राहुल बाबा ने उस दिन गलती से बिहार की जगह गुजरात कह दिया। तो बवाल खड़ा हो गया। बवाल से नरेन्द्र मोदी गदगद हुए। अब वरुण बाबा ने मंहगाई पर दोधारी तलवार चलाई। तो फिर विवादों में फंस गए। उनने कहा - 'केन्द्र में रावण, तो प्रदेश में सूर्पनखा।' दोनों बाबाओं का विवादों से पुराना रिश्ता। खैर सोमवार राहुल और वरुण का नहीं। आरक्षण और मुखपत्रों की जंग का रहा। जिनके अपने मुखपत्र नहीं। उनने ब्लागों से जंग-ए-एलान कर दिया। कई दिन अमर सिंह ब्लाग पर तीर चलाते रहे। अमर सिंह तो मुलायम के कुनबे पर तीर चला रहे थे। पर लालकृष्ण आडवाणी ने मनमोहन पर निशाना साधा है। अमर सिंह निकाल बाहर किए गए। मुलायम ने अमर सिंह की जगह दूसरा ठाकुर मोहन सिंह भिड़ा दिया। मोहन सिंह अब मनमोहन-माया पर उतना नहीं बरसते। जितना अमर सिंह पर। ऐसे लगता है- जैसे ठाकुरों की जंग शुरु हो गई हो।
किसी ने मोहन सिंह से कहा- ठाकुर अमर सिंह के साथ जा रहे है। तो वह बोले - 'महाराणा परम्परा वाले मेरे साथ। मानसिंह परम्परा वाले अमर सिंह के साथ।' जंग किस स्तर पर पहुंच गई। इसका अन्दाज आप इस बात से लगाइए। मोहन सिंह ने कहा अमर सिंह अपने सारे राज खोल दें। नही तो गुर्दों के बाद हार्ट अटैक हो जाएगा। मोहन सिंह ने अमर सिंह के बड़े भइया अमिताभ बच्चन को भी नहीं बख्शा। बोले- वह पैसे के लिए इज्जत और कला को गिरवी रखने वाले हैं। अमिताभ का एम्बेसडर गुजरात बनना रास नहीं आ रहा। पर बात हो रही थी लालकृष्ण आडवाणी के ब्लाग की। वह भाजपा अध्यक्ष नहीं रहे। लोकसभा में विपक्ष के नेता नहीं रहे। सो उनने ब्लाग से बयानबाजी शुरु कर दी। ताजा हमला मनमोहन सिंह पर। मनमोहन सिंह ने सदन में दिया वादा तोड़ दिया। कहा था- 'जब तक 26/11 के साजिशकर्ताओं पर कार्रवाई नहीं होती। आतंकवादियों के ट्रेनिंग कैम्प खत्म नहीं होते। तब तक समग्र वार्ता नहीं होगी।' पर अब खुद भारत ने भेजा है न्यौता। तो आडवाणी ने न्यौते को अमरीका का दबाव बताया। बात बेसिर पैर की भी नही। कुछ दिन पहले ही आए थे। बराक ओबामा के दूत रिचर्ड होलबु्रक। दिल्ली आकर इस्लामाबाद गए थे। आडवाणी के आरोप पर आप भरोसा भले न करें। पर सोमवार को रिचर्ड होलब्रुक ने कहा - अफगानिस्तान में शान्ति का कश्मीर से सीधा रिश्ता। मनमोहन सिंह की बात अपन छोड़ भी दें। तो कांग्रेस ने ताल ठोककर कहा था- जब तक पाकिस्तान कार्रवाई नहीं करता। तब तक बात नहीं होगी। पर सोमवार को कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी की जुबान बदली हुई थी। पूछा तो बोले- 'पाक ने माना है उसकी धरती का भारत के खिलाफ इस्तेमाल हुआ। भारत पर बातचीत का अन्तरराष्ट्रीय दबाव भी।' सोमवार को शाह महमूद कुरैशी ने भी खुलासा किया। उनने कहा - 'हमने नहीं भारत ने घुटने टेके।' तो सही हुआ न आडवाणी का अमरीकी दबाव का आरोप। पर बात रह गई मुखपत्रों की। शिवसेना का मुखपत्र सामना तो रोज सुर्खियों में होता ही था। अब एनसीपी का मुखपत्र 'राष्ट्रवादी' भी विवादों में। राष्ट्रवादी ने लिखा- चीनी नहीं खाने से कोई मर नहीं जाएगा। बात मंहगाई की चली। तो बता दें - नितिन गड़करी ने सोमवार को जोरदार विस्फोट किया। उनने आरोप लगाया है - कांग्रेस -एनसीपी नेताओं की कम्पनियों ने तीन हजार फीसदी मुनाफा कमाया। उनने पीएम को चुनौती दी- आप खुद उन कम्पनियों का नाम बता दो। मंहगाई के घोटाले का असर संसद के बजट सत्र में दिखेगा। जब विपक्ष मिलकर मनमोहन सरकार घेरेंगे। पर बात हो रही थी मुखपत्र की। तो बाल ठाकरे ने सामना में लिखा है- आईपीएल मैचों पर फैसला एकाध दिन में करेंगे। पता है न - शरद पवार ने इतवार रात बाल ठाकरे से मिलकर गुहार लगाई थी- मैच होने दें। ठाकरे को यह भी बताया गया- आस्ट्रेलियाई टीम नहीं खेलेगी। अलबत्ता हर टीम में कुछ आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी। ठाकरे-पवार की मुलाकात से अशोक चव्हाण के माथे पर बल। जब राहुल गांधी शिवसेना से दो-दो हाथ कर रहे हो। ऐसे में पवार का घुटने टेकना अखरना ही था। सो सोनिया से मुलाकात के बाद पवार पर भड़कते हुए मुम्बई लौटे। पर मनीश तिवारी और शकील अहमद जुबान खोलने से बचे। बड़ो की लड़ाई में छोटे न ही बोले तो अच्छा।
आपकी प्रतिक्रिया