यह सत्ता और घोटाले में वाजिब हिस्से की जंग

Publsihed: 27.Oct.2009, 10:02

जून 2008 में खुलता है एक घोटाला। यूपीए सरकार के डीएमके मंत्री कटघरे में खड़े थे। करुणानिधि के करीबी ए. राजा। राजा ने मनमोहन सिंह को ढाल बना लिया। कहा- 'मैंने जो कुछ किया, पीएम की जानकारी में था। पीएम की इजाजत से किया।' मनमोहन सिंह ने भी बचाव में परहेज नहीं किया। मनमोहन आज भी अपनी उसी जुबान पर कायम। अब जब सीबीआई छापे मार चुकी। तो भी मनमोहन सिंह ने ए. राजा का बचाव किया। मनमोहन भी कटघरे में खड़े होने से बचेंगे नहीं। अरुण जेटली ने ए. राजा के साथ मनमोहन सिंह को कटघरे में खड़ा कर भी दिया। शीत सत्र शुरू होने में ज्यादा देर नहीं। उन्नीस नवबंर को शुरू होगा। सत्र का एजेंडा सीबीआई ने तय कर दिया।

सीबीआई के छापे राजा को बचाने की मुहिम भी हो। तो अपन को हैरानी नहीं होगी। बोफोर्स घोटाला हो या आरुषि हत्याकांड। सीबीआई को कभी सबूत नहीं मिलते। यों भी सीबीआई का राजनीतिक इस्तेमाल यूपीए सरकार की फितरत। पर फिलहाल तो सीबीआई ने एजेंडा तय किया। सीबीआई के छापों से करुणानिधि को गुस्सा आना ही था। आखिर सीबीआई सीधे पीएम के अधीन। पहले अपन छापों की वजह बताएं। फिर दोनों राजनीतिक अटकलों पर बात करेंगे। बात शुरू हुई ए. राजा के संचार मंत्री बनने से। कुछ महीने बाद ही तमिलनाडु में एक कंपनी बनी- 'ग्रीन हाऊस प्रोमोटर प्रा. लिमिटेड।' शुरूआती पूंजी थी- एक लाख रुपए। फरवरी 2007 में कंपनी में एक नई डायरैक्टर बनी। नाम था- 'परमेश्वरी।' जानते हो- कौन है यह। यह है- संचार मंत्री ए. राजा की पत्नी। कंपनी में परमेश्वरी का पता था- ए राजा का सरकारी निवास। तभी एक बवाल खड़ा हुआ। याद है अपने होम मिनिस्टर थे- शिवराज पाटिल। उनका बेटा भी पाटिल के घर से धंधा कर रहा था। हरियाणा में हुड्डा की बदौलत कर रहे थे बिजनेस। खुलासा हुआ तो पाटिल को शर्मिंदगी उठानी पड़ी। पर ए. राजा के कान खड़े हुए। तो परमेश्वरी का फरवरी 2008 में इस्तीफा हो गया। परमेश्वरी की जगह डायरेक्टर बनी मालारविझी। ए राजा की भतीजी। बता दें- कंपनी में राजा का भाई भी है, भतीजा भी। पिछले साल के आखिर में कंपनी 755 करोड़ की थी। एक लाख से शुरू हुई थी 2004 में। यह था संचार मंत्रालय के ठेकों का कमाल। अब बात स्वान टेलीकाम और यूनीटेक की। स्वान का रिश्ता भी ए राजा से। यूनीटेक के बारे में खुलासा और विस्फोटक। नार्वे की है यह कंपनी। सिंगापुर में रजिस्टर्ड हुई। पाकिस्तान और बांग्लादेश में टेलीकाम के ठेके। अपने यहां एक नियम सुरक्षा का भी है। उसके तहत जिसका काम पाक में हो। अपन उस कंपनी को सुरक्षा से जुड़ा कोई ठेका नहीं देते। संचार का तो सुरक्षा से सीधा वास्ता। ए राजा ने स्वान को 2जी स्पैक्ट्रम का ठेका दिया 1537 करोड़ में। जिसे स्वान ने एक हफ्ते में 2400 करोड़ में बेच दिया। ए राजा ने यूनीटेक को ठेका दिया 1638 करोड़ में। यूनीटेक ने एक हफ्ते में 6100 करोड़ में बेच दिया। ठेकों में न पहले तुजुर्बों की शर्त लागू की। न बंद लिफाफे में टेंडर मांगे। ए राजा का फार्मूला था- 'पहले आओ, पहले पाओ।' असल में था- 'कमाओ और हिस्सा दो।' रेट तय कर दिए 2001 वाले। टेलीकाम सेक्रेट्री डीएस माथुर सहमत नहीं थे। सो फाइल पर दस्तखत नहीं किए थे। ट्राई के मौजूदा चीफ जेएस सरना ने की थी ए राजा की मदद। ए राजा ने ट्राई चीफ बनाकर सरना की मदद की। अब सुनो सीवीसी की बात। सीवीसी ने अपनी रपट में लिखा है- '122 सर्किटों के ठेकों में सरकार को 22466 करोड़ का चूना लगा।' पर मनमोहन सिंह ने ए राजा का बचाव किया। वह बचाव अब भी जारी। सीबीआई ने मंत्रालय पर छापा मार दिया। करुणानिधि का राग सुनिए। वह कहते हैं- 'यह दलित मंत्री को बदनाम करने की साजिश।' वही अरबपति बनने के बाद जो मायावती कहती हैं। पर बात साजिश की। कौन रच रहा है साजिश? क्या साजिश से मनमोहन वाकिफ नहीं? क्या पवार-लालू की तरह करुणानिधि को कमजोर करने की कांग्रेसी साजिश? तमिलनाडु में 43 साल से सत्ता सुख से महरूम हैं कांग्रेस। क्या राहुल का तमिलनाडु में अपने पैरों पर खड़े होने वाले फार्मूले की साजिश है यह? तो क्या आखिर में मनमोहन पलटी मार लेंगे? पर ए राजा कहते हैं- 'सब पीएम की जानकारी में हुआ।' तो क्या कांग्रेस को 22466 करोड़ के घोटाले में वाजिब हिस्सा नहीं मिला। या तमिलनाडु की सत्ता में हिस्से की बात।

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