गलतियों का दूसरा दौर शुरू करने को तैयार बीजेपी

Publsihed: 11.Nov.2009, 10:23

कांग्रेस यूपी-केरल में लौट आएगी। बीजपी का सितारा डूबना बरकरार। यह है मंगलवार को निकले नतीजों का लब्बोलुआब। सबसे ज्यादा महत्व यूपी के नतीजों का। न मुलायम अपनी पुत्रवधू को जीता पाए। न अखिलेश अपनी सीट अपनी बीवी के नाम कर पाए। सो यह बाप-बेटे दोनों की हार हुई। अपन भी फिरोजाबाद को यादव सीट समझते थे। तो फिरोजाबाद से जातिवाद राजनीति का भूत उतर गया। राज बब्बर की जीत इसका साफ इशारा। अपन को लगता था- फतेहपुर सीकरी के बाद फिरोजाबाद भी हारेंगे राज बब्बर। पर फिरोजाबाद ने सिर्फ यादव महारथियों को नहीं हराया। आने वाले कल के यूपी की इबारत लिख दी। राहुल गांधी ने दाव लगाया था फिरोजाबाद पर। राहुल कोई सीएम पद के उम्मीदवार तो नहीं होंगे। पर 2012 की यूपी एसेंबली चुनाव के कांग्रेसी दूल्हे जरूर होंगे।

लखनऊ की एसेंबली सीट से भी कांग्रेस गदगद। वाजपेयी का हल्का हुआ करता था यह। लालजी टंडन एमपी बने। तो खाली हुई थी एसेंबली सीट। बेटे को टिकट नहीं मिली। तो बीजेपी को नहीं जीता पाए या ईमानदारी से जुटे ही नहीं। लखनऊ में दो दशक बाद कांग्रेस लौट आई। तो गदगद दिग्गी राजा बोले- 'अब लखनऊ भी दूर नहीं। लक्ष्य 2012 है यूपी।' सिर्फ अखिलेश और लालजी अपनी सीटें नहीं हारे। दो और एमपी भी अपनी सीटें हार गए। रोहडू में कांग्रेस ने वीरभद्र की बीवी प्रतिभा को टिकट नहीं दिया। पहली बार रोहडू हार गई कांग्रेस। बीजेपी के खुशीराम छह बार हारकर जीते।  अब अगली बार जीतेंगे भी नहीं। अगली बार रोहडू रिजर्व सीट होगी। बीजेपी ने अपने एमपी बने राजन सुशांत की बीवी को टिकट नहीं दिया। तो अपनी जावली सीट पार्टी को दिलाने में नहीं जुटे सुशांत। बीजेपी-कांग्रेस सांसदों की बीवियों को टिकट मिलता। तो पति दिन-रात एक करते। पर यूपी के केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह तो जोर लगाकर भी कुछ नहीं कर पाए। अपनी एसेंबली सीट का टिकट मां को दिलाया। पर मां बुरी तरह हारी। वैसे हार तो रहा है लोकतंत्र। यूपी के बजट में मूर्तियों की सेंध लगाकर जीत गई मायावती। यह तो कमाल हो गया। यूपी की 11 में से आठ सीटें जीत गई। अब 403 की एसेंबली में भी 226 मायावादी हो गए। कांग्रेस एक हारी, तो दूसरी जीती। पर मुलायम का तो भट्ठा ही बैठ गया। चारों खाने चित्त हुए। मुलायम को सेंध लगाकर कांग्रेस की लोकसभा में अब 207 सीटें हो गई। राजस्थान का नतीजा भी हिमाचल जैसा रहा। एक बीजेपी के नाम। दूसरी कांग्रेस के नाम। यानी राजस्थान में बीजेपी-कांग्रेस में टक्कर अभी भी बराबरी की। पर वामपंथियों का सितारा बीजेपी से भी ज्यादा डूबा। केरल की सभी तीनों सीटें कांग्रेस जीत गई। यों असम की दोनों सीटें भी जीती। पर बात वामपंथियों की। तो वामपंथियों की लुटिया केरल के साथ अब के बंगाल में भी डूबेगी। बंगाल की दस सीटों पर चुनाव हुआ। सीपीएम-सीपीआई को एक भी सीट नहीं मिली। ममता-सोनिया में तालमेल था। सोनिया तीन पर लड़ी, ममता सात पर। ममता सातों जीत गई। सोनिया तीन में से सिर्फ एक जीती। वह भी सीपीएम छोडकर आया एपी कुट्टी जीता। ममता को इसे लोकतंत्र की जीत कहने का हक। पर इससे साबित हुआ- बंगाल में सोनिया-राहुल से बहुत बड़ी है ममता। चुनाव नतीजों पर लब्बोलुआब- केरल-यूपी में कांग्रेस लौटेगी। बंगाल में ममता की पारी दूर नहीं। पर बीजेपी के हाथ में ठन-ठन गोपाल। महाराष्ट्र, हरियाणा, अरुणाचल के बाद यह नया सबूत। यह बीजेपी की पहले दौर की गलतियों का नतीजा। दूसरा दौर तो अब शुरू होगा। जब स्टेट लेवल का  लीडर ढूंढ-ढांढ कर अपना अध्यक्ष बनाएगी। पहले प्रयोग से सबक नहीं सीखा। सो अब दूसरे प्रयोग की बारी। पर जो गलतियों से सबक सीखने को राजी न हो। तो आप क्या कर लीजिएगा। संघ के फार्मूले से बीजेपी के बड़े-बड़े योध्दा दुविधा में। संघ को समझ नहीं आ रहा- 'वह देश पर हुकूमत चाहती है या बीजेपी पर।' लगता है अब संघ ने देश पर हुकूमत का सपना छोड़ दिया। इसीलिए अब बीजेपी पर हुकूमत की तैयारी में। जेतली-सुषमा-वैंकेया जैसे छोड़ कोई नितिन गडकरी अध्यक्ष हुआ। तो 1984 दूर नहीं। राजीव ने बीजेपी को 1984 के दिन दिखाए थे। अब राहुल 2012-14 दिखाएंगे।

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