पवार के मुंहतोड़ जवाब से कांग्रेस हुई लाजवाब

Publsihed: 26.Jan.2010, 10:12

गणतंत्र दिवस की बधाई। खुशी के मौके पर महंगाई का रोना ठीक नहीं। सो मनमोहन ने मुख्यमंत्रियों की मीटिंग टाल दी। सोनिया ने सीडब्ल्यूसी की मीटिंग बुलाई। पर गणतंत्र दिवस के बाद। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली म्यूंग बाक दिल्ली पहुंच गए। वह आज गणतंत्र दिवस के खास मेहमान होंगे। ली के आने से पहले ही अपन ने मेहमाननवाजी शुरू कर दी थी। दक्षिण कोरिया की स्टील कंपनी पास्को को पर्यावरण मंत्रालय ने हरी झंडी दी। उड़ीसा में लगाया जाएगा स्टील प्लांट। सोमवार को चार समझौतों पर दस्तखत भी हुए। आने वाले साल अपने काम का रहेगा दक्षिण कोरिया। अपन को एशिया पेसेफिक को-आपरेशन फोर्म में मददगार होगा। हर साल अपन विदेशी मेहमान कोई यों ही नहीं चुन लेते। कूटनीतिक-आर्थिक हित देखकर ही होता है फैसला। पिछले सालों अपन ने कजाकिस्तान, फ्रांस और रूस के राष्ट्रपतियों को बुलाया। तीनों एटमी ईंधन मुहैया कराने वाले देश।

पर इस बार एटमी करार का जिक्र तक नहीं। एटमी ईंधन की गाड़ी बीच में ही कहीं अटक गई। पर अपना लाख टके का सवाल। क्या हर साल होना चाहिए गणतंत्र दिवस समारोह। क्या हर साल ही होना चाहिए स्वतंत्रता दिवस समारोह। आप कहेंगे- जब हर साल होली-दिवाली। तो हर साल राष्ट्रीय समारोह क्यों नहीं। पर होली-दिवाली और गणतंत्र-स्वतंत्रता दिवसों में बहुत फर्क। होली-दिवाली पर राष्ट्रीय खर्च नहीं होता। अपन लोगों की जेब से निकलता है पैसा। सरकारी इश्तिहार भी अखबारों-चैनलों में नहीं आते। बात इश्तिहार की चली। तो याद आई- कृष्णातीरथ के महिला बाल विकास मंत्रालय की। जिनने चार पेज के इश्तिहारों में ब्लंडर किया। पाकिस्तान के पूर्व वायुसेनाध्यक्ष का फोटू छाप दिया। ब्लंडर सामने आया। तो बोली- 'फोटू पर मत जाओ। मकसद पर जाओ।' जुगाड़ से मंत्री बनने और मंत्री बनने की काबिलियत होने में यही फर्क। प्रधानमंत्री को माफी मांगनी पड़ी। कांग्रेस को माफी मांगनी पड़ी। कृष्णातीरथ को तब गलती का अहसास हुआ। अब ठीकरा भले किसी के सिर फूटे। पर खुद कृष्णातीरथ ने पुल आउट देखकर दी थी मंजूरी। पर अपन बात कर रहे थे हर साल के समारोहों की। टेलीविजन युग में अब हर साल करोड़ों के खर्चे की जरूरत नहीं। पांच साल बाद होना चाहिए समारोह। जब महंगाई के लिए मंत्रियों में तू-तू, मैं-मैं हो रही हो। तो अपन को अनाप-शनाप खर्चों के बारे में सोचना चाहिए। कांग्रेस का इरादा महंगाई का ठीकरा पवार के सिर फोड़ने का। अपन ने तेईस जनवरी को लिख दिया था- 'महंगाई का ठीकरा फोड़ा तो पवार भी देंगे मुंहतोड़ जवाब।' तो पवार ने चौबीस को मुंहतोड़ जवाब दे दिया। जब उनने कहा- 'मैं क्यों, पीएम भी जिम्मेदार हैं महंगाई के लिए। कीमतों की नीतियां मैं नहीं बनाता। केबिनेट बनाती है।'  अपन को पवार पार्टी का एक छुटभैया बता रहा था- 'मीठा-मीठा घप्प, कड़वा कड़वा थू कांग्रेस की पुरानी आदत।' पर मीठा ही तो मुसीबत बन गया। चीनी के दाम इस रफ्तार से पहले कभी नहीं बढ़े। इंदिरा के जमाने में किल्लत होती थी। किल्लत होती थी- चीनी की। गेहूं-चावल-डालडा घी की भी। रसोई गैस तो बड़े लोगों के घरों में ही थी। पर किल्लत होना अलग बात। किल्लत तो किसी चीज की है ही नहीं। हर चीज बाजार में मौजूद। चाहें तो एक क्विंटल चीनी उठा ले। चाहें जितना आटा-चावल उठा लें। पर आम आदमी उतना ही तो पैर फैलाएगा। जितनी चादर होगी। सोमवार को अपन आटा लेने गए। तो एमपी का गेहूं तीन रेट का था। बाईस, पच्चीस और अठाईस। जब रोटी-कपड़ा-मकान फिल्म बनी थी। तो यह एक मन गेहूं का रेट था। अब तो एक किलो का हो गया। इस बीच अपन हरित क्रांति ला चुके। उस पिक्चर का वह गाना याद होगा- 'बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई।' उस गाने में जो लाइन थी- 'पहले मुट्ठी में पैसे लेकर थैलाभर शक्कर लाते थे। अब थैले में पैसे जाते हैं, मुट्ठी में शक्कर आती है।' पर अपन बात कर रहे थे महंगाई का ठीकरा फोड़ने की। कांग्रेस के छुटभैये भी पवार पर ठीकरा फोड़ने से गुरेज नहीं करते। बातें तो पवार के कानों में भी पहुंचती होंगी। सो उनके सब्र का प्याला भर गया। सो सीडब्ल्यूसी से पहले ही मुंहतोड़ जवाब दे दिया। तो कांग्रेस के प्रवक्ता बंगलें झांकने लगे। बंगलें झांकते हुए शकील अहमद बोले- 'पवार गलत नहीं कह रहे। कीमतों को काबू रखना पूरी केबिनेट की जिम्मेदारी।' पवार ने केबिनेट कमेटी आन प्राईस की याद दिला दी। कांग्रेस को अब नया बहाना ढूंढना होगा।

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