सदन में बैठ अपने सांसदों को शर्मसार करेंगी सोनिया

Publsihed: 03.Dec.2009, 05:09

अपन नहीं जानते मीरा कुमार क्या 'एक्शन' लेंगी। लालकृष्ण आडवाणी अपने सांसदों को कैसे समझाएंगे। यह सवाल भी जवाब का मोहताज। सोनिया गांधी इन दोनों से ज्यादा खफा। अपन पिछले दस साल के गवाह। सोनिया जबसे कांग्रेस संसदीय दल की नेता बनी। तब से सांसदों की हर मीटिंग में एक बात जस की तस रही। वह थी- सांसदों की सदन में गैर हाजिरी पर चिंता। दस साल में सोनिया अपने सांसदों को नहीं समझा पाई। सो उनका खफा होना बेहद जायज। सोमवार को जब प्रश्नकाल में सत्रह सवालों के पूछने वाले नहीं मिले। तो मीरा कुमार के पास चारा नहीं था। उनने आधा घंटा लोकसभा ठप्प कर दी। बात सांसदों के गायब होने की। अपन किसी की नियत पर सवाल नहीं उठा रहे।

पर ऐसा पहली बार नहीं हुआ। भैरोंसिंह शेखावत जब राज्यसभा के चेयरमैन थे। तो ऐसे कई मामले सामने आए। संसद में सवाल पूछने पर घूस लेने का मामला तो याद होगा। ग्यारह सांसदों की सांसदी चली गई थी। सांसदों के खिलाफ मुकदमा तो अभी भी कोर्ट में पेंडिंग। पर इस सवाल के पीछे दबा है एक और रहस्य। भैरोंसिंह शेखावत के सामने यह बात आई थी। सवाल नामजद होने के बाद सांसद गायब हो जाते थे। भैरोंसिंह शेखावत ने ऐसे सांसदों की लिस्ट बनवाई। जो अकसर सवाल पूछकर नदारद हो रहे थे। उनकी ओर से पूछे सवालों की जहनियत परखी। फिर सांसदों की सदन में जमकर क्लास भी ली। वे खास किस्म के सवाल होते थे। बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों के साथ जुड़े हुए। सवाल पूछकर पर्दे के पीछे क्या खेल होता होगा। यह रहस्य शेखावत को परेशान करता रहा। अब जब लोकसभा में इसी सोमवार को 28 सांसद नदारद दिखे। तो अपन सबके आंख-कान खुले। पर अब भी अपनी निगाह सिर्फ सांसदों की गैर हाजिरी पर। नियत पर कतई नहीं। नियत देखना अपना काम भी नहीं। यह सोनिया-आडवाणी-मुलायम- वासुदेव वगैरह देखें। इनकी डयूटी है अपने सांसदों पर निगाह रखें। नहीं रखेंगे। तो कभी सवालों के बदले घूस के मामले सामने आएंगे। तो कभी सांसद निधि के बदले 30 फीसदी कमिशन के मामले। मंगलवार को आडवाणी ने अपने गैर हाजिर सांसदों की क्लास ली। सोनिया ने भी लिस्ट मांग ली। पवन बंसल से सख्त चिट्ठी लिखा दी। पर निकला क्या। मंगलवार को भी मुलायम पार्टी के नीरज शेखर और सुशीला सरोज नहीं थे। आडवाणी पार्टी की पूनम वाजीभाई जाट नहीं थी। सोनिया पार्टी के विक्रमभाई नहीं थे। पर बुधवार का नजारा और भी शर्मनाक रहा। लोकसभा में चुनाव सुधार का बिल था। राज्यसभा में आतंरिक सुरक्षा पर बहस। दोनों बीजेपी के खास मुद्दे। पर दोनों सदनों में बीजेपी के सांसद गायब थे। आतंरिक सुरक्षा पर बीजेपी कितनी फिक्रमंद-पोल खुल गई। कांग्रेसी सांसदों की हालत और भी पतली थी। जिनकी जिम्मेदारी थी विपक्ष से घिरे चिदंबरम का बचाव करना। पर जब कांग्रेसी पीएम मनमोहन सिंह ही सेशन के वक्त विदेश दौरों से हिचकिचाहट न करें। तो कांग्रेसी सांसद क्यों पीछे रहें। बात लोकसभा की सुनिए। जहां सोनिया गांधी खुद खम ठोककर बैठी थी। मुद्दा था- पूरी वोटिंग से पहले एक्जिट पोल पर रोक लगाना। कांग्रेस के 206 में से सिर्फ 43 सांसद मौजूद थे। बाकी 163 गायब। पहले बैंचो पर सोनिया अकेली बैठी थी। बीजेपी से तो सिर्फ चार-पांच सांसद ही दिखे। सुषमा स्वराज, हेरेन पाठक, शाहनवाज हुसैन और निशिकांत दूबे। सबसे शर्मनाक हालत तो लेफ्ट की थी। जो हर दूसरे दिन कहती नहीं थकती- 'संसद सत्र कम से कम सौ दिन होना चाहिए।' तो बताएं- सिर्फ प्रबोध पांडा ही बैठे थे। पर बात सोनिया की। बुधवार को वह बेहद निराश थी। अब उनने तय किया है। वह खुद सदन में ज्यादा बैठेंगी। खासकर बिलों पर बहस के वक्त। प्रश्नकाल में भी। ताकि कांग्रेस के सांसद शर्मसार हों। पता है एक मिनट का कितना खर्चा बैठता है संसद का। थोड़े-बहुत नहीं, हर मिनट पर 34888 रुपए। सो स्पीकर मीरा कुमार ने दलों के नेताओं को चिट्ठी लिखकर याद करा दिया।

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