आखिर पीएम ने बनाया अंतुले की छुट्टी का मन

Publsihed: 20.Dec.2008, 09:27

अंतुले से बयान पलटने को कहा गया। पर वह अचानक कट्टरवादी चौगा पहनने लगे। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी वाले शहाबुद्दीन नए दोस्त बन गए। शकील अहमद भी अंतुले को चने के झाड़ पर चढ़ाने लगे। अंतुले कभी कट्टरवादी नहीं रहे। कहा करते थे- 'मैं अब्दुल रहमान बाद में हूं। पहले अंतुले हूं।' अंतुले यानी चित्तपावन ब्राह्मण। पूर्वजों ने कभी इस्लाम कबूल किया होगा। यह वह फख्र से कहते रहे। शकील अहमद कह रहे थे- 'मुसलमानों ने अंतुले को कभी अपना नेता नहीं माना। पर मीडिया ने तीन दिन में बना दिया।' इन तीन दिनों में भले संसद में कांग्रेस की किरकिरी हुई। किसी ने अंतुले की उम्र पर फब्ती कसी। किसी ने दिमागी चैकअप की मांग उठाई। पर अंतुले की सेहत पर असर नहीं। अंतुले का रिकार्ड पल-पल बयान बदलने का। फिर ऐसा क्या हुआ। जो अंतुले अड़ गए। शुक्रवार को उनने फिर कहा- 'कांग्रेस और सरकार को तो मुझ पर फख्र करना चाहिए। परेशानी किस बात की।' अपन इसकी वजह बता दें। अंतुले के फोन की घंटी कभी दिनभर नहीं बजती थी। केबिनेट मंत्री जरूर थे। पर बैठने को दफ्तर तक के लाले थे।

अब तीन दिन से फोन की घंटी है कि रुकी नहीं। किसी नेता की यही सबसे बड़ी खुराक। अस्सी की उम्र में पहुंचे अंतुले अचानक मुस्लिम नेता हो गए। शहाबुद्दीन को ही लो। हाल ही में कांग्रेस छोड़कर गए थे। अंतुले को बधाई का फोन कर कहा- 'खुश कर दिया।' उर्दू अखबारों ने अपने पाठकों से राय मांगनी शुरू कर दी। पता है- क्या नतीजा निकला। 'सियासत' की वेबसाईट से नतीजा निकला- 'नब्बे फीसदी लोगों ने अंतुले को सही माना।' मुस्लिम नेताओं की बधाइयों से अंतुले के पांव जमीन पर नहीं पड़े। आपको याद होगा। नटवर सिंह जब तेल के बदले अनाज घोटाले में फंसे। तो कांग्रेस में जूझ रहे थे। हजारों जाट नटवर की हिमायत में दिल्ली आए। तो नटवर फूले नहीं समाए थे। हू-ब-हू वही हालत अब अंतुले की। पर नटवर और अंतुले में बहुत फर्क। सोनिया की दुविधा बनी रही- अगर अंतुले को हटाया। तो कहीं मुस्लिम वोटर खफा न हो जाएं। बड़ी मुश्किल से पाले में लौटे हैं। शुक्रवार को संसद में फिर हंगामा हुआ। एसएस आहलुवालिया की फब्ती तो कांग्रेस को अंदर तक जख्मी कर गई। बोले- 'अंतुले आईएसआई या दाऊद के हाथों खेल रहे हैं।' कांग्रेस खून का घूंट पी गई। दोनों सदनों में जवाब आया- 'तेईस दिसंबर सत्रावसान से पहले बयान देंगे।' अपन अंदर की बात बताएं। अंतुले ने पीएम से साफ कह दिया- 'अगर लगता है, मैंने कुछ गलत कहा। तो मैं इस्तीफे को तैयार हूं।' पर प्रणव दा का मनमोहन पर दबाव- 'अंतुले से बयान बदलाओ। वरना पाकिस्तान बेजा इस्तेमाल करेगा।' पता नहीं प्रणव दा ने खुद बात की या नहीं। पर अपन बता दें- प्रणव दा की अंतुले से दोस्ती बहुत पुरानी। यों अंतुले ने शुक्रवार को बयान में सुधार किया। पर तेवरों में कोई फर्क नहीं आया। बोले- 'करकरे जैसा इंसान लाखों में एक पैदा होता है। पाकिस्तानी आतंकियों के हाथों मरने के लिए किसने उन्हें वहां भेजा?' पहले उनने पाकिस्तानी आतंकी का जिक्र नहीं किया था। इसी पर बवाल खड़ा हुआ। पर शुक्रवार को उनने आगे कहा- 'करकरे आतंकवाद का शिकार हुए। या आतंकवाद के साथ कुछ और भी था। मैं नहीं जानता।' फिर वही करकरे की हत्या पर संदेह। मनमोहन इससे और खफा होने ही थे। ऊपर से कांग्रेस में गहरे मतभेद शुरू हो गए। पार्टी के सारे मुस्लिम नेता अंतुले की हिमायत पर उतरते दिखे। एक मुस्लिम केंद्रीय मंत्री ने यहां तक कहा- 'करकरे आरएसएस-आईएसआई गठजोड़ की जांच करने वाले थे।' पर कांग्रेस के हिंदू नेता अंतुले की फौरन बर्खास्ती के हिमायती।  फूट और न बढ़े। सो मनमोहन ने तो इस्तीफा लेने का मन बना लिया।

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