पवार की हरकतों पर कांग्रेस की तिरछी नजर

Publsihed: 11.Feb.2010, 06:09

देवीसिंह शेखावत के खिलाफ कोर्ट फैसले से कांग्रेस में हड़कंप। चौबीस अकबर रोड और दस जनपथ ने फौरी पड़ताल की। अभिषेक मनु सिंघवी को खबर नहीं थी। ब्रीफिंग खत्म हुई। तो उनने सवाल पूछने वाले से डिटेल पूछी। तभी एक मराठी मानुष खबरची ने कहा- 'जमीन घोटाले का मामला नया नहीं। अभी तो कई और घोटाले खुलेंगे।' सिंघवी ने साफ किया- 'राष्ट्रपति के परिवार को कानूनी कार्रवाई से छूट नहीं।' राष्ट्रपति भवन ने भी मुकदमे से नाता तोडा। कहा- 'किसी निजी व्यक्ति के मामले से राष्ट्रपति भवन का ताल्लुक नहीं।' अपन को राष्ट्रपति चुनाव में हुए आरोप-प्रत्यारोप नहीं भूले। कांग्रेस ने तब यह कहकर पीछा छुड़ाया था- 'उम्मीदवार पर तो कोई आरोप नहीं।' सवाल दागे गए। तो जवाब अब भी वही होगा।

पर कांग्रेस को अब उन आरोपों से फिर दो-चार होना पड़ेगा। बुधवार तीखे सवालों का पहला दिन था। बात महाराष्ट्र की चली। तो बताते जाएं- महाराष्ट्र की राजनीतिक जंग पर भी हुए तीखे सवाल। उध्दव ठाकरे और अशोक चव्हाण आमने-सामने हो चुके। चव्हाण ने कहा- 'शाहरुख खान की पिक्चर पर हिंसा हुई। तो उध्दव ठाकरे की सुरक्षा हटा लेंगे।' उध्दव को अच्छा मौका मिला। उनने सुरक्षा वापस भिजवाकर राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी। अशोक चव्हाण से कहा- 'आप तो अजमल कसाब की सुरक्षा करिए।' शिवसेना के हुड़दंगी बुधवार को सड़कों पर थे। एक खबरची ने कहा- 'शिवसेना ने सिनेमा हालों में सांप छोड़ने की धमकी दी है।' अभिषेक ने राजनीति के गिरते स्तर पर सवाल उठाया। पर शिवसेना की ऐसी हरकतों पर बीजेपी चुप्पी साधे रही। अपन ने चार फरवरी को भी लिखा था- 'बाल ठाकरे बीजेपी की लुटिया डुबाएंगे।' तब बिहार की बात थी। अब महाराष्ट्र भी जोड़ लीजिए। पर राजनीतिक दांव-पेंच की नई सुगबुगाहट बताते जाएं। शरद पवार के भतीजे अजीत पवार आजकल दिखाई नहीं दे रहे। सुनते हैं- बाल ठाकरे के संपर्क में हैं अजीत। याद है 2007 में क्या हुआ था कर्नाटक में। देवगौड़ा के बेटे कुमार स्वामी ने बीजेपी से मिलकर धर्मसिंह सरकार गिरा दी थी। देवगौड़ा अपने बेटे से नाता तोड़ने का नाटक करते रहे। पर देवगौड़ा के सारे विधायकों ने मिलकर बीजेपी-जेडीएस सरकार बनवा दी। कहीं शरद पवार भी भतीजे से वहीं खेल न करवा दें। तीस निर्दलीय विधायक बनवा सकते हैं अजीत-उध्दव सरकार। पवार विरोध भी करेंगे, समर्थन भी। इस सुगबुगाहट से दस जनपथ अनजान नहीं। महाराष्ट्र के एक खबरची के हवाले से खुद अभिषेक सुना रहे थे सुगबुगाहट। पर अभिषेक मनु बुधवार को महंगाई पर बुरे फंसे। सवाल तेल की कीमतों पर हुआ। तो उनने कीमतें बढ़ने से इनकार नहीं किया। कीमतें बढ़ाने की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी। आजकल में बढ़ेंगी। इस बार गैस सिलेंडर और मिट्टी तेल भी। ज्यादा बढ़ीं। तो कांग्रेस विरोध करेगी। फिर कुछ 'रोल बैक' होगा। पर तेल की कीमतों का असर महंगाई पर होगा। तो कंगाली में आटा गीला होने वाली बात होगी। फिर महंगाई का ठीकरा पवार पर नहीं। कांग्रेस के सिर ही फूटेगा। याद करा दें- महंगाई की मुद्रास्फीति 17 फीसदी से पार हो चुकी। जैसा नितिन गड़करी ने सोमवार को ऐलान किया था। बीजेपी बुधवार को सड़कों पर उतर आई। नितिन गड़करी, सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी सब जंतर-मंतर पर दिखे। पर बीजेपी का महंगाई पर धरना कांग्रेस को हजम नहीं हुआ। अभिषेक बोले- 'बीजेपी कभी सकारात्मक राजनीति नहीं करती।' तभी किसी ने याद कराया- 'एनडीए राज में तो महंगाई इतनी नहीं बढ़ी थी। फिर भी कांग्रेस सड़कों पर उतरी थी।' सिंघवी को काटो तो खून नहीं। बात आम आदमी और गरीबों की चली। तो उनने कहा- 'पिछले साठ साल में असंगठित मजदूरों के लिए इतना नहीं हुआ। जितना मनमोहन सिंह के साढ़े पांच साल में।' अपन भौंच्चक रह गए। क्या नेहरू-इंदिरा-राजीव को पीछे छोड़ गए मनमोहन। अपन तो सोच ही रहे थे। तभी यही सवाल हो गया। फिर वही, काटो तो खून नहीं।

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