अब अटल की पेट्रोलियम नीति लगने लगी अच्छी

Publsihed: 02.Jul.2009, 20:36

तो वही हुआ। संसद में सरकार घिर गई। पेट्रोल-डीजल की कीमतें महंगी पड़ी। सिर्फ विपक्ष एकजुट नहीं हुआ। यूपीए में भी दरार पैदा हो गई। कांग्रेस के 206 सांसदों के साथ कोई दिखा। तो सिर्फ ममता बनर्जी के सुदीप बनर्जी। सुदीप भी कुछ यों बोले- 'अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत घटने पर यहां भी घटे।' सुदीप ने ऐसा क्यों कहा। वह अपन बता दें। बंगाल की नगर पालिकाओं के नतीजे बुधवार को ही आए। सोलह में से तेरह पर तृणमूल का कब्जा। सो उनकी निगाह अब मंत्री पद की कुर्सी पर। सेंट्रल हाल में मिले। तो नतीजों से गदगद थे। बोले- 'अब ममता होंगी बंगाल की मुख्यमंत्री।' अपन ने तपाक से कहा- 'तो आप होंगे केन्द्र में मंत्री।' उनने कहा- 'आई होप सो।'

(मुझे भी ऐसी उम्मीद।) सुदीप इस बार मंत्री नहीं बन पाए। बारहवीं लोकसभा के भी मेंबर थे। पर बाद में दासमुंशी के झांसे में आकर तृणमूल छोड़ गए। अब लौटकर आए। तो फिर एमपी। पर ममता ने छोड़ देने की सजा दी। सिनियोरिटी के बावजूद मंत्री नहीं बनवाया। सो उम्मीद पर बैठे सुदीप क्यों पंगा लेते। उनने मुरली देवड़ा पर कम, बुध्ददेव पर निशाना ज्यादा साधा। कहा- 'बंगाल में पेट्रोल-डीजल पर सबसे ज्यादा सेल्स टेक्स।' वासुदेव इस आरोप पर उछले-कूदे। पर मीरा कुमार ने फटकार कर बिठा दिया। तो बात कांग्रेस के अकेले पड़ने की। डीएमके के तेवर तो बेहद तीखे थे। मंत्री बनते-बनते फिसले टीआर बालू बोले- 'यह आम आदमी से विश्वासघात। यह कांग्रेस की सरकार नहीं। जो कांग्रेसी मंत्री ने एकतरफा फैसला किया।' लालू यादव ने भी याद दिलाया- 'मैं भी मंत्री था। इस तरह के मामले केबिनेट में आते थे। इस तरह फैसले नहीं होते थे।' मुलायम ने संसद से धोखा कहा। तो सुषमा स्वराज ने किसी को फायदा पहुंचाने की साजिश बताया। पेट्रोल पर फिक्र कम दिखी। पर डीजल की कीमत बढ़ने पर सभी भड़के हुए थे। देश पर सूखे की मार। फसलें तबाही की ओर। ऊपर से महंगाई का यह तोहफा। किसान कैसे चलाएगा टयूबवैल। जब चौतरफा हमला हो रहा था। तो सोनिया-प्रणव खुसर-फुसर करते दिखे। मुरली देवड़ा के चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थी। अपन को लगा- सरकार पेट्रोल नहीं, तो डीजल के दाम घटाएगी। पर मुरली देवड़ा बोले। तो वही ढाक के तीन पात। यह कांग्रेस की पुरानी शैली। अब कांग्रेसी सांसद सोनिया से अपील करेंगे। फिर सोनिया की हिदायत पर मुरली देवड़ा डीजल में राहत देंगे। दस जनपथ पर ढोल-नगाड़े बजेंगे। पर विपक्ष ने लोकसभा नहीं चलने दी। श्रीगणेश ही आधे दिन से हुआ। आधे दिन में भी बहुत कुछ हुआ। शिबू सोरेन की शपथ हो गई। इकनामिक सर्वे हो गया। दो-चार सवाल जवाब भी हुए। हंगामे में ही सही। पर बात इकनामिक सर्वे की। इकनामिक सर्वे से अपन लगा सकते हैं बजट का अनुमान। सो अपन मोटा-मोटी बता दें। एक हाथ लेने, दूसरे हाथ से देने वाला होगा बजट। यानी मेरी जेब से निकाल कर आपकी जेब में। आपकी जेब से निकाल कर मेरी जेब में। एक सिफारिश है- सेस-सरचार्ज खत्म हो। तो दूसरी तरफ खाद और पेट्रोल-डीजल पर सब्सिडी से तौबा किया जाए। यानी सेस-सरचार्ज-एफबीटी खत्म भी हुए। तो पेट्रोल-डीजल-खाद्य पर सब्सिडी घटेगी। एफडीआई का दरवाजा तो खुलेगा ही। पिछली बार कम्युनिस्ट रोक कर बैठे थे। अब सालाना पच्चीस हजार करोड़ का लक्ष्य। पर बात पेट्रोलियम पदार्थों के दाम तय करने की। वाजपेयी सरकार ने तय किया था- 'अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें घटें। तो अपने यहां अपने-आप घटें। बढ़ें, तो अपने आप बढ़ें।' पहली अप्रेल 2002 को लागू कर दिया था फार्मूला। पर कम्युनिस्टों के दबाव में मनमोहन ने नीति बदल डाली। सरकार तय करने लगी कीमतें। सब किए-कराए पर पानी फिर गया। अब प्रणव दा के इकनामिक सर्वे ने माना- वाजपेयी की नीति ही सही थी। सो सिफारिश है- 'सरकारी कंट्रोल खत्म किया जाए।' इसे कहते हैं- दिया जब रंज बुतों ने, तो खुदा याद आया।

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