तालिबान का एजेंडा पाक में अलकायदा सरकार का

Publsihed: 16.Oct.2009, 10:06

बुजुर्गोँ ने कहा था- जैसी करोगे, वैसी भरोगे। बुजुर्गों ने यह भी कहा था- जो बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय। अब पाकिस्तान को करनी की भरनी का वक्त। तड़ातड़ बम फट रहे हैं पाक में। गुरुवार को पांच जगह बम फटे। तीन जगह तो सिर्फ लाहौर में ही। पेशावर और कोहाट में भी बम फटे। पहले अपन पेशावर की बात ही करें। निशाना कोई बड़ा आदमी नहीं था। मरा भी सिर्फ एक ही। वह भी एक मासूम बच्चा। नार्थ-वेस्ट फरंटियर प्रोविंस के सीएम के ड्राइवर का घर था। घर के ठीक सामने कार बम फटा। पेशावर के साथ ही लगता है कोहाट। जहां दस लोग मारे गए। कोहाट में इस्लामाबाद दोहराया गया। याद है- तीन साल पहले का आतंकी हमला। इस्लामाबाद के फाइव स्टार होटल में घुसा था विस्फोटक भरा ट्रक।

कोहाट में विस्फोटकों से भरा वाहन पुलिस स्टेशन में जाकर फटा। पर उससे बड़ा आतंकी हमला लाहौर में हुआ। जहां तालिबानों ने पच्चीस मिनट में तीन जगह हमले किए। निशाना था- एफआईए। यानी फेडरल इंवेस्टीगेशन एजेंसी। बताते जाएं- अपन तो फेडरल इंवेस्टीगेशन एजेंसी की अभी बात ही कर रहे। पाकिस्तान में तो लंबे समय से है-एफआईए। पोटा के साथ ही जुड़ा था एफआईए का आइडिया। लालकृष्ण आडवाणी ने कोशिश तो बहुत की। पर कांग्रेसी-वामपंथी मुख्मंत्रियों ने राज्यों में दखल कहकर रोका। अब जब यूपीए सरकार। तो कांग्रेस की कोशिश एफआईए बनाने की। कानून बनाकर शुरूआत हो चुकी। पर अपन बात कर रहे थे पाकिस्तान की। एफआईए के अलावा दो पुलिस ट्रेनिंग यूनिट निशाना बने। पुलिस और आतंकियों में आमने-सामने भिंडत हुई। भिड़ंत में तीस मरे। पुलिस का दावा मरने वालों में दस तालिबानी आतंकी। सोलह सुरक्षाकर्मी। चार आम आदमी। यानी गुरुवार पेशावर-कोहाट-लाहौर के नाम रहा। जहां दस आतंकियों समेतं 41 लोग मरे। यों यह कोई बड़ा आंकड़ा नहीं। अपने यहां तो तालिबानों ने मुंबई हमलों में ही 200 मार दिए थे। पर पाकिस्तान में आतंकियों का जोश ज्यादा। उसकी वजह भी अपन बताते जाएं। सरकार का अमेरिकी इशारों पर चलना आतंकियों को कतई बर्दाश्त नहीं। सो वहां अपनों से ही लड़ रहे हैं आतंकी। तालिबानों को भरोसा था- जिस आईएसआई ने पाला-पोसा। वह बुरे वक्त में पनाह देगी। पर ऐसा नहीं हुआ। तालिबानों पर आईएसआई का दबाव दो सूत्रीय। पहला- कश्मीर में घुसकर जेहाद करो। दूसरा- जेहाद का दायरा अफगानिस्तान ही बना रहे। पर अफगानिस्तान से भागकर आए आतंकी अब पाक पर कब्जे की फिराक में। अलकायदा की हुकूमत गई। तो अब पाक में अलकायदा हुकूमत की कोशिश। आईएसआई के कुछ तबके भी तालिबान के साथ। वरना आप अंदाज लगाइए। बार-बार एफआईए ही क्यों बन रहा है तालिबान का निशाना। पिछले साल मार्च में भी एफआईए दफ्तर में घुसी थी बमों से भरी कार। चौबीस लोग मारे गए थे। अभी छह दिन पहले की बात। दस अक्टूबर को रावलपिंडी के आर्मी हेडक्वाटर में हुआ था हमला। इस हमले में भी नौ आतंकियों समेत तेईस मरे थे। यह पाक सेना के अमेरिका को सहयोग की खुन्नस। लाहौर में जहां गुरुवार को एफआईए एजेंसी पर हमला हुआ। वहीं के करीब एक पुलिस ट्रेनिंग कैंप पर भी हमला हुआ था इसी मार्च में। पर अपन पिछले कुछ महीनों की बात न ही करें। दो हफ्तों की ही बात करें। तो सौ से ज्यादा लोग तालिबानों का निशाना बने। अभी तीन दिन पहले की बात। मालाकंड डीविजन में अर्ध्दसैनिक बल पर हमला हुआ। पचास लोग मरे। छह दिन पहले की बात। पेशावर में हमला हुआ। पचास मरे। पेशावर और मालाकंड। अलबत्ता कोहाट भी। तालिबानियों के पनाहगाह। लगते हाथों बताते जाएं- यहीं पर अमेरिकी फौज कर रही है ड्रोन से हमले। गुरुवार को भी तो दक्षिणी वजीरिस्तान में ड्रोन हमला हुआ। सत्रह निशाना बने।

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