कांग्रेस वर्किंग कमेटी पर दिखी राहुल की छाया

Publsihed: 06.Feb.2010, 06:15

कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग अर्से बाद हुई। महंगाई पर पिछली मीटिंग पंद्रह अगस्त के बाद उन्नीस अगस्त को हुई थी। अब छब्बीस जनवरी के बाद पांच फरवरी को। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के बीच महंगाई और बढ़ गई। वर्किंग कमेटी के दो मेंबर घट गए। शिवराज पाटिल पंजाब के गवर्नर हो गए। उर्मिला सिंह हिमाचल की। गैर कांग्रेसी सरकारों पर नंबरदार बनाकर भेज दिए। अर्जुन सिंह और सीके जाफर शरीफ की सेहत ने इजाजत नहीं दी। या कोपभवन में बैठे हैं दोनों। अर्जुन बेटी को टिकट नहीं दिला पाए थे। तो जाफर शरीफ पोते के लिए भटक रहे थे। नारायणस्वामी तो कहीं अटक गए होंगे। पर राहुल गांधी नहीं आए। तो महाराष्ट्र और पांडिचेरी के मुख्यमंत्री कैसे आते। कांग्रेस के 'युवराज' महाराष्ट्र-पांडिचेरी के दौरे पर थे। सो दोनों 'जी हुजूरी' में लगे थे। जी हुजूरी का जलवा तो मुंबई में दिखा। जहां गृहराज्यमंत्री रमेश भागवे ने राहुल के जूते उठा लिए।

बाल ठाकरे ने अशोक चव्हाण पर चुटकी ली थी- 'पिता शंकरराव चव्हाण ने संजय गांधी का जूता उठाया था। तो क्या अशोक चव्हाण अब राहुल का जूता उठाएंगे।' पर अशोक चव्हाण पर भारी पड़ गए रमेश भागवे। बात संजय गांधी की चली। तो बताते जाएं- बीजेपी अब वरुण को युवा मोर्चे की कमान देगी। पर बात राहुल की। शिवसेना या बीजेपी लाख मीन-मेख निकालें। जमीनी राजनीति कैसी होनी चाहिए। यह तो दिखा ही रहे हैं राहुल। मुंबई में लोकल ट्रेन पर चढ़े। तो एटीएम से पैसे भी निकाले। उध्दव ठाकरे इसे नौटंकी कहें, तो कहते रहें। राजनीति नौटंकी के सिवा रह भी क्या गई। अब यह राहुल की नौटंकी ही तो थी। जो उनने स्टूडेंट्स से कहा- 'राजनीति में परिवारवाद के दिन अब लद गए।' सबूत तो वह खुद सामने खड़े थे। युवक कांग्रेस के नए अध्यक्ष राजीव सातव भी। पर बात वर्किंग कमेटी की। बात संगठन चुनाव, बजट, तेलंगाना और सवा सौ साला समारोह की भी हुई। पर मीटिंग में छाई रही महंगाई। जैसा अपन ने पहले लिखा था। शरद पवार निशाने पर थे। विलासराव देशमुख, सत्यव्रत चतुर्वेदी और आरके धवन ने मोर्चा खोला। न मनमोहन सिंह ने अपने मंत्री का बचाव किया। न सोनिया गांधी ने घटक दल के नेता पर हमले रोके। तीनों ने पवार का नाम नहीं लिया। शुरूआत की पवार के घोर विरोधी विलासराव ने। बोले- 'कोई मंत्री कीमतें बढ़ने वाले बयान कैसे दे सकता है। मंत्री जब-जब बयान देते हैं। अगले दिन महंगाई और बढ़ जाती है।' उनने अनाज की सरकारी खरीद नीति पर भी निशाना साधा। कहा- 'सीधे किसान से खरीदकर मार्केट में भेजना चाहिए अनाज।' सत्यव्रत चतुर्वेदी मुंह पर जूता मारने के माहिर। अमर सिंह का बाजा वही बजाया करते थे। वर्किंग कमेटी में उनने पवार का बजाया। बोले- 'बेतुके बयान कोई मंत्री दे, हैरानी वाली बात है। बयानों से जमाखोरी बढ़ा रहे थे मंत्री।' उनने कहा- 'असल में यह सप्लायर और रिटेलर का खेल। जिसे रोकने में नाकाम रही केंद्र सरकार। कांग्रेसी राज्य सरकारें भी नाकाम रहीं।' सत्यव्रत जब बोल रहे थे। तो अशोक गहलोत ने टोका। बताया- राजस्थान में सरकार ने क्या-क्या कदम उठाए। बताते-बताते गहलोत वायदा बाजार पर बरसे। कहा- 'खाद्यान्न में वायदा बाजार को अभी भी इजाजत। जो बंद होनी चाहिए।' गहलोत ने सत्यव्रत को टोका था। तो मनमोहन सिंह ने गहलोत को टोका। कहा- 'जिंदगी जरूरीरियात की चीजों के वायदा बाजार पर रोक लग चुकी।' पवार पर तीसरे हमलावर थे धवन। वह भी पवार का नाम लिए बिना बोले- 'किसी मंत्री ने प्रधानमंत्री को कैसे घसीटा। यह घोर आपत्तिजनक। प्रधानमंत्री सबसे ऊपर होते हैं।' याद है- पवार ने महंगाई के लिए पीएम को भी घसीटा था। खैर गहलोत की तरह शीला दीक्षित ने भी सफाई दी। कर्ण सिंह का सुझाव जमाखोरी के खिलाफ नए कानून का था। यों हमला तो केंद्र सरकार पर रहा। पर अजीत जोगी जैसों ने ठीकरा राज्य सरकारों पर फोड़ने का फार्मूला भी सुझाया। जो चला नहीं। बात बजट की चली। तो सबने 'आम आदमी' का बजट बनाने की सलाह दी। जिसे प्रणव दा ने सिर-आंखों पर लिया। मीटिंग खत्म ही होने वाली थी। तभी एके एंटनी महाराष्ट्र पर बोले। उनने राहुल के बयानों और दौरे का जिक्र तो नहीं किया। पर ठाकरे परिवार की हिंदी भाषियों के खिलाफ मुहिम को खतरनाक बताया। कहा- 'हालात बेहद नाजुक। सावधानी से संभालने होंगे।'

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