जमीनी हकीकत ने बदली चुनावी रणनीति

Publsihed: 14.Oct.2007, 10:59

लोकसभा पर मंडराए बादल फिलहाल छंट गए। एटमी करार को ठंडे बस्ते में डाल मनमोहन इतवार को पांच  दिन की विदेश यात्रा पर रवाना होंगे। नेहरू के बाद मनमोहन द्विपक्षीय  बातचीत के सिलसिले में नाइजीरिया जाने वाले पहले पीएम होंगे। नेहरू 1962 में नाइजीरिया गए थे। वाजपेयी 2003 में नाइजीरिया जरूर गए, पर कामन वेल्थ सम्मेलन के सिलसिले में। मध्यावधि चुनाव टालने के बाद सोनिया भी मंगलवार को रायबरेली रवाना होंगी।

वामपंथियों के लिए एक नया अच्छा संदेश भी है। नवरात्रों के बाद बाइस अक्टूबर को लेफ्ट-यूपीए मीटिंग होगी। उसके तीसरे ही दिन सोनिया गांधी तीन दिन के लिए चीन जाएंगी। चीन यात्रा से पहले सोनिया ने वामपंथियों को देशभक्ति का सर्टिफिकेट थमाते हुए कहा- 'किसी भी कांग्रेसी ने वामपंथियों को चीन का एजेंट नहीं कहा।' मनमोहन-सोनिया दोनों ने पहले वामपंथियों को चुनौती दी। बाद में अचानक नरम पड़ गए। तो एटमी करार समर्थकों को निराशा हुई। के. सुब्रह्मणयम को तो अब भी दोनों के पैंतरा बदलने की उम्मीद। पर इसकी गुंजाइश नहीं। सोनिया-मनमोहन ने काफी दबाव के बाद रुख बदला। कम से कम गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले कुछ नहीं होगा। जब चुनाव हो रहे होंगे। मनमोहन सिंह ठीक उस समय रूस जाएंगे। उनके साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नारायणन और परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष काकोड़कर भी होंगे। जहां परमाणु ऊर्जा के नए रास्ते खोलने की उम्मीद। आईएईए-एनएसजी से नवंबर की बातचीत टालने का फैसला सोच-समझकर हुआ। जमीनी हकीकत इस नई सोच की वजह। सोनिया ने कांग्रेस को चुनाव के लिए चाक-चौबंद कर लिया था। मनमोहन ने कुबेर का खजाना खोल दिया था। इसके बावजूद शरद पवार, लालू यादव, करुणानिधि को चुनावों से बेहतर नतीजों की उम्मीद नहीं हुई। इन तीनों ने अपने-अपने राज्यों की निराशाजनक तस्वीर पेश करते हुए कहा- 'कांग्रेस की देशभर में दस-बीस सीटें बढ़ भी गईं। तो इससे ज्यादा सीटें यूपीए दलों की घट जाएंगी। ऐसे हालात में चुनाव का कोई फायदा नहीं। सरकार बनाने के लिए फिर वामपंथी दलों का मुंह देखना पड़ेगा।' सोनिया-मनमोहन को आखिरी झटका कोर कमेटी में लगा। जब कांग्रेस के तीन बड़े नेता भी फौरी चुनाव के खिलाफ हो गए। आठ अक्टूबर की मीटिंग में प्रणव, अर्जुन के साथ शिवराज पाटिल की भी यही राय थी। तीनों की दलील थी- 'मध्यावधि चुनावों से कांग्रेस की छवि खराब होगी। एनडीए को कहने का मौका मिलेगा- कांग्रेस गठबंधन सरकार नहीं चला सकती।' तीनों नेताओं का यह भी कहना था- 'रामसेतु मुद्दे पर बीजेपी के हौंसले बुलंद। जिसका चुनाव पर भी असर होगा।' नौ अक्टूबर की यूपीए-लेफ्ट बैठक से ठीक सोलह घंटे पहले मनमोहन सिंह के घर यह निर्णायक बैठक हुई थी।

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