मानसून और शतरंज की राजनीतिक गोटियां

Publsihed: 30.Jun.2009, 05:10

अपनी निगाह तो बेंगलुरु पर थी। बेंगलुरु की किस्मत जगे। तो अपन बरसात की उम्मीद लगाएं। पर बेंगलुरु की खबर खराब मिली। मानसून ने अबके बेंगलुरु के भी पसीने छुटा दिए। सोमवार को भोपाल-इंदौर में झमाझम हुई। शिवराज सिंह चौहान का रुद्राभिषेक कामयाब रहा। प्री मानसून ने ही बल्ले-बल्ले कर दी। सोमवार को तो जयपुर के आसपास भी छींटे पड़ गए। भोपाल-इंदौर-जयपुर की खबरों से अपन को दिल्ली की किस्मत खराब लगी। अस्थमा वालों के लिए दिल्ली के ये दिन बहुत खराब। ऊपर से शीला दीक्षित का बिजली मैनेजमेंट चरमरा गया।

रात को बिजली कब चली जाए। कोई पता नहीं। फिर आप घुमाते रहिए फुनवा। बिजली के दफ्तर में कोई होगा, तो रिसीवर उठाएगा। सो पिछले तीन दिनों से लोग शीला दीक्षित के खिलाफ सड़कों पर। इतवार को सोनिया ने घुड़की पिलाई। तो शीला दीक्षित हरकत में आई। पर बिजली में कोई सुधार नहीं दिखा। वैसे आप सोचो, सोनिया खबर न ले। तो इन हुकमरानों का क्या हाल। ठीक संकट की घड़ी में शीला तो विदेश चली गई थी। पर बात सोनिया की। तो सोमवार को उनने प्रणव दा को बुलाकर आम आदमी की घुट्टी पिलाई। अगले सोमवार को बजट पेश होगा। तो वक्त रहते होशियार कर दिया। ताकि कहीं औद्योगिक घरानों का मनपसंद बजट न बने। वैसे प्रणव दा बाकी वित्तमंत्रियों से अलग सोच के। वह समाजवादी और उदारवादी का घालमेल। उनने पिछले हफ्ते चार घंटे कांग्रेसियों की सुनी। मुख्यमंत्रियों को बुलाकर सलाह तो पहली बार हुई। पर बजट का दारोमदार मानसून की बरसात पर। मानसून को लेकर सरकार तो क्या। मौसम विज्ञानी भी असमंजस में। संयुक्त राष्ट्र के विज्ञानियों को तो सूखे की आशंका। ऐसा हुआ, तो सोनिया का फूड सिक्योरिटी एजेंडा हवा होगा। पच्चीस करोड़ लोगों की हालत खराब होगी। गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं इतने लोग। अपन बता दें- अपनी साठ फीसदी फसल बरसात पर निर्भर। मानसून ठीक नहीं हुआ। तो फसल का बंटाधार होगा। अपन जीडीपी का जितना चाहे ढिंढोरा पीटें। पर साठ फीसदी आबादी फसल पर निर्भर। यों दिल्ली में मानसून की अमूमन तारीख सत्ताईस जून। पर उनतीस को भी आधी दिल्ली की किस्मत खुली। जब पूर्वी दिल्ली का नंबर पहले लगा। पूर्वी दिल्ली की किस्मत देखी। तो दक्षिण दिल्ली वालों को ईर्ष्या हुई। आखिर दक्षिण दिल्ली वाले खुद को ऊंची जाति वाले मानते। और पूर्वी दिल्ली वालों को नीची जाति का। जो लोग दिल्ली और दिल्लीवालों से वाकिफ। वे बाखूबी जानते होंगे। दिल्ली में कहावत है- 'सारे दुखिया यमुनापार।' पर यमुनापार वालों की किस्मत पहले जगी। यों भी अब यमुनापार की ही बारी। एशियाड का केंद्र बिन्दु दक्षिण दिल्ली था। तो कामनवेल्थ का यमुनापार होगा। अक्षरधाम मंदिर ने भी पूर्वी दिल्ली के दिन बदल दिए। पर अपन बात कर रहे थे सोनिया की। जो आज महाराष्ट्र में चुनावी बीज बोएंगी। समुद्र पर बने पुल का उद्धाटन होगा। साथ में मालेगांव के अस्पताल का भी। यों तो मानसून का सोनिया के महाराष्ट्र दौरे से कोई मेल नहीं। पर जब कृषि मंत्री शरद पवार हों। तो राजनीतिक गोटियां बिना मतलब नहीं होती। मानसून फेल होगा। तो फसल चौपट होगी। फसल चौपट होगी। तो खाद्यान्न संकट होगा। खाद्यान्न संकट होगा। तो ठीकरा शरद पवार के सिर फूटेगा। शरद पवार संकटों से घिरे होंगे। तभी सोनिया महाराष्ट्र में अकेले लड़ने की चाल चलेंगी। फिलहाल तो आज सिर्फ राजनीति की चौसर बिछाएंगी।

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