सावरकर की मूर्ति फ्रांस में लगाने पर भी परेशानी

Publsihed: 08.Jul.2009, 20:39

अपने नमो नारायण मीणा। पवन बंसल का दर्जा बढ़ा। तो इस बार वित्त राज्यमंत्री हो गए। सो झारखंड का बजट पेश करने का मौका मिला। पता है ना- झारखंड में इस समय राष्ट्रपति राज। यूपीए की झारखंडी सरकार के चार मंत्री भ्रष्टाचार में फंस चुके। पर सोनिया का इरादा अभी भी उन्हीं के साथ सरकार बनाने का। सो विधानसभा भंग नहीं हुई। पर बात बजट की। बजट पेश होने से दो दिन पहले लीक हो गया। अखबारों में छप गया। बुधवार को मीणा ने बजट पेश किया। तो यशवंत सिन्हा ने  कहा- 'बजट तो अखबारों में छप चुका। किसने लीक किया। सरकार जांच कराए।' पर सरकार किस-किस 'लीक' की जांच कराएगी। जांच करवाएगी तो खुद फंसेगी। लीक का दूसरा मामला सुनिए।

अपन ने कल वरुण गांधी की सुरक्षा का जिक्र किया ही था। मामला संसद में उठाने का असर हुआ। चिदम्बरम की घिग्गी बंधी। सुषमा को चिट्ठी लिखकर जवाब देना पड़ा। चिट्ठी में कहा- 'सरकार ने समीक्षा करके वाई स्पेशल सुरक्षा दी। वक्त-वक्त पर समीक्षा की जाएगी।' वाई स्पेशल में तीन अधिकारी तेरह कांस्टेबल। बात वाई या जेड की नहीं। बात सुरक्षा की। वरुण की सुरक्षा सोनिया गांधी के लिए भी जरूरी। सोनिया की सरकार वरुण की सुरक्षा न कर पाई। तो लोगों की जुबान पर आप ताला नहीं लगा पाएंगे। सो चिदम्बरम को डांट-डपट हुई या नहीं। अपन नहीं जानते। डांट डपट न सही, इशारा तो हुआ होगा। वरना चिदम्बरम और चिट्ठी लिखकर जवाब दें। अपन नहीं मान सकते। पर चिदम्बरम की चिट्ठी पहुंची बाद में। लीक पहले हो गई। यशंवत सिन्हा ने मीणा को टोका। तो सुषमा भड़की चिदंबरम पर। उनने कहा- 'मुझे बंद लिफाफा मिला। उस पर सीक्रेट लिखा था। मैंने सिर्फ लालकृष्ण आडवाणी को दिखाया। पर विजुअल मीडिया चिट्ठी दिखा रहा है।' गोपनीयता के नाटक का भंडा फूट गया। पर यह तो था 'सीक्रेट डाक्यूमेंट लीक' होने पर सरकार का घिरना। पर सरकार इतनी लापरवाह भी नहीं। 'लीक' वही डाक्यूमेंट होता है, जिसे मंत्री चाहे। जिसे मंत्री न चाहे, वह लीक नहीं होता। जैसे मार्सिलेस शहर के मेयर की चिट्ठी। मार्सिलेस समुद्र किनारे का फ्रांसिसी शहर। वीर सावरकर को जब ब्रिटिश सरकार लंदन से पकड़ कर भारत ला रही थी। तो वह जहाज से समुद्र में कूद गए थे। तैर कर इसी फ्रांसिसी शहर में पहुंचे थे सावरकर। फ्रेंच गार्डों ने सावरकर को ब्रिटिश हुकूमत के हवाले कर दिया। इस पर मैडम कामा हेग की इंटरनेशनल कोर्ट में गई। वह अलग बात जो ब्रिटिश दबाव में 24 फरवरी 1911 को मुकदमा खारिज हो गया। पर फ्रांस में बगावत हो गई। प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। अब 99 साल बाद मार्सिलेस के मेयर ने चिट्ठी लिखी है अपनी सरकार को। चाहते हैं- समुद्र किनारे सावरकर की मूर्ति लगे। पर न यह चिट्ठी लीक हुई। न सरकार ने जवाब भेजा। बुधवार को लोकसभा में यह चिट्ठी लीक की गोपीनाथ मुंडे ने। आप पूछेंगे बुधवार को ही क्यों। तो बता दें- बुधवार को आठ जुलाई थी। आठ जुलाई 1910 को ही फ्रांस सरकार ने सावरकर को अंग्रेजों के हवाले किया। सो गोपीनाथ मुंडे ने यही दिन खासकर चुना। आज से उस घटना का शताब्दी वर्ष शुरू। सो मूर्ति लगाने का यह खास साल। मुंडे ने सरकार से पूछा- 'सरकार जवाब क्यों नहीं दे रही।' सरकार की घिग्गी बंध गई। मामला विपक्ष के नेता आडवाणी को उठाना पड़ा। सरकार के तो होश फाख्ता हो गए। पर बीजेपी कहां मानने वाली थी। आखिर महाराष्ट्र के चुनाव करीब। तो तीसरा मोर्चा खोला सुषमा स्वराज ने। आफत आन पड़ी। तो नारायणसामी बोले- 'वह इस मुद्दे पर विदेशमंत्री से बात करेंगे।' पर सवाल सदन में जवाब का नहीं। न चिट्ठी दबाकर बैठने का। मुंबई के सेतु का नाम सावरकर था। तो बदल दिया। पोर्ट ब्लेयर के एयरपोर्ट पर सावरकर के नाम की पट्टी हटा दी। अब फ्रांस में मूर्ति पर भी अड़ंगा कांग्रेस सरकार का।

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