क्या हर्ज है .यदि तमिलनाडु व केरल मे इस खेल को मनाया जाता है. पर अब रास्ता क्या है. एक तरफ पेटा जैसी जानवरो की सुरक्षा करने वाली संस्थाए. दूसरी तरफ तमिलनाडू की सडको पर उतरे नागरिक. बीच में कोर्ट और सरकार. केंद्र सरकार ने गैंद राज्य सरकार के पाले में डाल दी. अगर यह खेल है. तो  खेल राज्य का विषय है, केंद्र का नहीं. अगर अध्यादेश लाना है तो राज्य लाए. केंद्र जानवरो से अत्याचार के खिलाफ बने 1960 के कानून का उलंघन क्यो करे.  तमिलनाडू सरकार अध्यादेश ला सकती है. अध्यादेश में खेल के नियम और शर्ते जोड दे. जैसे कोई सांड पर पत्थर नहीं फैंकेगा. कोई सांड को नुकसान नहीं पहुंचाएगा. पन्नीरसेल्वन को भले ही मोदी ने खाली हाथ भेज दिया. पर हल निकालने का फार्मूला तो बता दिया. 

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