मारे-मारे फिर रहे हैं युवा स्टेट मिनिस्टर

Publsihed: 19.Jan.2010, 09:56

गवर्नरों की तैनाती हो गई। मोहसिना किदवई और उर्मिलाबेन बनती-बनती रह गई। खबर उड़ाई- मोहसिना ने आखिर वक्त पर इनकार कर दिया। अपन यह मानने को तैयार नहीं। उनकी जगह पर एमओएच फारुकी का नाम अचानक नहीं आया। तीन दिन पहले छप चुका था। उर्मिलाबेन के नाम की गफलत तो मीडिया से हुई। नाम लीक हुआ था उर्मिला। उर्मिला सिंह का नाम तो किसी के ख्याल में ही नहीं आया। सबने उर्मिलाबेन समझ लिया। पिछली सरकार में मंत्री थी। पर दिग्विजय सिंह बड़ी सफाई से उर्मिला सिंह को गवर्नर बनवा ले गए। सीडब्ल्यूसी की मेंबर हैं उर्मिला। सरकारिया आयोग की सिफारिशें धरी रह गई। शिवराज पाटिल लंबे समय से कह रहे थे- 'मैंने गवर्नर बनने से इनकार कर दिया।' उनका कहा सही होता। तो कैसे बनते गवर्नर। सो इनकार कोई नहीं करता। न पहले पाटिल ने किया था। न अब मोहसिना किदवई ने किया। अपन को एक बात की बेहद खुशी।

पाटिल की अलमारी में पड़े सफारी सूटों के दिन लौट आए। राष्ट्रपति नहीं बन सके थे। राज्यपाल सही। पर अर्जुन सिंह को बुढ़ापे में राज भवन भी नसीब नहीं। दिग्विजय ने उर्मिला सिंह का तुरुप चल दिया। खैर सबसे ज्यादा किरकिरी हुई एमके नारायण की। अर्श से फर्श पर आ गए। देश की सुरक्षा में नाकाम रहे। तो बंगाल की खाड़ी में जाना पड़ा। सुरक्षा की नाकामी के कारण ही तो पाटिल भी अर्श से फर्श पर गिरे। जो गवर्नर बनाते थे। खुद गवर्नर बन गए। खैर गर्वनरों की तैनाती हो गई। तो अब कांग्रेस में बदलाव की बयार। शकील अहमद से पूछा। तो उनने कहा- 'दोनों का आपस में कोई ताल्लुक नहीं। सोनिया जब जरूरत समझेंगी। संगठन में फेरबदल करेंगी।' कहने को भले शकील भाई कुछ कहें। रिश्ता कैसे नहीं। सोनिया गांधी ने ही तय किए गवर्नर। वही तय कर रही हैं- कौन मंत्री बनेगा। कौन महामंत्री। और कौन राज्यसभा में लौटे, कौन न लौटे। बता दें- इस साल राज्यसभा की 65 सीटें खाली होंगी। अंबिका सोनी, आनंद शर्मा, एके एंटनी, जयराम रमेश, एमएस गिल पांच मंत्री भी। आनंद शर्मा हिमाचल से नहीं लौट सकते। गिल का पंजाब में कड़ा विरोध। अब इनका भविष्य भी तो सोनिया ही तय करेंगी। बात मंत्रियों की चली। तो बता दें- मनमोहन सरकार के स्टेट मिनिस्टर बेहद नाराज। वैसे स्टेट मिनिस्टर हमेशा ही केबिनेट मंत्रियों की तानाशाही से खफा। पर यूपीए का आलम निराला। पिछली सरकार में स्टेट मिनिस्टरों ने शिकायत की। तो मनमोहन ने दो बार काउंसिल की मीटिंग बुलाई। स्टेट मिनिस्टरों की शिकायतें केबिनेट मंत्रियों के सामने सुनी। अब केबिनेट मंत्रियों के सामने कौन बोलता। फिर भी तीन-चार ने हिम्मत की। एक मंत्री ने अपने मंत्रालय की उपलब्धियां गिनाकर आखिर में कहा- 'यह सब सिर्फ केबिनेट मंत्री के आदेश से हुआ।' खैर हालात फिर भी नहीं बदले। इसीलिए तो इस बार भी पीएम को शिकायत पहुंची। अबके शिकायत की है- हरीश रावत ने मल्लिकार्जुन खड़के की। शिशिर अधिकारी ने सीपी जोशी की। जिनने मंत्रालय के कलैंडर में शिशिर अधिकारी का फोटू ही नहीं छपवाया। ज्योतिरादित्य ने शिकायत की है आनंद शर्मा की। सचिन पायलट ने की है ए. राजा की। पुरंदेश्वरी ने की है कपिल सिब्बल की। सुलतान अहमद ने की है शैलजा की। दिनेश त्रिवेदी ने की है गुलाम नबी की। भरत सिंह शोलंकी ने शिकायत की है- सुशील कुमार शिंदे की। सो मनमोहन सिंह ने सभी स्टेट मिनिस्टरों की मीटिंग बुला ली। सबकी शिकायतें सुनेंगे। पर कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद को केबिनेट में बवाल की भनक तक नहीं। अपन ने पूछा- 'पहले कभी पीएम ने सिर्फ स्टेट मिनिस्टरों की मीटिंग बुलाई?' तो वह बोले- 'मुझे याद नहीं।' शकील जब स्टेट मिनिस्टर हुआ करते थे। तो उन्हें भी अपने केबिनेट मंत्री से ढेरों शिकायतें थी। स्टेट मिनिस्टर भी जानते हैं- पहले की तरह होगा इस बार भी कुछ नहीं। पिछली बार स्टेट मिनिस्टरों ने केबिनेट मंत्रियों के मुंह पर कहा- 'फाईल हमारे माध्यम से न जाए। तो कम से कम हमारे माध्यम से लौटे। ताकि मंत्रालय के फैसलों की जानकारी हमें मीडिया से तो न मिले।' एक अनुभवी स्टेट मिनिस्टर बता रहा था- 'जब तक पीएम खुद विभागों का बंटवारा नहीं करें। कोई केबिनेट मंत्री फाइलें नहीं देखने देगा।' पर पीएम ऐसा करने से रहे। कितना ढिंढोरा पिटा था- युवा सांसदों, युवा मंत्रियों का। पर अब कितने मारे-मारे फिर रहे हैं युवा स्टेट मिनिस्टर।

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