मनमोहन को अब ज्यादा मुश्किल तो नहीं होनी चाहिए। देश को साझा बयान पर जितना गुस्सा शुक्रवार को था। उतना सोमवार को तो नहीं था। पर सोनिया गांधी को अभी भी संतुष्ट नहीं कर पाए मनमोहन सिंह। सोनिया संतुष्ट हो गई होती। तो अभिषेक मनु सिंघवी सोमवार को मनमोहन का बचाव करते। पर उनने नहीं किया। रूटीन ब्रीफिंग में पूछा गया। तो सवाल से आनाकानी करते रहे। ना साझा बयान का समर्थन। न मुखालफत। यों प्राइवेटली पूछो। तो हर कांग्रेसी सांसद का चेहरा तमतमाया हुआ दिखा। बातचीत को आतंकवाद से अलग करना किसी को नहीं जंचा। यह बात तो किसी को नहीं जंची- 'आतंकवाद पर कार्रवाई का समग्र बातचीत प्रक्रिया से संबंध नहीं होना चाहिए। दोनों को जोड़कर नहीं देखना चाहिए।' यों ऐसा नहीं।
जो मनमोहन ने बिना कुछ हासिल किए स्टेंड बदला हो। पाक में साझा बयान के 48 घंटे बाद साजिशकर्ताओं के खिलाफ चार्जशीट दाखिल। साझा बयान से पांच दिन पहले पाक ने अपने नागरिकों का हाथ कबूल किया। पर मनमोहन ने अपना स्टेंड क्यों बदला। यह कांग्रेसियों को भी समझ नहीं आ रहा। उनने आतंकवाद पर ही स्टेंड नहीं बदला। ब्लूचिस्तान पर भी भारत की नीति बदल डाली। जिसका जिक्र अपन शुक्रवार को ही कर चुके। पर शुक्र और सोम में 72 घंटों का फर्क। ऐसा नहीं, जो इन 72 घंटों में लालकृष्ण आडवाणी के तेवर ढीले पड़े हों। अलबत्ता सोमवार को मुलायम भी साथ दिखे। जब उनने लोकसभा में साझा बयान पर सवाल उठाया। प्रणव बाबू साझा बयान पर चर्चा को तैयार। पर चर्चा तो तब होगी। जब मनमोहन अपनी नेता सोनिया को सफाई दें। मनमोहन की सफाई तो जब होगी, सो होगी। साझा बयान का दबाव डालने वाले अमेरिका ने सफाई दे दी। हिलेरी क्लिंटन सोमवार को सोनिया से मिली। तो साझा बयान की तारीफ के पुल बांध आई। सोनिया का गुस्सा कुछ तो ठंडा हुआ होगा। बात हिलेरी क्लिंटन की चली। तो बता दें- उनने सोमवार को मनमोहन, आडवाणी, एसएम कृष्णा से भी मुलाकात की। आडवाणी ने तो पाक पर सावधान किया। पर एसएम कृष्णा से हुई मुलाकात ज्यादा अहम। हिलेरी कोई यों ही दिल्ली नहीं आई। आतंकवाद और पाक पर तो बातचीत होनी ही थी। एनपीटी-सीटीबीटी भी एजेंडे पर थे। हथियारों की बिक्री था गुप्त एजेंडा। बताने को भले सुरक्षा-शिक्षा-हेल्थ-विकास का एजेंडा हो। बताते जाएं- दो अमेरिकी एटमी ऊर्जा प्लांट लगेंगे। एक गुजरात में दूसरा आंध्र में। पर बात हो रही थी मनमोहन की मुश्किलों पर। जो अब उतनी गंभीर तो नहीं होनी चाहिए। आखिर पाक ने साझा बयान के 48 घंटे में पांच को चार्जशीट किया। उसके 48 घंटे बाद अजमल कसाब ने अपना अपराध कबूल कर लिया। बात कसाब की चली। तो बताते जाएं- ग्यारह जुलाई को पाक ने अपन को जो दस्तावेज भेजा। उसमें कसाब के साथ इमरान बाबर और अब्दुर रहमान चोटा को भी अपना नागरिक माना। बता दें- बाबर नरीमन हाऊस में मारा गया था। चोटा ओबराय होटल में। दस्तावेज में अठारह पाकिस्तानी साजिशकर्ता भी कबूल किए। शनिवार को पांच पर तो चार्जशीट हो गई। हमले का मास्टरमाइंड जकी उर रहमान लखवी। जरार शाह उर्फ अब्दुल वाजिद। हमद हमीन सादिक, अबू अल कामा उर्फ मजहर इकबाल, शाहिद जमील रियाज। बाकी बचे तेरह में से ग्यारह तो उन किश्तियों के चालक थे। जिन पर सवार होकर आतंकी मुंबई पहुंचे। मनमोहन इन सभी को सजा की गारंटी तो नहीं ले सकते। आखिर अपनी अदालत में भी गिलानी जैसे कई बरी हुए। अफजल गुरु को सजा ए मौत का फरमान हुआ। तो उस फाइल पर शीला दीक्षित का लाल रिबन। तो अपन को पाकिस्तानी अदालत पर भी शक करने का हक नहीं। पहला पत्थर वो मारे। जिसने कोई पाप न किया हो। पर पाक का चेहरा अब दुनिया के सामने बेनकाब। अब भले ही मनमोहन गच्चा खा गए हों। पर पाक को चौराहे पर खड़ा करने में मनमोहन की सफलता भी।
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