चिदंबरम फार्मूले में एनएसए के लिए कोई जगह नहीं होगी

Publsihed: 22.Jan.2010, 10:12

नारायणन की जगह फिलहाल शिवशंकर मेनन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार। चिदंबरम के दिमाग में कुछ और। इसीलिए अपन ने फिलहाल लिखा। इसका खुलासा अपन बाद में करेंगे। पहले बात मेनन की। यूपीए सरकार के साढ़े पांच साल में वह तीसरे एनएसए। जेएन दीक्षित, नारायणन पहले रह चुके। एनडीए शासन के छह साल में सिर्फ बृजेश मिश्र थे। दीक्षित का तो देहांत हो गया। नारायणन की च्वाइस ही गलत थी। सो मनमोहन सिंह ने मेनन को बनाकर गलती सुधारी। अपन नहीं जानते नारायणन को हटाने का फैसला क्यों हुआ। मुंबई पर हमला वजह होता। तो मनमोहन अपने दूसरे कार्यकाल के शुरू में ही न बनाते। नारायणन का तब विरोध भी खूब हुआ था। पर अब हटाने की वजह शर्म-अल-शेख में बलूचिस्तान वाली गलती। यों मनमोहन लोकसभा में गलती अपने सिर ले चुके।

उनने कहा- 'पाकिस्तान के पीएम ने बलूचिस्तान पर चिंता जताई। तो मुझे उसे साझा बयान में शामिल करना गलत नहीं लगा।' पर क्या यही सच था। क्या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की नादानी से ऐसा ड्राफ्ट बना। अपन को याद है पंद्रह जुलाई 2001 की आगरा में हुई वाजपेयी-मुशर्रफ वार्ता। जो ड्राफ्ट को लेकर ही फेल हुई। अपन को याद है पांच जनवरी 2006  की वह रात। अपन वाजपेयी की मीडिया टीम के साथ इस्लामाबाद में थे। बृजेश मिश्र रातभर साझा बयान के ड्राफ्ट पर मशक्कत करते रहे। कोमा, फुलस्टाप पर भी तू-तू, मैं-मैं की नौबत थी। सो शर्म-अल-शेख की गलती का ठीकरा भी एनएसए पर होगा। सुभाष अग्रवाल ने आरटीआई डालकर ड्राफ्ट की नोटिंग मांगी। तो विदेश मंत्रालय ने इनकार कर दिया। यह विवाद अब कोर्ट का रुख लेगा। पर विवादास्पद एनएसए की विदाई हो गई। सिर्फ स्टेट मिनिस्टर ही तो होता है एनएसए। अपन को हैरानी तब हुई। जब खबर मिली- 'पीएम खुद नारायणन को शानदार विदाई डीनर देंगे।' शनिवार को होगा यह डीनर। ब्यूरोक्रेसी के साथ मंत्री भी मौजूद होंगे। कांग्रेस नारायणन से कतई खुश नहीं। फिर भी उनको ऐसी विदाई। अपन ने पहले न देखी, न सुनी। सब जानते हैं। नारायणन सफल एनएसए नहीं थे। पी चिदंबरम भले ही नारायणन को फेमिली फ्रेंड कहें। अपनी पत्नी और नारायणन का जन्मदिन एक दिन होने की दुहाई दें। पर चिदंबरम जब से होम मिनिस्टर बनें। तब से एनएसए पर विदाई के बादल मंडरा रहे थे। यूपीए सरकार में टकराव के और भी कई उदाहरण। स्टेट मिनिस्टरों ने कैसे केबिनेट मिनिस्ट्रों के खिलाफ भड़ास निकाली। यह अपन ने लगातार दो दिन बताया। अब बीटी बैंगन पर पवार-जयराम की जंग देखो। पवार ने कहा- 'संवैधानिक संस्था जीईएसी की ओर से दी गई राय ही फाइनल। सरकार की अपनी कोई राय नहीं।' जयराम रमेश इस बयान पर भड़क गए। उनने पवार को चिट्ठी लिख मारी। चिट्ठी प्रेस को जारी भी कर दी। जिसमें उनने लिखा- 'सरकार की जिम्मेदारी जनता और किसानों के प्रति। हमारा काम उनके हितों की रक्षा करना। जीईएसी फाइनल नहीं। फाइनल सरकार का फैसला होगा। मैं पीएम से बात करूंगा।' मंहगाई पर पवार-कांग्रेस की चिक-चिक अपन रोज देख ही रहे। पर बात हो रही थी चिदंबरम-नारायणन की। एचएम-एनएसए का टकराव कोई नया नहीं। एनडीए राज में भी हुआ था टकराव। आडवाणी-बृजेश कई बार आमने-सामने हुए। बृजेश चाहते थे- राष्ट्रीय सुरक्षा का अलग मंत्रालय बने। एनएसए की जगह राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री बने। वाजपेयी काफी हद तक सहमत थे। बृजेश को राज्यसभा में लाने की तैयारी भी हुई। पर आडवाणी सहमत नहीं हुए। अब चिदंबरम होम मिनिस्ट्री को ही राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्रालय बनाने पर उतारू। जिसमें एनएसए की जरूरत ही नहीं होगी। नारायणन रवानगी की पटकथा चिदंबरम के हाथों ही लिखी गई। बात अक्टूबर 2009 की। चिदंबरम ने महनोहन के सामने राष्ट्रीय कानून आतंकवाद विरोधी केंद्र का फार्मूला रखा। यानि एनसीटीसी। पीएम की हरी झंडी हुई। तो चिदंबरम ने तेईस दिसंबर को ड्राफ्ट का खाका खुफिया अफसरों के सामने रखा। फिलहाल वह ड्राफ्ट बनाने में मशगूल। मार्च के पहले हफ्ते में ड्राफ्ट केबिनेट के सामने होगा। एनसीटीसी आतंकवाद विरोधी नीति बनाएगी। वही बाकी एजेंसियों से तालमेल करेगी। वही आतंकवाद विरोधी दिशा-निर्देश देगी। एनएसए के अधीन हैं जेआईसी, एनटीआरओ, एआईओ। चिदंबरम के ड्राफ्ट में ये तीनों एजेंसियां भी एनसीटीसी को रिपोर्ट करेंगी। एनसीटीसी होगी सीधे एचएम के कंट्रोल में। फिर एनएसए का काम क्या होगा? एक इंटरव्यू में चिदंबरम से पूछा। तो वह बोले- 'यह पीएम सोचें।' उनने साफ कहा- 'जब मैंने तेईस दिसंबर को एनसीटीसी का विचार रखा। तो उसमें एनएसए का कोई जिक्र नहीं किया।' मतलब साफ। मेनन हो सकते हैं आखिरी एनएसए। वह भी इस साल के आखिर तक के लिए।

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