तो सांप्रदायिक हिंदुत्व पर चोट करे बीजेपी

Publsihed: 23.Jun.2009, 08:20

वरुणवादी हिंदुत्व चलेगा न तोगड़ियावादी। बजरंगदली, रामसेना जैसा हिंदुत्व भी नहीं। वरुण को आडवाणी-राजनाथ का समर्थन मिला। तभी से भ्रम था। शाहनवाज और नकवी ने कुछ और नहीं पूछा। उनने पूछा था- 'बीजेपी में दीनदयाल उपाध्याय-आडवाणी का हिंदुत्व चलेगा। या पीलीभीत मार्का हिंदुत्व।' बीजेपी पीलीभीत मार्का हिंदुत्व कबूल करे। तो उसमें नकवियों-शाहनवाजों का क्या काम। सो बीजेपी ने अपने राजनीतिक प्रस्ताव में साफ किया- 'कट्टरपंथ कबूल नहीं। पर हिंदुत्व जीवन पध्दति। हिंदुत्व इस देश की आत्मा। हिंदुत्व ही भारतीय।'

पर जो हिंदुत्व नहीं समझते। उनके लिए अभी भी भ्रम। या अपन में से कुछ मीडिया वाले। जो हिंदुत्व को समझना नहीं चाहते। वे तो भ्रम फैलाएंगे ही। पहले अपन थोड़ा हिंदुत्व पर अपनी समझ बता दें। फिर बीजेपी- संघ परिवार की बात करेंगे। ग्यारह दिसंबर 1995 को हिंदुत्व पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। कोर्ट ने कहा था- 'हिंदुत्व धर्म नहीं, जीवन जीने की पध्दति है। यह भारत की संस्कृति है।' अपन को मोहम्मद करीम छागला को सुनने का मौका मिला था। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस छागला ने कहा था- 'मुझे हिंदू होने पर गर्व है। मेरे पूर्वज आर्यन थे। मैं उस संस्कृति और फिलास्फी को मानता हूं। जो मेरे पूर्वजों ने मुझे सौंपी।' इस्लामिक विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन खान ने 1994 में कहा- 'अल्पसंख्यक समस्या का हल खोजा गया। भले शब्द अलग-अलग हों। हिंदुत्व या भारतीयता। रणनीति यह थी- देश में सभी संस्कृतियों के मिलजुल कर रहने को एक नाम दिया जाए। सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता के लिए यह जरूरी समझा गया।' पर राजनीति में पहले हिंदुत्व सांप्रदायिक हुआ। फिर हिंदू सांप्रदायिक हुआ। फिर सारे हिंदू सांप्रदायिक हो गए। अपन को पता भी नहीं चला। जिस वंदेमातरम् को गाकर अपन ने आजादी हासिल की। वह शब्द कब सांप्रदायिक हो गया। अपने पास ऐसे बहुतेरे मिल जाएंगे। जो कहेंगे- 'वंदे मातरम् सांप्रदायिक है। इसीलिए मुसलमानों का विरोध।' उन्हें अपन याद दिला दें। बाबा फिरदौस ने कहा था- 'इस्लाम को मां हिंद का बेटा कहना चाहिए।' बाबा फिरदौस ने जिस धरती को इस्लाम की मां कहा। उसकी 'वंदना' सांप्रदायिकता हो गई। अब वंदे मातरम् गाने वाले सारे सांप्रदायिक। विरोध करने वाले सेक्युलर। गांधी ने कहा था- 'पश्चिमी देश भोगभूमि। भारत कर्मभूमि। पश्चिमी देशों ने भोग की बहुत वस्तुएं बनाई। उसी तरह हिंदुज्म ने धर्म, आध्यात्म और आत्मा के क्षेत्र में बेहतरीन खोज की।' देखिए, उनने भारत के लिए 'हिंदुज्म' शब्द का इस्तेमाल किया। पर गांधी के नामलेवाओं की नजर में हिंदुत्व का मतलब सांप्रदायिक। अपने राष्ट्रपति डा. राधाकृष्ण ने कहा- 'आओ अब हिंदुज्म की वास्तविकता को देखें। हिंदुज्म विचारधारा नहीं। जीवन पध्दति है। यह दुनिया को विचारों की पूरी आजादी देता है। ईश्वर को मानने वाले हों, या न मानने वाले। आस्था और अनास्थावादी सभी हिंदू हो सकते हैं। शर्त यह है कि हिंदू संस्कृति और जीवन को मानें। हिंदुज्म धार्मिक प्रतिबध्दता की बात नहीं करता। जीवन पध्दति और आध्यात्म की बात करता है।' तो क्या बीजेपी और संघ गांधी- राधाकृष्णन और सुप्रीम कोर्ट के हिंदुत्व को नहीं मानते। बीजेपी-संघ का हिंदुत्व कुछ और? यों आडवाणी ने इतवार को साफ किया- 'हम उसी हिंदुत्व को मानते हैं। जिसकी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट ने की।' वरुण गांधी वाला हिंदुत्व कतई नहीं। जिसमें तालिबानीकरण की बू आती हो। अगर उनने कहा था। तो किसके हाथ काटने की बात कही थी। अपन को एक वरुणवादी भाजपाई कह रहा था- 'वरुण ने तो उनके हाथ काटने की बात कही। जो देश पर बुरी नजर से देखेंगे।' अगर उनने ऐसा कहा। तो सेक्युलरवादी खेमे की चिल्ल पौं घटिया स्तर की राजनीति। वैसे दुश्मनों के हाथ-पांव काटना भी जंगल का कानून। बिरियानी और कंधार के जमाने में इतनी देशभक्ति। पर अपन ने वरुण का भाषण वैसा नहीं सुना। जैसा भाजपाई नेता का दावा। अपन ने वैसा ही सुना। जैसा नकवी और शाहनवाज ने सुना। बीजेपी की आस्था अगर सांस्कृतिक हिंदुत्व में। तो सांप्रदायिक हिंदुत्व पर खुद चोट करे बीजेपी। हिंदुत्व पर रहे कायम। पर बीजेपी में बैठे वरुणवादियों को समझाए हिंदुत्व।

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