सबसे पहले उत्तराखंड कांग्रेसमुक्त होगा

Publsihed: 16.Jan.2017, 17:49

यूपी तो बहुत साल से कांग्रेस मुक्त जैसी ही है. इस बार अखिलेश यादव के सहारे 28 को 50 बनाने की सोच रहे. वैसे जब शीला दीक्षित को सीएम प्रोजेक्ट किया . तो सपना 205 का था. पर पी.के की बनाई खाट टूट गई. तो अब अखिलेश के सहारे मोटरसाईकिल की सवारी होगी. शीला तो बेचारी हो कर दिल्ली लौट रही. यो तो चुनाव आते ही दलबदल का भी मौसम आता है. पर इस बार तो कुछ ज्यादा ही उथल-पुथल हो रही. कांग्रेस से रीटा बहुगुणा जैसी दिग्गज भाजपा में गई . तो बसपा से स्वामी प्रशाद मौर्य जैसा दिग्गज. अब सपा से आगरा के राजा और रानी भाजपा में चले गए. अशोक प्रधान तो पता नहीं क्या सोच कर 2014 में सपा में गए थे. जब सब बीजेपी का रूख कर रहे थे. तब वह बीजेपी छोड सपा में चले गए. वह वाजपेयी सरकार में मंत्री थे. पर उन का कल्याण सिंह से छतीस का आंकडा था. कल्याण सिंह ने उन की टिकट कटवा दी थी. मुलायम ने अशोक प्रधान को हाथो-हाथ लिया था. राष्ट्रीय महासचिव बना दिया. अब जब साईकिल पंक्चर हो गई . कल्याण सिंह गवर्नर बन कर राजनीति से आऊट हो गए. तो अशोक प्रधान को  घर वापसी का अच्छा मौका लगा . तीन बार के सपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर भी भाजपा में चले गए. गौंडा की नंदिता शुक्ला भी तैयारी में . हाथी और हाथ ही जख्मी नहीं हुए. साईकिल भी पुर्जे पुर्जे हो गया. वैसे बाप-बेटा ने भी साईकिल की रेड पीटने में कसर नहीं छोडी. पंजाब में जरुर गाडी उल्टी दिशा में दौडी. जब एंटरटेनर सिध्दू भाजपा का दामन छोड कांग्रेस में चले गए. नवजोत सिंह सिध्दू ने कभी राहुल को पप्पू और सोनिया को मुन्नी बदनाम हुई कहा था. वह भाजपा को अपनी मा कहते थे. पर जब वह कांग्रेस में गए. तो राजनीतिक मसखरेबाजी शुरु हो गई. पंजाब बीजेपी के प्र्धान विजय साम्पला ने सिध्दू को कपूत कहा. तो सिध्दू ने भाजपा को मा कैकई कह डाला. यूपी में सगे बाप-बेटे का राजनीतिक ड्रामा. तो पजाब में राजनीतिक बेटे का राजनीतिक मा को तलाक. वैसे बीजेपी ने सिध्दू के जाने की भरपाई पहले ही कर ली. सोमवार को सिध्दू जब कांग्रेस दफ्तर में मीडिया से  जुमलेबाज़ी कर रहे थे. तो उन की बगल में रवनीत सिंह बीटू बैठे थे. पंजाब के सीएम रहे बेअंत सिंह का पोता है बिटू. बिटू की बुआ शनिवार को ही कांग्रेस छोड बीजेपी ज्वाइन कर चुकी. चलते चलते चलो अपन अब उत्तराखंड की बात कर ले . उत्तराखंड तो जैसे सब से पहले कांग्रेस मुक्त होगा. नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था. जिस पर उत्तराखंड ने अमल करना शुरु कर दिया. पहले 9 विधायक कांग्रेस छोड भाजपा में गए. फिर एक और विधायक रेखा आर्य भाजपा में गई. अब यशपाल आर्य भाजपा में चले गए. कांग्रेस 2012 में 32 सीटे जीती थी. भाजपा 31 जीती थी. विजय बहुगुणा सीएम बने. तो उन ने भाजपा में सेंध लगा कर कांग्रेस की 33 कर दी थी. उन 33 में से 11 निकल गए. तो अब कांग्रेस में 22 एमएलए ही रह गए. एन.डी.तिवारी अपने बेटे शेखर को ले कर बीजेपी जा रहे. तिवारी और हरीश रावत का हमेशा से छत्तीस का आंकडा रहा. जब तक कांग्रेस में तिवारी की तूती बोली. उन ने हरीश को आगे नहीं बढने दिया. तिवारी आंध्र प्रदेश के सेक्स कांड में फंसे तब जा कर हरीश रावत के दिन बहुरे. पर हरीश रावत सीएम बनते ही. भूखे शेर की तरह सत्ता पर झपट पडे. सत्ता तो सत्ता कांगेस भी मुठ्ठी में कर ली. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से पहले यश पाल आर्य को हटवाया. अपना खास किशोर उपाध्याय अधयक्ष बनवाया . फिर किशोर उपाध्याय को अपना चपडासी बना कर छोडा. किशोर उपाध्याय कभी कुमाऊनी ठाकुर हरीश रावत के गढवाल में ब्राहमण हनुमान हुआ करते थे. अब जरा कोई किशोर से हरीश रावत के बारे में पूछे. अपन को डर है कही किसी दिन किशोर भी ग्यारह अशोका रोड न पहुंच जाए. इंदिरा ह्रदेश पता नहीं क्या सोच कर अभी कांग्रेस में बैठी है. हरीश रावत ने सब से ज्यादा नुकसान तो इस ब्राहमण नेत्री का किया. एन.डी.तिवारी जब सीएम थे. तो इंदिरा ह्रदेश की तूती बोलती थी. लोग तो कहते हैं सरकार इंदिरा ही चलाती थी. तब माना जाता था तिवारी के बाद इंदिरा सीएम होंगी. पर तिवारी के बाद पांच साल बीजेपी के दो ब्राहमण सीएम रहे. कांग्रेस की बारी आई. तो गढवाल के ब्राहमण विजय बहुगुणा की लाटरी खुल गई. कुमाऊ की बारी आई. तो ठाकुर हरीश रावत बन गए. ब्राहमणी बेचारी बीच में झूलती रही. और हरीश रावत ने कुमाऊ और गढवाल के सारे ब्राहमण ठिकाने लगा दिए. यशपाल आर्य छोड गए. तो समझो दलित भी किनारे लगा दिए. सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत जैसे गढवाल के ठाकुर भी कांग्रेस से निपट लिए. पर अभी तो चुनाव की डुगडुगी बजी है. टिकटे बंटनी शुरु हुई हैं. दलबदल का मौसम शुरु हुआ है. उत्तराखंड में हवा का रूख बीजेपी की और है. हरीश रावत ने अपने कर्मो से कांग्रेस का बाज़ा बज़ाया. वह मिठी गोली देने वाले नेता के तौर पर जाने जाएंगे. कांग्रेस के 11 विधायको ने हवा का रूख तय कर दिया. पिछली बार बीजेपी की 31 सीटे आई थी. उन में 11  और जोड ले तो 42 हो जाएंगी. हवा का यही रूख चलता रहा. तो यही नतीजा होगा.  

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