न राजनीति से संन्यास, न रथ से उतरेंगे आडवाणी

Publsihed: 19.Dec.2009, 00:00

सरकार 21 तक संसद नहीं चला पाई। तो बीजेपी ने भी सत्रावसान के साथ ही नेता पद का फैसला निपटा लिया। बीजेपी शुक्रवार को अचानक पारदर्शी हो गई। पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग मीडिया के लिए खोल दी गई। मीडिया के सामने पार्लियामेंट्री पार्टी के संविधान में संशोधन हो गया। अब पार्लियामेंट्री पार्टी अपना नेता नहीं, अलबत्ता अध्यक्ष चुनेगी। चुना हुआ अध्यक्ष लोकसभा और राज्यसभा के नेता तय करेगा। संविधान संशोधन का प्रस्ताव पेश किया वेंकैया नायडू ने। समर्थन तो सबने किया ही। सिवा लालकृष्ण आडवाणी के। जब तक संशोधन नहीं हुआ। वह अध्यक्ष नहीं चुन लिए गए। चुप्पी साधकर बैठे रहे। संशोधन हो गया। तो राजनाथ सिंह ने प्रस्ताव रखा- 'तो क्यों न हाथोंहाथ अध्यक्ष चुन लिया जाए।' आडवाणी के नाम का प्रस्ताव पेश किया- यशवंत सिन्हा ने। अपन ने सिन्हा के बार-बार आडवाणी विरोधी बयानों का जिक्र किया ही था। तो इसे अब आप नई शुरूआत मानिए।

अलबत्ता यशवंत सिन्हा को नई जिम्मेदारी का इशारा भी समझिए। पीएसी के चेयरमैन का चांस बन गया। पीएसी नहीं, तो विदेश मामलों की स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन होंगे। सुषमा यह पद छोड़ देंगी। पर बात मुरली मनोहर जोशी की। वह ताक में थे-आडवाणी के बाद विपक्ष के नेता हो जाएं। पर अपन ने पहले भी बताया था- यह जिम्मेदारी संघ ने आडवाणी पर छोड़ रखी थी। जोशी का अब पीएसी चेयरमैनी पर भी चांस नहीं। पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग में जोशी की गैरहाजिरी इसका सबूत। पीएसी की चेयरमैनी भी ब्राह्मण को दी। तो पार्टी पर ब्राह्मणवादी होने का लेबल चिपकेगा। तो जैसा अपन ने लिखा था। ब्राह्मणवाद का फच्चर न सुषमा को रोक पाया। न अरुण जेटली को। आडवाणी सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुन लिए गए। तो उनने दोनों सदनों के नेताओं के ऐलान में भी देरी नहीं की। सुषमा स्वराज लोकसभा में विपक्ष की नेता हो गई। तो नजमा हेपतुल्ला ने महिला को नेता बनाने पर आभार जताया। पर सुमित्रा ताई का ऐतराज था। बोली- 'महिला होने के कारण नहीं, योग्यता के कारण बनी हैं सुषमा।' जेटली दुबारा से राज्यसभा के नेता बना दिए गए। अपने चुनाव के बाद आडवाणी ने दोनों का ऐलान किया। तो दोनों ने साफ किया- 'आडवाणी की जिम्मेदारी घटी नहीं। जस की तस बरकरार।' लगते हाथों बता दें- वाजपेयी भी जन्मदिन से पहले एनडीए चेयरमैनी आडवाणी को सौंप देंगे। पर एक बात तय हो गई। अब लोकसभा का उपनेता ब्राह्मण अनंत कुमार नहीं हो सकते। इस बात से सबसे ज्यादा खुश धनंजय कुमार दिखे। उपनेता पद पर गोपीनाथ मुंडे का चांस ही ज्यादा। वह महाराष्ट्रियन अध्यक्ष नितिन गड़करी के साथ महासचिव तो नहीं हो सकते। बता दें- ओबीसी हैं गोपीनाथ मुंडे। बात चली नितिन गड़करी की। तो बता दें- आज उनकी बारी। राजनाथ सिंह ने करीब-करीब ऐलान कर ही दिया। मंच संचालन करते बोले- 'आज मैं मंच से बोल रहा हूं। कल यहां नहीं भी रहूंगा। आपके साथ नीचे बैठा होऊंगा। जिम्मेदारियां बदलती रहती हैं।' पर बात लालकृष्ण आडवाणी की। जिनके बारे में एक अंग्रेजी अखबार ने शुक्रवार को छापा था- 'रथ यात्री आज रथ से उतरेगा। बीजेपी में एक युग का अंत।' एक और अखबार ने लिखा- 'आडवाणी के पर कतरे जा रहे हैं।' पर बीजेपी पार्लियामेंट्री पार्टी में ऐसा कुछ नहीं हुआ। आडवाणी को मुक्त करने से इंकार किया पार्टी ने। तभी तो संविधान बदलकर बड़ा पद बनाया। दोनों सदनों में पार्टी के नेता की तैनाती का हक भी दिया। सो पर कुतरे नहीं गए, पंख लग गए। बात चली रथ यात्रा की। तो आडवाणी बोले- 'न मैं रथ से उतरूंगा। न राजनीति से संन्यास ले रहा हूं।' उनने कहा- 'मैंने रथयात्रा शुरू की थी 14 साल की उम्र में। जब आरएसएस में शामिल हुआ। दूसरी रथ यात्रा शुरू की, जब राजनीति में आया। तीसरी रथयात्रा शुरू की सोमनाथ से। चौथी रथयात्रा शुरू की मुंबई के क्रांति मैदान से लालकिले तक। जो पार्टी को लालकिले तक ले गई।' जब उनने कहा- 'मैं राजनीति से संन्यास नहीं ले रहा।' तो साफ था- वह राजनीति के रथ से भी नहीं उतर रहे।

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