मनमोहन से ज्यादा तो हिलेरी ने खोली आईएसआई की पोल

Publsihed: 29.Oct.2009, 09:35

शर्म-अल-शेख के बयान से अपन सहमत नहीं थे। मनमोहन सिंह ने आतंकवाद को किनारे रख पाक से बात शुरू की थी। तो अपन क्या सारा देश खफा था। देश खफा हुआ। तो सोनिया गांधी के कान भी खड़े हुए। सोनिया ने तब तक मनमोहन का समर्थन नहीं किया। जब तक उनने संसद में पलटी नहीं खाई। मनमोहन के अब समझ में आ चुका। अमेरिका के कहने पर पाक से नरमी कितनी महंगी पड़ेगी। सो मनमोहन अब बिना सोचे-समझे नहीं बोलते। पाक से निपटने का ठेका अमेरिका को देने का जोखिम भी नहीं उठाते। मनमोहन ही नहीं। एसएम कृष्णा के बयानों में मर्दानगी झलकने लगी।

वरना शुरू-शुरू में कैसे ढीले-ढाले थे। विदेशमंत्री को चुस्त दुरुस्त होना चाहिए। जब लोकसभा में प्रणव दा को एसएम कृष्णा के बचाव में उतरना पड़ा। तो अपन को लगा था- कृष्णा ज्यादा दिन विदेशमंत्री नहीं रह पाएंगे। पर जिसके सिर ऊपर तू स्वामी, वो दुख कैसा पावे। सोनिया का आशीर्वाद था। तो मनमोहन कैसे बदलते विभाग। शर्म-अल-शेख पर सोनिया के तेवर देख कृष्णा भी समझ गए। यह अपन को कृष्णा के ताजा बयान से साफ दिखा। सोमवार दिन में जब अपन ने पाक के गृहमंत्री रहमान मलिक को कहते सुना- 'अफगानिस्तान बार्डर पर तालिबान की मदद कर रहा है भारत।' तो अपन ने बगल में बैठे खबरची से कहा- 'इसका एक ही जवाब होना चाहिए- यह बकवास के सिवा कुछ नहीं।' पर अपने एसएम कृष्णा कुछ नहीं बोले। सोमवार को कोई मुंहतोड़ जवाब नहीं आया। मंगलवार को बोले। तो अपने एके एंटनी। उनने कहा- 'यह आरोप बेहुदा और आधारहीन है।' बुधवार को एसएम कृष्णा बोले। तो अपन को लगा- अभी रंगरूट मंत्री बने हुए हैं कृष्णा। खैर कृष्णा ने भले एंटनी की नकल की। पर बुधवार को वह बेंगलुरु में ताल ठोककर बोले- 'पाक का यह आरोप बेहुदा और हास्यास्पद।' पर अपन बात कर रहे थे मनमोहन की। जो बुधवार को कश्मीर गए थे। अनंतनाग-काजीगुंड रेललाईन शुरू करने। बता दें- मनमोहन पीछे खड़े थे, सोनिया आगे। पर यह कोई मुद्दा नहीं। मुद्दा है- रेल लाईन शुरू होना। वाजपेयी ने लिया था कश्मीर को ट्रेन से जोड़ने का सपना। सात साल पहले 2002 में उनने किया था एलान। दाने-दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम। पर बात रेल लिंक का उद्धाटन कर श्रेय लेने की नहीं। बात कश्मीर में पीएम के कहे लफ्जो की। उनने कश्मीरियों से कहा- 'हमने पाक से संबंध सुधारने में कसर नहीं छोड़ी। हमने सड़कें खोली, रेल मार्ग खोले। व्यापार खोला, दोनों तरफ के वाशिंदों को जोड़ा। पर आतंकियों ने बार-बार सब उपलब्धियां धो डाली।' शुकर है उनने 2005 वाली गलती नहीं दोहराई। जो चार साल से दोहरा रहे थे। बार-बार कहते थे- 'दोनों ही देश आतंकवाद के शिकार।' अपन बार-बार इस बयान पर ऊंगली उठाते रहे। दोनों देशों के आतंकवाद की तुलना नहीं हो सकती। शुकर है बुधवार मनमोहन की भाषा बदली। उनने कहा- 'मैं पाक सरकार से कहूंगा। वह भारत में आतंक फैलाने वालों को कुचले। अगर वे सरकारी एजेंसियां नहीं। तो भी उन्हें कुचलना पाक की ही जिम्मेदारी। पाक उन्हें कटघरे में खड़ा करे, ट्रेनिंग कैंप नष्ट करे। उनकी सप्लाई लाईन तोड़े। आतंकवाद से कोई समझौता नहीं हो सकता।' शुकर है पीएम को भारत-पाक आतंकवाद में फर्क समझ आया। भारत के आतंकवाद में पाक की सरकारी एजेंसियों का हाथ। फौज और आईएसआई का हाथ। मनमोहन ही नहीं समझ रहे थे। अमेरिका को तो सब समझ। मनमोहन से ज्यादा साफ तो बुधवार को हिलेरी क्लिंटन बोली। पाक आ रही थी। तो रास्ते में खबरचियों ने पूछा- 'क्या आप सहमत हैं कि पाक में अब फौज और आईएसआई लश्कर-ए-तोएबा की मददगार नहीं।' हिलेरी क्लिंटन बोली- 'नहीं, मैं सहमत नहीं।' पाक में रोज फूट रहे हैं बम। रोज हो रहे हैं फिदायिन हमले। बुधवार को भी पेशावर में कार बम फटा। तो 90 लोग मरे। पर पाक लश्कर की मदद से बाज नहीं आ रहा। क्लिंटन ने यह बिना सबूत के तो नहीं कहा।

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