सादगी जरूरी, पर सुरक्षा उससे भी ज्यादा जरूरी

Publsihed: 17.Sep.2009, 09:52

लो अब सादगी की पोल खुलने लगी। मंत्रियों ने केबिनेट में नाक-भौं सिकोड़ी ही थी। उनकी असलियत भी सामने आ गई। अपन ने तो दस सितंबर को ही लिखा था- 'यों कोठियों की रेनोवेशन- रख रखाव से फाइव स्टार सस्ते।' अब अपनी बात की पुष्टि नए खुलासे से हो गई। नया खुलासा मंत्रियों की कोठियों के रेनोवेशन का। उसमें भी खासकर बाथरूम। आनंद शर्मा कभी जननेता नहीं रहे। लोकसभा या विधानसभा चुनाव जीतते तो तब, जब लड़ते। पर सोनिया की कृपा से केबिनेट मंत्री बने। तो उद्योग भवन के दफ्तर का रेनोवेशन देखिए। चौदह लाख 78 हजार रुपया एक कमरे का खर्च हुआ। विलासराव पहली बार केंद्र में आए। महाराष्ट्र के दो बार सीएम रहे। सो खुला खाता रहा। विलासराव ने आनंद शर्मा से कुछ कम खर्च करवाया। चौदह लाख 54 हजार।

किसी मंत्री को बाथरूम में इटेलियन टाईल चाहिए। किसी को इटेलियन मार्बल। एक मंत्री ने तो अपने बाथरूम में एसी लगवा लिया। लालू किन्हें बता रहे हैं- बापू थर्ड क्लास में सफर करते थे। फिजूल खर्ची और लूट का अंदाज लगाना हो। तो दिल्ली का हरियाणा भवन देखिए। अभी-अभी कंपलीट हुआ है रेनोवेशन। छत्तीस कमरे, दस सुइट। कुल 46 कमरे हुए। क्या पांच करोड़ में इमारत नई न बन जाए। पर रेनोवेशन का बिल आया है नौ करोड़ रुपए। सरकारी खजाने की ऐसी बेहिसाब लूट पर किसी को एतराज नहीं। पर एसएम कृष्णा, शशि थरूर अपने पैसे से फाइव स्टार में रहें। तो एतराज। यह कैसी सादगी। यह तो सादगी की चोंचलेबाजी। वैसे भी कौन मन से अपना रहा था सादगी मंत्र। शशि थरूर को ही लो। उनने ट्विटर डाट काम पर जो लिखा। वह सबके सामने। किसी ने पूछा- 'अगली बार आप केरल जाएंगे। तो क्या गाय-भैंसों की श्रेणी में सफर करेंगे।' थरूर ने जवाब लिखा- 'बिल्कुल सही। हमारी पवित्र गऊओं से एकजुटता दिखाते हुए गाय-भैंसों की क्लास में।' यानी इकनामी क्लास थरूर के लिए गाय-भैंसों के लिए। शशि थरूर उस क्लास के नहीं। जिसमें शामिल हो गए। पोलिटिशन कब क्या रंग बदल लें। इसका एहसास नहीं थरूर को। संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेट्री जनरल का चुनाव हार गए। तो खाली बैठे क्या करते। मनमोहन सिंह भी पालिटिकल क्लास के नहीं। सो थरूर पहली नजर में भा गए मनमोहन को। टिकट देकर चुनाव लड़ा दिया। थरूर भी खुद को कांग्रेसी नहीं मानते। उनने भी खुद को कांग्रेस का गोद लिया बच्चा ही कहा। सो जनार्दन द्विवेदी ने गोद लिए बच्चे की कुछ ऐसे क्लास ली। बोले- 'थरूर अपनी भाषा सुधारें। उन्हें पता होना चाहिए, वह अब एक ऐतिहासिक संगठन के मेंबर। कांग्रेस की वर्किंग सीख लेनी चाहिए। गोद लिया बच्चा है। नए-नए नवेले हैं- सो अभी कुछ नहीं कह रहे।' डांट तो जयंती नटराजन ने भी पिलाई। कहा- 'पार्टी ऐसी बातें बर्दाश्त नहीं करेगी।' पर सवाल मंत्रियों की मजबूरी का। कम से कम कांग्रेस के मंत्रियों को ऐसी सादगी की आदत नहीं। पर सादगी से ज्यादा तो नौटंकी हो गई। सादगी होती, अगर मन से होती। पर अपन इस बहस में नहीं जाते। सादगी से ज्यादा फिक्र की बात सुरक्षा की। पानीपत के पास जो कुछ हुआ। उसका जिम्मेदार कौन। क्या खुद राहुल नहीं। राहुल लौट रहे थे लुधियाना से। तो शताब्दी पर पथराव हो गया। क्या ट्रेन में सफर की नुमाइश को अपन सादगी कहें। राहुल ने एसपीजी रूल बुक का भी खुल्ला उल्लंघन किया। एसपीजी के साथ नाईंसाफी की। अगर राहुल को कुछ हो जाता। तो कौन जिम्मेदार होता। पानीपत के पास ट्रेन पर पथराव ने कुछ और नहीं। पर कांग्रेस को जरूर सद्बुध्दि दी। जनार्दन द्विवेदी बोले- 'सादगी जरूरी है। पर सुरक्षा उससे ज्यादा जरूरी। फिजूलखर्ची रोकना अपनी जगह। पर सुरक्षा को दाव पर लगाकर तो नहीं।' यानी अब सुरक्षा घेरे में ट्रेन पर सफर नहीं। बात गांधी परिवार की हो। तो कांग्रेस का पैंतरा बदलना स्वाभाविक।

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