पाक की ईमानदारी ही तो शक के घेरे में

Publsihed: 18.Jun.2009, 12:34

अपन पाक के लिए यह तो नहीं कहते- 'लातों के भूत बातों से नहीं मानते।' पाक के पास एटमी हथियार न होता। तो वाजपेयी संसद पर हमले के बाद यह फार्मूला अपनाते। फौजें तो उनने बार्डर पर भेज ही दी थी। भले देर लगी। पर वाजपेयी ने मुशर्रफ के घुटने टिकाकर ही दम लिया। जब उनने छह जनवरी 2004 को मुशर्रफ से कहलवाया- 'सरजमीं पाक से भारत के खिलाफ आतंकवाद नहीं होने देंगे।' अपन को वह 15 जुलाई 2001 का वाकया भी याद। जब आगरा में संपादकों से ब्रेक फास्ट में मुशर्रफ ने कहा था- 'कश्मीर में आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही है।' इसी बात पर टूट गई थी बात। मुशर्रफ ख्वाजा मुइन्नुद्दीन चिश्ती की दरगाह में नहीं जा सके।

आगरा से सीधे इस्लामाबाद लौट गए थे। दोनों के पास एटमी हथियार अब जंग से फैसला नहीं होने देंगे। अपन चाहे कितनी बार सोच लें- अब सुधर गया होगा पाक। कितनी बार सोच लें- दिया जब रंज तालिबान ने, तो खुदा याद आया होगा। पर नहीं, पाकिस्तान की नीति में बदलाव नहीं दिखता। अपन को तो हैरानी हुई। जब जरदारी ने कहा- 'हम आतंकवाद के खिलाफ जंग के लिए ईमानदार हैं।' जरदारी ने कहा, और मनमोहन सिंह ने मान लिया। पर जरदारी की यह बात अपन को भरोसेमंद नहीं लगती। जरदारी में ईमानदारी होती। तो हाफिज सईद की रिहाई न होती। अपन नहीं जानते- इस मामले में मनमोहन ने जरदारी से क्या कहा। जरदारी ने मनमोहन को क्या जवाब दिया। यह सवाल खबरचियों ने लौटते हुए पूछा। तो मनमोहन सिंह जवाब टाल गए। उनने कहा- 'मैंने उन वास्तविक चीजों का इजहार कर दिया। जो भारत देखना चाहता है।' यह बात अपन ने कल कही ही थी। भारत तो हाफिज सईद के रिहा होने पर खफा। पर जरदारी की सफाई सुनना चाहते हैं अपन। मनमोहन को बताना चाहिए- जरदारी ने क्या सफाई दी। पर अहम सवाल दूसरा। बिना किसी साफ भरोसे के मनमोहन ने बात शुरू कर दी। सचिव स्तर की बातचीत भी हो गई। सचिव स्तर की अगली बातचीत तय भी हो गई। जुलाई के दूसरे हफ्ते में जरदारी-मनमोहन की मिश्र में दूसरी मुलाकात भी तय। सचिव स्तरीय बातचीत मिश्र के गुटनिरपेक्ष सम्मेलन से पहले होगी। यानी गतिरोध खत्म। मनमोहन भले यह कहें- 'सचिव स्तर की बातचीत का नतीजा निकलने दीजिए।' पर जैसा अपन ने कल कहा- 'अमेरिकी दबाव में गतिरोध टूट चुका।' अपन नहीं जानते- ऐसे ही बात शुरू करनी थी। तो 26 नवंबर 2008 से रोकी क्यों हुई थी। तब मनमोहन ने साफ कहा था- 'पाकिस्तान 26 नवंबर के दोषियों पर कार्रवाई का सबूत दे।' अपन ने हाफिज सईद के खिलाफ अजमल कसाब का बयान भेजा। कसाब ने अपने बयान में हाफिज का कई बार जिक्र किया। पर जरदारी सरकार ने यह बयान अदालत में रखा ही नहीं। फिर जरदारी ने मनमोहन से कहा- 'मैं ईमानदार हूं। कुछ कठिनाईयां हैं। मुझे कुछ वक्त दीजिए।' मनमोहन सिंह ने वक्त दे दिया। कठिनाईयां अपन भी समझते हैं। अपन जानते हैं- आईएसआई पर जरदारी का जोर नहीं। न वहां के प्रधानमंत्री का। अपन को पाकिस्तान के दरकने का डर। यह डर जरदारी को भी सता रहा। पर मतलब की बात वही। जो अपन ने कल कही थी- 'पाकिस्तान तालिबान के खिलाफ जंग में तो थोड़ा गंभीर। पर भारत में आतंकवाद फैलाने वालों पर जरा गंभीर नहीं।' मनमोहन ने बताया- 'मैंने इसी बात का ध्यान दिलाया है जरदारी को।' जरदारी ने इस पर क्या कहा। जरा वह भी बता देते मनमोहन। अपना तो मानना- अमेरिका को भी इसकी फिक्र नहीं। उसका भी मतलब सिर्फ तालिबान के खात्मे से। भारत विरोधी आतंकवाद पर अमेरिका गंभीर नहीं। पर चलो, अपन इंतजार कर लेते हैं सचिव स्तरीय बात का। जिसमें पाक बताएगा- उसने आतंकियों के खिलाफ क्या कदम उठाए। क्या कदम उठाने का इरादा।

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