गली-मोहल्लों में भी आवारा ही देते हैं ऐसी गालियां

Publsihed: 12.Jan.2010, 10:09

कमर तोड़ती महंगाई। जान निकालती सर्दी। इन दोनों के बीच हरदन हल्ली डोडेगौडा देवगौड़ा का बयान। जिसने कंपकंपाती सर्दी में भी गर्मी ला दी। पहले बात महंगाईकी। अपने कृषि मंत्री शरद पवार का भी जवाब नहीं। कभी कहते हैं- चीनी और महंगी होगी। कभी कहते हैं- मैं कोई योतिषी तो नहीं। जो बता सकूं कि कीमतें कब घटेंगी। कांग्रेस को हालात से निपटने का तरीका नहीं सूझ रहा। बीजेपी और सीपीएम लंबे अर्से बाद विरोधी दलों की भूमिका में दिखने लगी। अब दोनों का इरादा दिल्ली में रैलियों का। राजीव प्रताप रूढ़ी बता रहे थे- 'मनमोहन सरकार ने अढ़तालीस लाख टन चीनी निर्यात की। निर्यात का रेट था बारह रुपए किलो। कुछ महीने पहले सरकार की जाग खुली। तो पाया- चीनी की तो किल्लत होगी। सो अब तीस रुपए किलो के हिसाब से आयात कर रही है चीनी।' यह है सरकार की नालायकी का सबूत।

बीजेपी कहती है- स्टोरियों और मुनाफाखोरियों को फायदा पहुंचा रही है कांग्रेस। पर अभिषेक मनु सिंघवी बोले- 'जमाखोरियों पर नकेल डालना जरूरी।' उनने यह भी कहा- 'सरकार को अब जरूरी चीजों का कंट्रोल करना चाहिए।' यानी कांग्रेस आई।तो कंट्रोल के दिन भी लौट आएंगे। दूसरी बात सर्दी की। तो दिल्ली में कड़कड़ाती सर्दी थमने का नाम नहीं ले रही। ग्लोबल वार्मिंग का असर कतई नहीं दिखता। कहीं यूरोपीय देशों ने झूठ-मूठ का हौव्वा तो नहीं खड़ा किया। सिर्फ भारत नहीं, यूरोप और अमेरिका से भी बर्फ जमने वाले मौसम की खबरें। पर इस कड़कड़ाती ठंड को भी दो नेताओं ने गर्मी बख्श दी। एक तो सिंगापुर में बैठे अमर सिंह। दूसरे कर्नाटक में धरने पर बैठे देवगौड़ा। पहले बात अमर सिंह की। अपन को समझ नहीं आ रहा- वह रूठे हैं, या खफा हैं। वह मान जाएंगे, या मुलायम को छोड़ जाएंगे। मुलायम सचमुच मुलायम हुए। उनने अमर सिंह को फोन किया। पर इस्तीफे के मुद्दे पर बात नहीं हुई। वैसे कोलकाता में योतिबसु का हालचाल पूछने गए। तो वहां कह दिया- 'अमर सिंह को मना लेंगे। इस्तीफा मंजूर नहीं करूंगा।' जयाप्रदा-जयाबच्चन ने राहत की सांस ली होगी। दोनों के सिर पर तलवार लटकी है। संजू बाबा की तरह जल्दबाजी नहीं की। पर सांस तो अटकी ही हुई है। भले ही अमर सिंह ने समाजवादी पार्टी को नौटंकीबाजों की पार्टी बना दिया।पर यूपी के ठाकुर मुलायम के साथ अमर सिंह की वजह से ही जुड़े। यह बात अब मुलायम को भी समझ आने लगी। अमर सिंह आने वाले दिनों में क्या गुल खिलाएंगे। अपनी उस पर निगाह बनी रहेगी। यों फिलहाल तो उनने इस्तीफा वापस लेने से इंकार ही किया है। पर अमर सिंह से यादा गंभीर बात देवगौड़ा की। उनने कर्नाटक के सीएम येदुरप्पा के बारे में जो भाषा इस्तेमाल की। वह कोई पंचायत मेंबर या नगरपालिका मेंबर भी नहीं बोलता। गलियों में आवारा लड़के जैसी गंदी गालियां बोलते हैं। हू-ब-हू वही गालियां देवगौड़ा ने येदुरप्पा को दी। कुछअंग्रेजी की गालियां। कुछ हिंदी और कन्नड़ की मिलीजुली गालियां। जिनका अपन तो यहां इस्तेमाल नहीं कर सकते। पर गुस्से की वजह क्या है? गुस्से की वजह है- कर्नाटक में जमीन पूरी तरह खिसक जाना। सत्ता भी जाना, राजनीतिज्ञों को मिलने वाले 'ब्रीफकेस' का भी मारा जाना। ऐसे में मानसिक संतुलन कैसे बना रहता। पहले तो उनने किसानों को आकर्षित करने के लिए बेंगलुरु-मैसूर इंफ्रास्टक्चर कारिडोर में टांग अड़ा दी। येदुरप्पा ने तो सिर्फ इतना कहा- 'यह प्रोजेक्ट जेडीएस सरकार की संतान।' इसी पर भड़ककर देवगौड़ा ने गाली-गलौज की। बेंगलुरु से अपन को लहर सिंह बता रहे थे- देवगौड़ा ने पीएम पद की गरिमा का भी ख्याल नहीं रखा। इतने बड़े पद पर रहे हैं वह। उनने अपन को देवगौड़ा की पोल के आंकड़े भी परोसे। तो अपन दूध का दूध, पानी का पानी कर दें। नेता सत्ता से हटते ही कैसे रंग बदलते हैं। देवगौड़ा की इस प्रोजेक्ट की मुखालफत ताजा सबूत। तो यह लीजिए सबूत- देवगौड़ा खुद जब मुख्यमंत्री हुआ करते थे। तो उनने बीस फरवरी 1995 को इस प्रोजेक्ट के लिए नंदी इंफ्रास्टक्चर कारिडोर इंटरप्राइजेज से एमओयू किया। खुद देवगौड़ा ने तीन एकड़ जमीन नोटिफाई की। फिर जब देवगौड़ा पीएम बने। जेएच पटेल सीएम बने। तो 18701 एकड़ जमीन एक्वायर की गई। एसएम कृष्णा के वक्त 2236 एकड़ जमीन एक्वायर हुई। कृष्णा ने कुल 6040 एकड़ जमीन प्रोजेक्ट के लिए ट्रांसफर की। हां, धर्मसिंह के वक्त कुछनहीं हुआ।फिर आए देवगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी। उनने भी 204 एकड़ जमीन एक्वायर और 142 एकड़ ट्रांसफर की।राष्ट्रपतिराज में भी धर्मसिंह काल की तरह कुछनहीं हुआ। सिर्फ आधा एकड़ जमीन ट्रांसफर हुई। इसके बाद आए येदुरप्पा।उनने अब तक सिर्फ तीन एकड़ जमीन एक्वायर की।हां, पहले से एक्वायर 251 एकड़ प्रोजेक्ट के लिए ट्रांसफर की। तो यह प्रोजेक्ट किसने शुरूकिया। यह प्रोजेक्ट किसान विरोधी था। तो जिम्मेदार कोई और नहीं। खुद हरदनहल्ली डोडेगौड़ा देवगौड़ा। हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और।

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