करजई-मनमोहन चाहें, तो मुशर्रफ होंगे मुश्किल में

Publsihed: 18.Nov.2006, 20:40

पाकिस्तान के विदेश सचिव रियाज मोहम्मद खान इस बार भारत आए, तो काफी डरे हुए थे। इसकी ताजा वजह यह है कि बलूचिस्तान और नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रॉवींस में जंग--आजादी एक बार फिर मुंह बाए खड़ी है। पाकिस्तान के विदेश सचिव इस्लामाबाद लौटे ही थे, कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद करजई शिमला से होते हुए दिल्ली पहुंच गए। बलुचिस्तान और नार्थ वेस्ट फ्रंटियर का भारत से शायद उतना नाता नहीं है, जितना अफगानिस्तान से है। पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इतना बड़ा विवाद का मुद्दा बना दिया, लेकिन खुद उसने बिना बलुचिस्तान और नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोवींस से कोई बात किए इन दोनों सीमांत राज्यों पर बलात कबजा किया था।

इनमें से नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोवींस तो बाकायदा अफगानिस्तान का हिस्सा था, जबकि बलुचिस्तान एक ऐसा स्वतंत्र देश था, जिस पर कभी अंग्रेज भी पूरी तरह कबजा नहीं कर पाए थे। जब अंग्रेजों ने भारत को आजाद किया और देश का बंटवारा हुआ तो अंग्रेजों ने जम्मू कश्मीर के साथ-साथ बलुचिस्तान और नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोवींस के बारे में भी कोई फैसला नहीं किया था। थोड़ा इतिहास में जाना पड़ेगा। बात 1893 की है, जब अफगानिस्तान के तबके शासक आमीर अबदुल रहमान खान और ब्रिटिश भारत के विदेश सचिव सर हेनरी मोरटाइमर डूरंड में एक समझौता हुआ। इस समझौते के तहत ब्रिटेन ने नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोवींस को अफगानिस्तान से लीज पर ले लिया था और 2,450 किलोमीटर की सीमा तय की गई थी। हालांकि इस सीमा क्षेत्र में बलुचिस्तान भी आता था, लेकिन उसे न तो भरोसे में लिया गया और न समझौते पर तबके बलुचिस्तान के शासक के दस्तखत करवाए गए, अलबता ब्रिटिश विदेश सचिव डूरंड ने झूठ बोला कि बलुचिस्तान ब्रिटिश भारत के कबजे में है। यह 2,450 किलोमीटर की सीमा तीन देशों की सीमा थी और त्रिपक्षीय समझौता होना चाहिए था, लेकिन अंग्रेजों की मक्कारी के कारण बलुचिस्तान को पूरी तरह अंधेरे में रखा गया। अफगानिस्तान के साथ अंग्रेजों ने इतना बड़ा धोखा किया कि वहां के मौजूदा राष्ट्रपति हामिद करजई इस डूरंड लाईन को धोखे की लाईन कहकर पुकारते हैं। करजई की तरफ से डूरंड लाईन को धोखे की लाईन कहे जाने का साफ मतलब है कि अफगानिस्तान ने कम से कम नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोवींस पर अपना दावा आज भी नहीं छोड़ा है। इतिहासकार बताते हैं कि ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव डूरंड ने अफगानिस्तान के शासक आमीर अबदुल रहमान खान को कहा था कि नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोवींस की लीज 1993 में खत्म हो जाएगी। हालांकि लिखित दस्तावेजों में इसका कोई जिक्र नहीं है, अगर लिखित दस्तावेजों में इसका जिक्र होता तो भले ही अंग्रेज भारत-पाक छोड़कर चले गए हों, 1993 में नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोवींस का उसी तरह अफगानिस्तान में हस्तांतरण हो जाना चाहिए था, जिस तरह हांगकांग का चीन में हुआ है। लेकिन अंग्रेजों ने यहां भी अपनी मक्कारी नहीं छोड़ी। जब भारत-पाक का बंटवारा हुआ तो अंग्रेजों ने नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोवींस पाकिस्तान को सौंप दिया, लेकिन बलुचिस्तान क्योंकि उसके कबजे में था ही नहीं, इसलिए वह पाकिस्तान को नहीं सौंपा गया था। जिस समय भारत आजाद हो रहा था और उसका बंटवारा हो रहा था तो उसी समय अफगानिस्तान में 'लोया जिरगा' (कबीलों के सरदारों की पंचायत) हुआ और डूरंड रेखा को पूरी तरह खारिज कर दिया गया। अफगानिस्तान ने यह मामला संयुक्त राष्ट्र में भी उठाया, लेकिन इस छोटे से देश की वहां से किसी ने मदद नहीं की। उधर 11 अगस्त 1947 को लार्ड माउंटबेटन ने कलत के खान मीर अहमद यार खान को बुलाकर बलुचिस्तान पूरी तरह उसके हवाले कर दिया। कलत के खान ने बलुचिस्तान को एक आजाद देश घोषित कर दिया, मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने एक बयान में मीर अहमद यार खान के तहत बलुचिस्तान को एक स्वतंत्र देश घोषित करने का स्वागत किया था। 'न्यूयार्क टाईम्स' के 12 अगस्त 1947 के अखबार में यह खबर छपी थी कि पाकिस्तान ने एक समझौते के तहत कलत को आजाद देश मान लिया है और नई दिल्ली ने भी इसका स्वागत किया है। अगले दिन यानी 13 अगस्त 1947 को बंटवारे का जो नक्शा 'न्यूयार्क टाईम्स' में छपा, उसमें कलत के तहत बलुचिस्तान को अलग देश दिखाया गया था। उस समय पाकिस्तान और कलत के शासक मीर अहमद यार खान के बीच हुए समझौते में संचार और व्यापार संबंधी फैसले हो गए थे, जबकि रक्षा और विदेश मामलों संबंधी बातचीत होनी बाकी थी। पंद्रह अगस्त 1947 को जब भारत में आजादी का एलान हो रहा था, उसी समय बलुचिस्तान के शासक मीर अहमद यार खान ने वहां एक रैली की, जिसमें उन्होंने आजाद देश का एलान करते हुए पंद्रह अगस्त को आजादी दिवस के तौर पर घोषित किया। देश को चलाने के लिए दो सदन भी गठित कर दिए गए, जिसकी पहली बैठक में स्वतंत्र देश की पुष्टि की गई। यह सब हो जाने के बाद मोहम्मद अली जिन्ना ने खान से बात की और बलुचिस्तान का पूरी तरह पाकिस्तान में विलय करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन खान ने इसे नामंजूर कर दिया। यह मामला बलुचिस्तान के दोनों सदनों में भी गया और दोनों सदनों ने भी इसे खारिज कर दिया। इसके बाद 15 अप्रैल 1948 को पाकिस्तान की फौजों ने बलुचिस्तान पर चढ़ाई कर दी। कलत विधानसभा के सारे विधायकों को बंदी बना लिया गया और बलुचिस्तान पर विजय का एलान कर दिया गया। भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उस समय तक भारत में मौजूद लार्ड माउंटबेटेन ने इसका जरा भी विरोध नहीं किया। महात्मा गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले सीमांत गांधी अबदुल गफ्फार खान की पार्टी खुदाई-खिदमतगार नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोवींस के पाकिस्तान में विलय के बावजूद आजादी की मांग कर रहे थे, लेकिन महात्मा गांधी और नेहरू ने उनका साथ नहीं दिया। बलुचिस्तान पर विजय हासिल करने के बाद पाकिस्तान ने सेना के बूते नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोवींस पर भी कबजा कर लिया। तबसे पाकिस्तान की हमेशा यह कोशिश रही कि अफगानिस्तान कमजोर रहे और वह कभी नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोवींस पर निगाह न टिका सके। इसीलिए पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई अमेरिका के साथ सांठगांठ करके पिछले लंबे समय से अफगानिस्तान को कमजोर करने में लगी हुई है। अब नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोवींस और बलुचिस्तान दोनों में ही विद्रोह भड़क रहा है। हाल ही में बलुचिस्तान के सबसे बड़े नेता और पूर्व शासक के उतराधिकारी नवाब अकबर खान बुगती की पाकिस्तानी सेना ने धोखे से हत्या कर दी। लंबे समय के बाद अफगानिस्तान थोड़ा मजबूत हुआ है और यही वह समय है जब भारत उसकी मदद करके नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोवींस पर उसके दावे के समर्थन में खड़ा होकर पाकिस्तान को जम्मू कश्मीर में चलाई गई उसकी साजिश का जवाब दे सकता है। हामिद करजई यही चाहते हैं, लेकिन क्या भारत इसके लिए तैयार है।

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