मक्का-मदीना से फिदायिन हमलों के खिलाफ फतवा

Publsihed: 28.Nov.2009, 00:12

अपन ने वंदेमातरम् के खिलाफ फतवे की आलोचना की। तो आतंकवाद के खिलाफ फतवे की तारीफ भी होनी चाहिए। मक्का-मदीना से इस बार मुसलमानों को नया संदेश मिला। जेहाद के नाम पर आतंकवाद फैलाने वालों को सबक। संदेश मक्का-मदीना से आया। सो दुनियाभर के मुसलमानों को मानना चाहिए। वह भी बकरीद के मौके पर। सो इसे मोहम्मद पैगंबर का संदेश मानना चाहिए। देबबंद के जिस दारूल उलूम का देश की आजादी में योगदान रहा। जिस दारूल-उलूम ने बंटवारे की मुखालफत की। उसी दारूल-उलूम से वंदेमातरम् के खिलाफ फतवा चुभा था। सिर्फ हिंदुओं को नहीं। सच्चे मुसलमानों को भी चुभा था। जैसा गुजरात के डीआईजी ने अपने लेख में लिखा- 'नमाज पढ़कर जमीं को चूमना वंदेमातरम् ही है। तो फिर वंदेमातम की मुखालफत क्यों।' अपन को तसल्ली हुई। जब हजारों सच्चे मुसलमानों ने फतवे की मुखालफत की। बैतूल में तो मस्जिद के सामने वंदेमातरम् गाकर की। अपन कहेंगे- भारतीय मुसलमानों को कट्टरपन छोड़ना चाहिए। तो कोई बुरा मान लेगा। पर ज्यादातर मुस्लिम देशों के शासक आधुनिक हो चुके।

आप दूर क्यों जाते हो। पाकिस्तान के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, विदेशमंत्री को ही देख लो। कोई दाढ़ी नहीं रखता। पर मुस्लिम देश है पाकिस्तान। भारत की तरह सेक्युलर नहीं। कराची का फैशन शो देख तो अपने होश उड़ गए। न बुरका, न जैंपर-सलवार। अलबत्ता 'लिंगरी' पहनकर हुआ 'कैटवाक'। अपन कराची के नक्श-ए-कदम पर चलने को तो नहीं कहते। पर दिमाग के दरवाजे खोलने में क्या हर्ज। टर्की, इंडोनेशिया, इराक, ईरान के नक्शे कदम पर ही चलें। यों भी इस्लाम ने सिर्फ पांच बातें ही तो जीवन में लाजिमी कहीं। पहली- पांच बार नमाज। दूसरी- पवित्र रमजान के महीने में 30 रोजे। तीसरी- जीवन में हज यात्रा जरूर करें। चौथी- जकात। जकात होता है आमदनी का एक हिस्सा गरीब मुसलमानों को दान देना। पांचवी- हर मुसलमान अपने धर्म का पालन करे। पर बात दूसरी सलाह यानी हज की। जो शुक्रवार को मीना में खत्म हो गई। अब अगले साल अगली हज। यों सऊदी अरब में तो शुक्रवार को ही बकरीद हो गई। पर बाकी दुनिया में आज होगी। पशुओं की कुर्बानी क्यों देते हैं मुसलमान। यह परंपरा कोई सिर्फ मुसलमानों की ही नहीं। कई जगह हिंदू भी देते हैं कुर्बानी। अपन ने एक बार हिमाचल के रोहडू इलाके में देखा। वहां के सभी हिंदू मनाते हैं बकरीद। पर बात मक्का-मदीना की। मोहम्मद पैगंबर को आकाशवाणी हुई थी- सबसे प्रिय को कुर्बान करने की। वह अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने गए। तो तीन शैतानों ने उन्हें रोका। मीना में शैतान के उन्हीं तीन खंबों को पत्थर मारता है हर मुसलमान। पर बात कुर्बानी की- मोहम्म्द पैगंबर जब कुर्बानी को तैयार हुए। तो फिर आकाशवाणी हुई- 'आपका इम्तिहान पूरा हुआ। आप बकरी की कुर्बानी दे सकते हैं।' बकरी को भी उतने ही प्यार से पाला पोसा जाता है। पर अपन बात कर रहे थे कुर्बानी की। गुरु गोविंद सिंह ने जब खालसा पंथ साजा। तो उनने हिंदू धर्म के लिए कुर्बानी मांगी थी। पांच लोग तैयार हुए थे। पर गुरु गोविंद सिंह ने कुर्बानी उनकी नहीं ली। बात कुर्बानी की नहीं। बकरीद की बात चली। तो बता दिया। बात हज यात्रा के आखिरी दिन सऊदी मुफ्ती शेख अब्दुल अजीज के फतवे की। हज यात्रा के समय मुफ्ती का मुसलमानों को सबक। किसी फतवे से कम नहीं। अलबत्ता मक्का-मदीना से आया रब्ब के फरमान जैसा। मुफ्ती ने कहा। और मक्का-मदीना से यह पहली बार कहा गया। उनने कहा- 'फिदायिन हमले शॉप बन गए हैं। बेगुनाह आदमी, औरतें, बच्चे मारे जा रहे हैं। उनके घर तबाह हो रहे हैं। मुस्लिम कौम गलत विचारधारा का सामना कर रही है। यह बहुत बड़ी समस्या है। सच्चे मुसलमान आतंकवाद की मुखालफत करें।' मुफ्ती का मक्का से यह फरमान दुनियाभर के फतवों की मां है। जिसकी जिनती तारीफ की जाए, कम होगी।

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