युवा स्टेट मिनिस्टर रोए पीएम के सामने

Publsihed: 20.Jan.2010, 02:01

अपन ने कल बताया था- 'मारे-मारे फिर रहे हैं युवा स्टेट मिनिस्टर।' उसमें अपन ने पीएम की बुलाई मीटिंग का खुलासा किया। तो मंगलवार को तय वक्त पर हो गई मीटिंग। मनमोहन खुलकर सुनने के मूड में थे। सो दो घंटे का वक्त तय हुआ। पर मीटिंग खत्म हो गई एक घंटे में। वजह थी- 'उत्साही युवा मंत्रियों का पीएम की बोलती बंद कर देना।' अपन आरपीएन सिंह, प्रणीत कौर, पलानीमनिक्कम, नमोनारायण मीणा को छोड़ दें। तो बाकी सबने अपने केबिनेट मंत्रियों की खाल खींची। मनिक्कम ने तो प्रणव दा को पिता तुल्य बता दिया।  मीणा और मनिक्कम के मुखारविंद से प्रणव दा की तारीफ हुई। आरपीएन के मुंह से कमलनाथ की। शशि थरुर आए नहीं। प्रणीत कौर ने एसएम कृष्णा की तारीफ की।

आरपीएन बोले- 'मैं तो संतुष्ट हूं, काश मेरी तरह बाकी स्टेट मिनिस्टर भी संतुष्ट होते।' पहली बार एमपी बने आरपीएन ने सलाह दी- 'स्टेट मिनिस्टरों का काम और टारगेट तय होना चाहिए।' यूथ अफेयर स्टेट मिनिस्टर अरुण यादव अपने केबिनेट मंत्री एसएस गिल की खिल्ली उड़ाते बोले- 'यूथ मामले हैं मेरे पास। नेहरू युवक केंद्र भी। पर फाइलें नहीं आती। सीनियर ही देख रहे हैं यूथ मामले भी।' अपने पास एक-एक स्टेट मिनिस्टर के कहे का हिसाब-किताब। अड़तीस में से छत्तीस मंत्री आए। थरुर के अलावा संगमा की बेटी अगाथा नहीं आई। सिर्फ चार ने अपने केबिनेट मंत्रियों की तारीफ की। जतिन और माकन चुप्पी साधे रहे। बाकी तीस ने खाल उधेडी। शुरुआत की सौगतराय ने। ममता की पार्टी के सौगतराय। जयपाल रेड्डी के साथ शहरी विकास में स्टेट मिनिस्टर। बोले- 'आपने मुझे नौकरों-चाकरों की फौज दी। तेरह का स्टाफ है मेरे पास। बड़ा बंगला, कार-ड्राइवर। फोन तो जहां-तहां खूब लगे पड़े हैं। पर मेरे पास काम कोई नहीं। मैं भी यूपीए में हूं। जब इतना कुछ दिया है। तो कुछ काम भी दो। बताओ मैं खाली बैठा क्या करूं।' सौगतराय जब रेड्डी पर बरस रहे थे। तभी रेल रायमंत्री मुनिअप्पा ने बैठे-बैठे कहा- 'स्टेट मिनिस्टर को काम देने की सलाह अपनी लीडर ममता को भी दो।' सब खिल खिलाकर हंस पड़े। सो केबिनेट मंत्रियों की खिंचाई भी हुई, खिल्ली भी उड़ी। छठी बार के सांसद सांई प्रताप ने भी कुछ यों ही वीरभद्र की खिल्ली उड़ाई। बोले- 'मैं अभी सीख रहा हूं।' पल्लम राजू ने एंटनी पर गुस्सा उतारा। तो हरीश रावत ने मलिकार्जुन खड़के पर। केबिनेट से स्टेट मंत्री बने श्रीकांत जेना के तुजुर्बे का लोहा मनमोहन को भी मानना पड़ा। उनने कहा- 'केबिनेट मंत्रियों के हक सीमित होने चाहिए। विभागों के बंटवारे की पॉलिसी बननी चाहिए। केबिनेट मंत्रियों की मनमर्जी नहीं।' ई.अहमद ने भी यही कहा। ममता से ही खफा अहमद बोले- 'काम का साफ-साफ बंटवारा होना चाहिए।' अहमद पिछली सरकार में भी थे। उनने मनमोहन को याद दिलाते हुए कहा- 'मैं तो पुराना मंत्री हूं। पर अब बेकार हूं। मंत्रालय में बैठकर क्या करूं।' अपन को सबसे क्षुब्ध स्टेट मिनिस्टर चुनना हो। तो अपन मुनिअप्पा को चुनेंगे। उनने जो कहा, सुनिए। बोले- 'प्रधानमंत्री जी आपने मंदी में किफायत का मंत्र दिया हुआ है। उसी के तहत स्टेट मिनिस्टरों का पद खत्म कर दें। इनकी कोई जरूरत नहीं। सिवा फिजूलखर्ची के कुछ नहीं होता। इससे अच्छा होगा, हमें पार्टी का काम दे दें।' ज्योतिरादित्य ने शिकायत जरूर की थी। पर अपन को लगता था। वह मीटिंग में नहीं बोलेंगे। पर वह तो जमकर बोले। कहा- 'हम युवा लोग कुछ करना चाहते हैं, पर क्या करें। मिनिस्ट्री की कोई खबर तक नहीं पहुंचती। फाइलें तो बहुत दूर की बात। आप खुद तय करें- हम क्या करें। अगर आपने केबिनेट मंत्रियों पर छोड़ दिया। तो निकलना-निकलाना कुछ नहीं। आपके कहने पर काम दे देंगे, पर फाइलें नहीं आएंगी।' लगते हाथों पी. लक्ष्मी ने उदाहरण भी दे डाला। अपने केबिनेट मंत्री दयानिधि मारन पर कटाक्ष करते हुए बोली- 'वह बहुत अच्छे हैं। मुझे काम भी सौंपा है। पर जो जो काम सौंपा है। उसकी फाइलें भी मेरे पास नहीं आती।' अपन को शोले फिल्म के डायलॉग याद आ गए। जय की भूमिका में अमिताभ जब मौसी से वीरू के लिए बसंती का हाथ मांगने गए। तो वीरू की जैसे तारीफ जय ने की थी। पी. लक्ष्मी वैसे ही तारीफ दयानिधि मारन की कर रही थी। पुरंदेश्वरी ने ऐसी ही तारीफ की सिब्बल की। पीएम ने फिर वही आश्वासन दिया- 'केबिनेट में बात करूंगा। कुछ तो करूंगा।'

आपकी प्रतिक्रिया