हफीज पर कहीं रुख नरम न कर दें पीएम

Publsihed: 16.Jul.2009, 09:23

अपन ने कल लिखा ही था- पाक नहीं बदला। जो अपन ने लश्कर -ए-तोएबा चीफ हाफिज सईद के मामले में देखा। इसका असर मंगलवार की रात मिस्र में भी दिखा। जब शिवशंकर मैनन की सलमान बशीर से गुफ्तगू हुई। मैनन अपने विदेश सचिव। बशीर पाकिस्तान के। अपन ने जो समझा। हाफिज सईद पर बात वैसे ही बिगड़ी। जैसे आगरा में मुशर्रफ-वाजपेयी में बिगड़ी थी। बशीर ने पाकिस्तानी जर्नलिस्ट बाकिर सज्जाद सईद से कहा- 'सफलता के लिए धीरज की जरूरत।' तो अपन को समझने में देर नहीं लगी। मैनन ने समग्र बातचीत शुरू करने से इनकार किया होगा। आज मनमोहन-गिलानी गुफ्तगू होगी। यों मनमोहन-गिलानी मीटिंग से पहले मैनन-बशीर फिर बैठ चुके होंगे। पर अपन को किसी साझा बयान की उम्मीद नहीं।

अपनी सरकार का मकसद- 'सिर्फ आतंकवाद पर बातचीत करना। पहले मुंबई के हमले को कानूनी नतीजे तक पहुंचाना। बाद में बाकी मुद्दों पर साझा बातचीत।' पाक का मकसद- 'आठ मुद्दों वाली समग्र बातचीत को दुबारा शुरू करना। मिस्र में साझा बयान या साझा प्रेस कांफ्रेंस करवाना।' अपने-अपने मकसदों पर मैनन-बशीर बात हुई। मैनन मंगलवार की घटना से उत्तेजित थे। जिस पर बशीर जवाब नहीं दे पाए। हाफिज सईद को बचाने की कोशिश पाक की नइ करतूत। पाक जब संबंध सुधारने की उम्मीद लेकर मिस्र पहुंचा। ठीक उस समय सुप्रीम कोर्ट में यह कांड हुआ। सो उसका असर मैनन-बशीर बातचीत पर पड़ा। बुधवार को उसका असर कम करने में जुटे रहे बशीर। बशीर के चेहरे की उड़ी हवाईयां अपन को टीवी इंटरव्यू में दिखी। पर अपने नए-नए विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा की समझ का जवाब नहीं। वह बोले- 'मुझे लगता है अब कटुता कुछ कम।' अपन को तो कोर्ट की घटना के बाद कटुता बढ़ने की उम्मीद। बात एस.एम. कृष्णा की चली। तो बताते जाएं- विदेश मंत्री के नाते इतने धारदार दिखाई नहीं दे रहे। जितने इस माहौल में होने चाहिए। अरुण जेतली ने भी यह बात महसूस की। वह बता रहे थे- 'यूपीए सरकार के तीन मंत्री अनाड़ियों जैसे। तीनों को घेरना कोई मुश्किल नहीं। तीनों एनडीए के निशाने पर होंगे।' इन तीनों में पहला नाम एस.एम. कृष्णा का ही। दूसरा सी.पी. जोशी। तीसरा- अझगरी। जो अब तक एक भी बार प्रश्नकाल में नहीं आए। प्रश्नकाल की बात चली तो बताते जाएं। बुधवार को जेतली ने पुराने खिलाडी क़मलनाथ को घेरा। मुद्दा था- नेशनल हाईवे का। पिछली यूपीए सरकार में प्रोजैक्ट का बंटाधार हुआ। पर कमलनाथ अपनी दलीलें देते रहे। इस पर जेतली ने कहा- 'क्या ये दो कारण नहीं? पहला- टेंडर के नियम बार-बार बदले गए। दूसरा- दो साल में पांच चेयरमैन बदले गए।' कमलनाथ की बोलती बंद हो गई। आखिर इसीलिए तो टी.आर. बालू मंत्री नहीं बन पाए। पर अपन बात कर रहे थे मिस्र में हो रही भारत-पाक गुफ्तगू पर। सलमान बशीर ने मुंबई हमले पर पाक में हुई कार्रवाई का ब्यौरा दिया। पर अपन को पाक की नीयत समझने में मुश्किल नहीं। पाक की नीयत साफ होती। तो शनिवार को तेरह वांछित भारतीयों की लिस्ट न सौंपते। नीयत साफ होती- तो हाफिज को बरी करवाने की कोशिश न होती।  इस कोशिश पर जब मिस्र पहुंचे युसूफ रजा गिलानी से पूछा गया। तो वह बोले- 'नो कमेंट।' बशीर बोले- 'अभी अदालत ने फैसला नहीं किया। इंतजार करना चाहिए।' अपन जानते हैं- अदालत से सोलह जुलाई तक का वक्त क्यों मांगा। ताकि तब तक मनमोहन-गिलानी बात हो जाए। पाक का इरादा मुंबई वारदात को ठंडे बस्ते में डालने का। यह अपन को साफ दिखा। जब बशीर ने कहा- 'एक मुकदमा भारत-पाक संबंधों का बंधक नहीं बनना चाहिए।' पर अपन ऐसी चिकनी चुपड़ी बातों में आए। तो वही ढाक के तीन पात होंगे। संयुक्त राष्ट्र के एक अफसर रिचर्ड बारेट ने कहा है- 'लश्कर-ए-तोएबा भारत पर एक और हमले की फिराक में।'

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