आप चुनाव हार चुके, हम से न पूछो सवाल

Publsihed: 27.Nov.2009, 10:06

अपन राजस्थान के चुनावों की बात नहीं कर रहे। जहां नगर पालिका चुनावों में बीजेपी चारों गढ़ों में चारों खाने चित्त हो गई। जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, कोटा सब किले ढह गए। वसुंधरा विरोधियों का कलेजा ठंडा हुआ होगा। पर अपन राजस्थान की बात कर ही नहीं रहे। अपन महंगाई की बात भी नहीं कर रहे। जिस पर गुरुवार को विपक्ष ने सवाल उठाया। महंगाई पर कांग्रेस गंभीर नहीं। यह बात तो लोकसभा में दिखी। पर विपक्ष भी गंभीर नहीं दिखा। प्रणव दा महंगाई पर बहस से ठीक पहले उठकर चले गए। तो आडवाणी बहस शुरू होते ही उठ गए। सोनिया नहीं थी, सो कांग्रेसी सांसद भी नाममात्र थे। विपक्ष भी हाजिरी के हिसाब से गंभीर नहीं दिखा। पर अपन न राजस्थान के चुनाव नतीजों की बात कर रहे। न महंगाई की। अपन बात कर रहे आतंकवाद पर जीत की। क्यों, अपन ने लिखा था न कल।

कांग्रेस को चुनाव जीत का घमंड हो चुका। आतंकवाद को लेकर अब उतनी संजीदा नहीं। जितनी 26/11 के बाद थी। अपन ने कल लिखा था- 'कांग्रेस ने चुनाव जीत लिया। तो आतंकवाद पर जीत मान ली। पर चुनाव जीतने से आतंकवाद पर जीत नहीं होगी। बरसी मनाने, श्रध्दांजलि देने से भी नहीं होगी।' और जो अपन ने लिखा था। वही अपन ने गुरुवार को लोकसभा में देखा। जब अनंत कुमार पर भड़के प्रणव दा ने कहा- 'आप हमसे आतंकवाद के शिकारों का हाल न पूछो। आप उनका मुआवजे का हिसाब न पूछो।' तो सवाल- प्रणव दा का पारा चढ़ा क्यों? गुस्सा था किस बात पर? यह जीत का घमंड था या राजनीतिक हताशा का नजारा। प्रणव दा की हताशा पर अपन ही नहीं। सब हैरान। संसद के गलियारों में राजनीतिक प्राणी नमक छिड़ककर मजे लेते रहे। प्रणव दा का गुस्सा नाजायज नहीं। दर्जनों कमेटियों के अध्यक्ष वह। जहां संकट हो, वहां जिम्मेदारी उनकी। रक्षामंत्री मजबूत चाहिए हो, तो प्रणव मुखर्जी। विदेशमंत्री कड़क चाहिए हो, तो प्रणव मुखर्जी। वित्त मंत्री हिसाबी-किताबी चाहिए। तो प्रणव मुखर्जी। संसद का सत्र चल रहा हो। तो संसद का सामना करें प्रणव मुखर्जी। होम मिनिस्ट्री से लिब्राहन आयोग की रपट लीक हो। तो विपक्ष का सामना करें प्रणव मुखर्जी। तब केबिनेट की अध्यक्षता भी वही करें। पर प्रधानमंत्री बनें मनमोहन सिंह। जो संसद के हर सेशन में विदेश दौरे पर चले जाएं। भला गुस्सा क्यों नहीं आएगा प्रणव दा को। पर प्रणव दा गलत वक्त गुस्सा उड़ेल गए। मुंबई के हताहतों के सवाल पर गुस्सा। वह भी मुंबई पर हमले की बरसी पर। पर बात श्रध्दांजलि की रस्म अदायगी की नहीं। न रस्म अदायगी पर कोई बवाल हुआ। बवाल तो तब हुआ। जब जीरो ऑवर में आडवाणी ने कुछ सवाल उठाए। प्रणव दा के पास सवालों का जवाब होता। तो वह इतना झगड़ते भी नहीं। आडवाणी ने जो सवाल लोकसभा में उठाए। राज्यसभा में वही सवाल प्रकाश जावड़ेकर ने दागे। अलबत्ता सवाल नहीं, खुलासे थे। दिल्ली में जो सवाल आडवाणी उठा रहे थे। उन्हीं सवालों पर किरिट सोमैया मुंबई में धरने पर थे। तो क्या था ऐसा विस्फोटक खुलासा। जिस पर प्रणव दा आपा खो बैठे। खुलासा था- 'हमले में 403 जने शिकार हुए। मुआवजे के हकदार थे 118 जने। पर अब तक मुआवजा मिला सिर्फ 64 को।' एक चैक तो बाऊंस हो गया। उनने सीएसटी रेलवे स्टेशन की बात भी उठाई। जहां के 64 शिकारों को नौकरी का वायदा किया था लालू ने। पर अब तक 38  को नौकरियों की पेशकश पहुंची। आडवाणी हमलावर नहीं थे। उनने तो कहा- 'बारह एजेसियां राहत-पुनर्वास में शामिल। होम मिनिस्ट्री को-आर्डिनेट करे। तो अच्छा रहे।' पर प्रणव दा चुप्पी साधे बैठे रहे। तो अनंत कुमार से नहीं रहा गया। उनने जवाब मांगा। प्रणव दा इसी पर भड़क गए। उनने जो कहा। उसका कुछ हिस्सा तो अपन ने बताया। अब आगे भी सुनिए। उनने अनंत कुमार से कहा- 'मैं आपको सुनने नहीं बैठा हूं। विपक्ष के नेता को सुनने बैठा हूं। आप लोग आतंकवाद पर राजनीति कर रहे। पहले भी ऐसा करके सबक सीख चुके। आगे भी सबक मिलेगा।' आप हमसे आतंकवाद पर सवाल न पूछिए।

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