हमला हल नहीं, पर पाक हमें कमजोर न समझे

Publsihed: 11.Dec.2008, 21:07

अपन को उम्मीद नहीं थी। आडवाणी इतनी जल्दी मान जाएंगे। पर उनने राजस्थान-दिल्ली में हार की वजह गुटबाजी मान ली। उनने लोकसभा में कांग्रेस से कहा- 'हम राजस्थान-दिल्ली में हार गए। तो इस गलतफहमी में मत रहिएगा- आतंकवाद मुद्दा नहीं। हम अपनी गलतियों से हारे। कांग्रेस की वजह से नहीं। आतंकवाद देश के सामने गंभीर मुद्दा।' तो उनने मान लिया- राजस्थान में गुटबाजी ले डूबी। तो दिल्ली में मल्होत्रा को सीएम प्रोजेक्ट करने की गलती। पर बात आतंकवाद की। संसद के दोनों सदनों में आतंकवाद पर एकजुटता दिखी। आडवाणी ने कहा- 'यहां कौरव-पांडव एकजुट। दुश्मन के खिलाफ हम सौ और पांच नहीं, अलबत्ता एक सौ पांच।' चिदंबरम से लेकर प्रणव दा तक। आडवाणी से लेकर मोहम्मद सलीम तक। सबने पाकिस्तान को आतंकवाद का जिम्मेदार माना।

पर पाक पर हमले को प्रणव दा ने सिरे से नकार दिया। भले ही लोकसभा में मोहन रावले ने मांग उठाई। राज्यसभा में अरुण शौरी ने कहा- 'आंख के बदले आंख नहीं, दोनों आंखें। दांत के बदले दांत नहीं, पूरा जबड़ा।' पर प्रणव दा धमकियां देकर भी संयत बने रहे। बोले- 'हमला समस्या का हल नहीं।' भारत को सबसे बड़ी उपलब्धि सुरक्षा परिषद से मिली। अपन ने कल ही बताया था- 'जमात-उद-दावा पर बैन की बात चल रही है सुरक्षा परिषद में।' सो गुरुवार सुबह प्रस्ताव पास हो गया। जमात-उद-दावा आतंकवादी संगठन घोषित हो गया। संगठन के चीफ हाफिज मोहम्मद सईद भी आतंकी घोषित। मुंबई पर हमले के साजिशकर्ता जकी-उर-रहमान लखवी, लश्कर-ए-तोएबा के हाजी मोहम्मद अशरफ और जकी-उर-बहाजिक भी। अब पाक को कार्रवाई करनी होगी। खाते सील करने होंगे। जायदाद सील करनी होगी। हथियारों की आपूर्ति रोकनी होगी। वैसे अपन बताते जाएं- अमेरिका ने दाऊद को भी आतंकवादी घोषित किया था। पर वह कराची में गुलछर्रे उड़ा रहा है। आडवाणी ने पूछा। तो प्रणव दा ने कहा- 'पाक से हर मीटिंग में दाऊद मांगा।' प्रणव दा संयुक्त राष्ट्र के फैसले पर खुश दिखे। पर हाथों-हाथ कहा- 'हमें बताया जा रहा था- जमात-उद-दावा का चीफ हाफिज मोहम्मद सईद शिकंजे में। पर वह टीवी पर बोल रहा है।' तो अपन बताते जाएं- बैन के फौरन बाद हाफिज ने लाहौर में प्रेस कांफ्रेंस की। बोले- 'हम बैन के खिलाफ पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय अदालतों में लड़ेंगे। भारत और अमेरिका हमारे खिलाफ सबूत पेश करें। हमने मुंबई पर हमला नहीं किया।' एक तरफ हाफिज का यह बयान। जिनने जमात-उद-दावा को सामाजिक संगठन कहा। तो दूसरी तरफ संगठन के गुलाम कश्मीर चीफ मौलाना अब्दुल अजीज अल्वी की सुनिए। बोले- 'हम अपनी गतिविधियों के लिए सुरक्षा परिषद से इजाजत नहीं लेते। हमें बैन की कोई फिक्र नहीं।' पर अल्वी ने 2001 से बैन लश्कर-ए-तोएबा से संबंध कबूले। कहा- 'जमात-उद-दावा लश्कर पर बैन के बाद नहीं बनी। अलबत्ता पहले से थी।' पर अपन बात कर रहे थे संसद की। जहां आतंकवाद के खिलाफ बहस भी हुई। प्रस्ताव भी पास हुआ। लोकसभा में बयान देकर चिदंबरम ने बहस की शुरूआत की। तो राज्यसभा में वही बयान श्रीप्रकाश जायसवाल ने दिया। चिदंबरम ने माना- खुफिया रपट तो आई थी। पालन करने में चूक हुई। आगे से गलतियां न हों। सो खुफिया ढांचा मजबूत होगा। मल्टी को-आर्डिनेशन एजेंसी कारगर बनाई जाएगी। जिस फेडरल एजेंसी की बात हो रही थी। उस पर चिदंबरम बोले- 'राष्ट्रीय जांच एजेंसी बनेगी।' यानी सीबीआई से मिलती-जुलती एजेंसी। बात सीबीआई की चली तो बताते जाएं। सीबीआई के बेजा इस्तेमाल का एक और सबूत सामने आ गया। मुलायम सिंह को आमदनी से ज्यादा संपत्ति के मुकदमे से बचाने की कोशिश। आखिर सरकार बचाने का मुआवजा तो देगी ही कांग्रेस। पर बात पाकिस्तान की। प्रणव दा और आडवाणी ने दो टूक कहा- 'पाकिस्तान अब बेवकूफ बनाना बंद करे। आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करे।' तो राज्यसभा में मनमोहन बोले- 'पाकिस्तान हमारे संयम को कमजोरी न समझे।'

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