पत्नियो का पतियो के लिए चुनावी त्याग 

Publsihed: 18.Jan.2017, 05:44

टिकटो का बंटवारा शुरु हो गया.  और दलदल का मौसम भी.  इधर से टिकट नहीं मिली तो उधर से सही.  उधर से भी नहीं मिली. तो इंडिपेंडंट आजमाएंगे.  विचारधारा अब कोसो पीछे छूट गई. आखिरी दिन भी निष्ठा बदल जाती है. यूपी में भाजपा की पहली लिस्ट में ही 40 गैर भाजपाई बाजी मार ले गए. उत्तराखंड में 14 कांग्रेसी भाजपा के टिकट झटक ले गए.  एक-आध की अभी और भी गुंजाईश. इसी लिए अपन ने लिखा उत्तराखंड सब स्रे पहले कांग्रेस्मुक्त होगा. जब सारी कांग्रेस भाजपा में मिल जाएगी. तो कांग्रेस कहाँ रहेगी. सोमवार को जब भाजपा के टिकट बंट रहे थे. तो अपन को भाजपा दफ्तर में एक पुराना भाजपाई मिला. टिकट की उम्मींद में दिल्ली आया था.  पर उस की सीट से कांग्रेसी टिकट झटक ले गया. उसी समय विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत नई खेप ले कर पहुंचे. यशपाल आर्य ,उन का बेटा और केदार सिंह.  तीनो तुरंत टिकट भी पा गए.  तो निराशा में वह बोला:-" हरीश रावत को ही ले आते. चुनाव लडने-लडाने का झंझट ही खत्म होता. वह खुद ही चुनाव लडवा लेता." पर असली लडाइ उत्तराखंड की नही. उत्तराखंड में तो हरीश रावत अब हारी हुई लडाइ लड रहे. उन की किस्मत में एक बार सीएम बनना लिखा था. बन लिए.  असली लडाई तो यूपी और पंजाब में . पंजाब में राहुल गांधी ने अच्छा गेम किया.  अमरेंद्र सिंह खुद को फन्ने खा समझते थे.  पहले नवजोत सिंह सिध्दू के रास्ते में रोडे अटकाते रहे. जब देखा कि राहुल उसे ला ही रहे हैं. तो उनने अमृतसर लोकसभा सीट का दाव चल दिया. इस्तीफा दे कर सीट खाली कर दी.  ताकि सिध्दू लोकसभा सीट पर चुनाव लडे.  इसी लिए सिध्दू को मोल-भाव करने में वक्त लगा. सिध्दू की नजर सीएम की कुर्सी पर. आखिर राहुल से सौदा हुआ. राहुल ने पजाब में दो जाटो को भिडा दिया. अब अमरेंद्र कांग्रेस के सर्वमान्य नेता नहीं होंगे.  सिध्दू अमृतसर से विधान सभा चुनाव लडेंगे. उस अमृतसर ईस्ट सीट से,जन्हा पहले उन की पत्नी एमएलए थी. पत्नी की जगह पति. ठीक इसी तरह का खेल उत्तराखंड में हुआ.  अमृता रावत की जगह सतपाल महाराज लडेंगे, पर सीट बदल कर. पंजाब में सिध्दू की नजर सीएम पद पर उत्तराखंड में सतपाल महाराज की. दोनो की पत्नियो ने पतियो के लिए त्याग की मिसाल कायम की. यूपी में भी सारा खेल पत्निया ही कर रही. अखिलेश की पत्नी राजनीति की अनाडी नहीं रही. दिल्ली में प्रियंका से मुलाकात कर गठंबधन के बीज डिम्पल यादव ने ही बोए.  अपन पहले ही लिख चुके. वह स्टार प्रचारक बनेगी. बात यूपी हो रही. तो अपन बाप-बेटे की जंग की कहाँई भी बता दे.  जंग की पटकथा किसी पीके ने लिखी थी. पटकथा में मुलायम तो शामिल थे. पर शिवपाल-अमर सिंह अनजान थे. वरना यह कैसे होता कि अखिलेश दफ्तर पर कब्जा भी करता और रिज जा कर मुलायम से मिलता भी.  अब यह राज कभी न कभी तो खुलेगा ही. अक्सर मुलायम-अखिलेश जब जंग के दौरान अकेले में मिलते थे, तो क्यू बात करते थे. अपन को एक जानकार बता रहा था. पटकथा उस कम्पंई ने लिखी थी, जिस ने अमेरिका के चुनाव में ट्रम्प की लिखी थी. पटकथा पर बाप-बेटे में बात हुई , सहमति हुई और ड्रामा शुरु हुआ.  आप सोचो क्या जोरदार पटकथा थी. दो महीने तक अखिलेश ही अखिलेश छाए रहे. मीडिया भी अखिलेश की छवि बनाने को मजबूर हुआ. अब अमेरिकी-रूसी कम्पनिया सरकारे बनाने-बिगाडने लगी. अखिलेश ने कितना पैसा खर्च किया होगा. जो कांग्रेस मोदी पर विदेशी कम्पनी से प्रचार कराने का आरोप लगाती थी. पता नहीं कितने हजार करोड का खर्चा बता रही थी. अब वही कांग्रेस अखिलेश से गठबंधन की फिराक में. क्या दिग्गज समाजवादी मुलायम के खिलाफ साजिश में कांग्रेस भी शामिल थी. इधर बाप-बेटे की फर्जी जंग चुनाव आयोग पहुंची. उधर दिम्पल ने प्रियंका से मुलाकात की. अगले ही दिन दोनो के पोस्टर आ गए. जब सपा और साईकिल का फैसला नहीं हुआ था. तभी शीला दीक्षित ने सपा गठबंधन और मुख्यमंत्री पद से हटने का एलान किया. कपिल सिब्बल चुनाव आयोग में अखिलेश की पैरवी करने गए. इधर अखिलेश को सपा और साईकिल मिली,उधर गुलाम नबी का बयान आ गया. बोले;- " सपा से गठबंधन कर के चुनाव लडेंगे." इधर सपा और साईकिल अखिलेश को मिले. उधर शीला दीक्षित एकतरफा मैदान से हट गई.  बोली, जब गठबंधन होगा. तो मउख्यमंत्री पद के दो दावेदार नहीं हो सकते. ग़ठबंधन में अजित सिंह भी शामिल होगे. पर अजित सिंह रणनीति में मात खाएंगे. जाट मुज्जफरनगर  अभी भूले नही. अभी तो अनेको जाट नौजवान जेल में. अपना तो यह पक्का मानना है, इस बार यूपी में जाट और मुस्लिम एक जगह वोट नहीं देंगे.  मुस्लिम अखिलेश-राहुल  गठबंधन की तरफ मुडे.  तो पश्चिम उत्तरप्रदेश में ध्रुविकरण होगा. जिस में अजित की रालोद का सूपडा साफ होगा. भाजपा फायदे में रहेगी. भले ही अखिलेश के गठबंधन से सेक्यूलर मीडिया गदगद हो. पर यूपी में आज भी भाजपा पहले नम्बर पर.  

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