कांग्रेस बोली- 'नई बात नहीं महंगाई तो हम साथ लाए थे'

Publsihed: 24.Feb.2010, 06:04

यह अपनी मनगढ़ंत बात नहीं। खुद कांग्रेस ने कहीं है यह बात। वह भी कोई छोटे-मोटे नेता ने नहीं। अलबत्ता सोनिया की बगल में खड़े होकर कही गई। वह भी ताल ठोककर। कहां कही, किसने कही, कब कही। उस सबका खुलासा अपन बाद में करेंगे। पहले बात संसद ठप्प होने की। पहले ही दिन दोनों हाऊस नहीं चले। शुकर है इस बार विपक्ष ने जनता का मुद्दा उठाया। महंगाई का। जिस पर कांग्रेस के सहयोगी भी घुटन महसूस कर रहे। खासकर ममता और करुणानिधि की पार्टियां। लालू-मुलायम भी। जो सरकार के साथ हैं, या नहीं। वे खुद भी नहीं जानते। सहयोगियों की बात छोड़िए। कांग्रेस की सांसद मीरा कुमार भी बोली- 'महंगाई से सचमुच जनता त्रस्त। सदन में प्रभावी बहस होनी चाहिए।' पर यह बात उनने कही बाहर आकर। अंदर काम रोको प्रस्ताव उन्हीं ने मंजूर नहीं किया। नामंजूर भी नहीं किया।

गेंद सरकार के पाले में डाल दी। सरकार को अपना बचाव करने को खड़ा कर दिया। पर नियम-60 कहता है- 'स्पीकर को मुद्दे की पूरी जानकारी न हो। तो वह मंजूर या नामंजूर करने से पहले नोटिस सदन में पढ़ेगा। और नोटिस देने वालों और मंत्री की दलीलें सुनेगा। उसके बाद अपना फैसला सुनाएगा।' मीरा कुमार ने नोटिस देने वाली सुषमा स्वराज को सुना। काम रोको प्रस्ताव का समर्थन करने वाले मुलायम को सुना। संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल को भी सुना। शरद पवार को नहीं सुना। बस, तभी हंगामा हो गया। ऐसा क्या कहा था पवन कुमार बंसल ने। जिस पर हंगामा हुआ। उसका खुलासा अपन बाद में करेंगे। पहले बताएं- विपक्ष चाहता क्या है। विपक्ष चाहता है- लोकसभा में काम रोको प्रस्ताव में बहस। राज्यसभा में नियम-167 में बहस। अपन बता दें- काम रोको प्रस्ताव का नियम-56 है लोकसभा में। विपक्ष चाहता है- इसी नियम के तहत हो बहस। सुषमा स्वराज की दलील है- 'यूपीए की पहली सरकार में महंगाई पर सात बार बहस हुई। दूसरी सरकार में भी एक बार हो चुकी। पर न सरकार ने सुध ली, न महंगाई घटी। अलबत्ता लगातार बढ़ रही है महंगाई। सो सरकार को संसद के प्रति जवाबदेह बनाना जरूरी। उसके लिए जरूरी है- उस नियम में बहस हो। जिसके बाद मतविभाजन हो।' राज्यसभा में यह नियम 167 है। पर सरकार की दुविधा अपन जानते हैं। लोकसभा में तो सरकार को कोई खतरा नहीं। भले ही लालू यादव भी विपक्ष के साथ चले जाएं। भले ममता बनर्जी भी विपक्ष के साथ खड़ी हो जाएं। भले करुणानिधि भी टीआर बालू को विपक्ष के साथ खड़ा कर दें। तब भी सरकार सौ से ज्यादा वोटों से जीतेगी। हां, टीआरएस जरूर खुलकर कहेगी- 'तेलंगाना बनाओ, वोट पाओ।' पर असली मुद्दा राज्यसभा का। जहां विपक्ष के सांसदों की तादाद यूपीए से ज्यादा। विपक्ष के पास हैं 125 सांसद। सिर्फ 107 हैं यूपीए के पास। सो राज्यसभा में सरकार की हार तय। लोकसभा में मान भी जाए। राज्यसभा में तो मतविभाजन के लिए कतई नहीं मानेगी सरकार। खैर दोनों हाऊस इस मुद्दे पर दिनभर के लिए उठ गए। मुद्दा सिर्फ यह- 'बहस किस नियम में हो।' सरकार का डर मंत्रियों के चेहरों पर साफ दिखा। विपक्ष के नेता के नाते सुषमा की पहली ललकार थी। सुषमा का खौफ ही सत्ता पक्ष पर आडवाणी से ज्यादा दिखा। हां, बता दें- मीरा कुमार ने जब सुषमा स्वराज का परिचय करवाया। तो आडवाणी की तारीफ में भी पुल बांधे। पर सदन नहीं चला। तो स्थगन का ठीकरा भी एक-दूसरे के सिर फोड़ने की होड़। सुषमा ने बताया- 'सरकार डर रही है। इसीलिए आज सदन नहीं चला।' पर काम रोको प्रस्ताव में बहस क्यों न हो। पवन कुमार बंसल की दलील भी बताना जरूरी। अलबत्ता वह पवन कुमार बंसल ही थे। जिनने ताल ठोककर कहा- 'महंगाई कोई तात्कालिक मुद्दा नहीं। जो काम रोककर बहस कराई जाए।' उनने सुषमा की दलील का सहारा लिया। जिनने कहा था- 'आठ बार बहस हो चुकी। सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी।' नियम-56 का सहारा भी लिया। सोनिया की मौजूदगी में ताल ठोककर बोले- 'काम रोको प्रस्ताव के लिए तात्कालिक मुद्दा होना चाहिए। महंगाई कोई तात्कालिक मुद्दा नहीं। यूपीए की पहले सरकार में भी सात बार बहस हुई। इस सरकार में भी बहस हो चुकी।' पवन कुमार बंसल की दलील का लब्बोलुबाब हुआ- 'महंगाई कोई नई बात नहीं। जो काम रोको प्रस्ताव लाकर बहस करें। महंगाई तो हम सत्ता में आते ही साथ लाए थे।' लगते हाथों बताते जाएं- पड़ोसी ही हैं सुषमा और पवन बंसल। सुषमा अंबाला की, बंसल चंडीगढ़ के। दोनों भिड़े लोकसभा में आमने-सामने

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