महंगाई के मोल-तोल में सरकार एक कदम आगे, दो कदम पीछे

Publsihed: 30.Jan.2010, 06:36

महंगाई पर केबिनेट कमेटी हुई। तो शरद पवार ने दावा ठोका था- 'अब महंगाई घटनी शुरू हो जाएगी। कम से कम चीनी के दाम जल्द घटेंगे।' प्रेस कांफ्रेंस का ऐलान छपा। अखबारों की स्याही सूखी नहीं थी। खुद पवार ने दूध की किल्लत का रोना रो दिया। बात पवार की चल ही रही। तो बताते जाएं- शरद पवार का मंत्रालय ही परस्पर विरोधी। उनका मंत्रालय है- कृषि एवं खाद्य आपूर्ति। एक तरफ उनका काम फसलों और किसानों का हित देखना। देश को अनाज सही समय पर मिलता रहे। इसकी निगरानी करना। दूसरी तरफ आम आदमी को वाजिब कीमत पर खाद्य आपूर्ति करना। अब अगर वह किसानों के हितों की रक्षा करें। तो किसानों को वाजिब कीमत दिलाने की जद्दोजहद करेंगे। किसानों की चीजों के दाम बढ़ेंगे। तो उसका असर बाजार पर होगा ही। यानी आम आदमी को अनाज महंगा मिलेगा ही। सो हुआ ना परस्पर विरोधी मंत्रालय। किसके हितों की रक्षा करें? किसानों की या उपभोक्ताओं की।

सो कांग्रेस में मुहिम शुरू हो चुकी। कृषि को खाद्य आपूर्ति से अलग किया जाए। पर शरद पवार को यह कतई मंजूर नहीं। वह इतने कम वजनदार नेता भी नहीं। जो कृषि या खाद्य आपूर्ति में से एक चुन लें। देश के रक्षामंत्री रहे हैं शरद पवार। दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं शरद पवार। कांग्रेस पर कुतरने की कोशिश करेगी। तो राजनीतिक टकराव मोल लेगी। पवार ने दो टूक कह भी दिया- 'ये मंत्रालय मेरे पास छह साल से। किसी ने मुझे नहीं कहा- इसका बंटवारा होना चाहिए। इस तरह की मांग का कोई मतलब ही नहीं। कीमतें तो पांच साल से स्थिर थी। तब भी मैं मंत्री था। एक ही साल से तो बढ़ रही हैं।' पवार का यह बयान पीएम को चुनौती नहीं। गठबंधन की राजनीति में पीएम के हाथ में सब कुछ होता। तो करुणानिधि मंत्री और मंत्रालय तय न करते। पहली सरकार में लालू और दूसरे में ममता रेल पर खम न ठोकते। पर बात महंगाई की। जबसे मुख्यमंत्रियों की मीटिंग टली। तबसे कांग्रेस वर्किंग कमेटी पहले होने की चर्चा। वर्किंग कमेटी में शरद पवार पर हमले की अब कोई गुंजाइश नहीं। पवार पहले ही हमले तेज कर चुके। जिसका सबसे पहला ऐलान तो अपन ने ही तेईस जनवरी को किया था। जब लिखा- 'महंगाई का ठीकरा फोड़ा तो पवार भी मुंहतोड़ जवाब देंगे।' अब उनने कह दिया है- 'मंत्रालय का कोई टुकड़ा नहीं देंगे।' पर असल बात मंत्रालय की नहीं। बात महंगाई की। जिसके घटने का दावा ठोका था सरकार ने। पर गुरुवार को मुद्रास्फीति की दर और बढ़कर आई। अब तो तेरह साल के रिकार्ड टूट गए महंगाई के। खाने-पीने के चीजों की मुद्रास्फीति साढ़े सत्रह फीसदी तक जा पहुंची। जीडीपी साढ़े सात फीसदी हो जाए तो काफी। यानी आमदनी चवन्नी, खर्चा रुपैय्या। जैसी उम्मीद थी, वैसा हुआ। चार महीने पहले मकानों के लिए कर्ज की ब्याज दर पर हायतौबा मची। तो सोनिया के दखल से ब्याज दर घटी थी। हालांकि वाजपेयी के जमाने वाले सात फीसदी पर नहीं आई। पर बारह-तेरह से घटकर आठ-नौ फीसदी तो आई ही। मकानों की कीमतें भी घटी। मिडिल क्लास यानी आम आदमी फिर मकान के चक्कर में पड़ गया। अभी सपना देखा ही था। शुक्रवार को आरबीआई ने तोड़ना शुरू कर दिया। बैंकों का सीआरआर पौना फीसदी बढ़ा दिया। यों दावा किया है- अभी ब्याज नहीं बढ़ेगा। पर कितने दिन? बजट के बाद तो बढ़ेगा ही। बाजार में अढ़तालीस हजार करोड़ पड़ा था। जिसे आम आदमी कर्ज लेकर इस्तेमाल करता। अब नए सीआरआर से छत्तीस हजार करोड़ आरबीआई ले लेगा। बाकी बचेगा बारह हजार करोड़। यानी बैंकों के पास पैसा ही नहीं होगा। तो बेचारा आम आदमी लोन लेगा कहां से। सरकार की नीति एक कदम आगे बढ़ने की। तो दो कदम पीछे हटने की।

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