कांग्रेस ने जीत से सीखा, बीजेपी ने हार से भी नहीं

Publsihed: 16.Jun.2009, 05:17

अपन ने तेरह जून को लिखा था- 'बीजेपी की महाभारत अभी तो शुरू ही हुई है।' अपन ने गलत तो नहीं लिखा था। उसी दिन यशवंत सिन्हा का बम फट गया। पर यशवंत के बाद कोई बम फटता। पहले ही राजनाथ ने धमकी दे दी- 'अब कोई फन्नेखां बनेगा। तो सख्त कार्रवाई होगी।' सो मुरली मनोहर जोशी का बम धरा रह गया। प्यारे लाल खंडेलवाल और विनय कटियार का भी। सुषमा स्वराज सोमवार को भोपाल में जो बोली। अनुशासनहीनता के दायरे में नहीं आता। तूफान तो बीजेपी में है ही। उसे वालकेनो कहें या रीटा या आईला। उससे फर्क नहीं पड़ता। पर उनने कहा- 'आडवाणी पांच साल विपक्ष के नेता रहेंगे।' तो अपन कतई सहमत नहीं। या तो वह चंदन मित्रा वाले मामले से डर कर बोली।

या फिर अपने नेता बनने की खबरों पर ब्रेक लगाने के लिए। चंदन मित्रा वाली बात बता दें। उनने पहले ही दिन कह दिया- 'आडवाणी दिसंबर तक हट जाएंगे।' तो उन्हें माफी मांगनी पड़ी। बीजेपी में जितना गुस्सा सुधींद्र के खिलाफ। उतना चंदन मित्रा के खिलाफ भी। सुधींद्र-चंदन ही थे, आडवाणी के रणनीतिकार। जिनके आगे जेटली की भी नहीं चली। बात जेटली की। तो चारों तरफ से घिरे जेटली मैच देखने ब्रिटेन गए। लंदन में क्रिकेट टीम क्या हारी। जेटली विरोधियों को नया शिगूफा मिल गया- 'जहां-जहां पांव पड़े संतन के, वहां वहां बंटाधार।' बुरे दिन आते हैं, तो कोई सगा नहीं रहता। जेटली और धोनी का वही हाल। जब तक जीता रहे थे। तब तक सूरमे थे। जब रणनीति फेल हुई। या फेल कर दी गई। तो बंटाधार करने वाले संतन हो गए। पर जेटली अपनी मानें। तो दोनों पदों से इस्तीफा दे दें। बीजेपी को जरूरत होगी। तो दौड़ती चली आएगी। बात जेटली के पीछे हाथ धोकर पड़े जसवंत की। तो वह सोमवार को आडवाणी से मिले। जसवंत का हमला जेटली के बहाने आडवाणी पर ही था। जसवंत पंद्रह साल से बीजेपी मीटिंगों में मंच पर बैठते थे। पार्लियामेंट्री मीटिंग में नीचे बैठना पड़ा। तब से परेशान। यों जसवंत की निगाह पीएसी चेयरमैन पद पर। पर उनने जो कुछ किया। उससे वह भी हाथ लगती नहीं दिखती। पर बात वालकेनो, रीटा और आईला की। तो अब सबसे बड़ा संकट उत्तराखंड में। अपन बताते जाएं- बीजेपी ने डेमोक्रेटिक ढंग से विवाद न सुलझाया। तो सरकार गई समझो। कांग्रेस की तैयारी एसेंबली भंग की। बात कांग्रेस की चली। तो बता दें- बीजेपी ने भले हार से सबक नहीं सीखा। कांग्रेस ने अपनी जीत से सबक सीखा। सोमवार को केबिनेट ने बजट सेशन की तारीखें तय की। तय किया- ममता की बारी तीन जुलाई को, प्रणव दा की छह जुलाई को। तो प्रणव दा सलाह मशविरा करने कांग्रेस दफ्तर पहुंचे। जहां प्रणव दा को चुनाव घोषणा पत्र याद कराया गया। तीन घंटे बंद कमरे में मीटिंग हुई। महासचिव, सचिव, मोर्चो के अध्यक्ष, वर्किंग कमेटी के मेंबर और कुछ मंत्री भी थे। दिग्गी राजा बोले- 'ग्रामीण रोजगार और किसानों के कर्जमाफी ने जिताया है। सो उसे ही आगे बढ़ाया जाए।' पीडीएस के जरिए गरीब लुभाए जाएं। नाबार्ड के जरिए सस्ते कर्ज से किसान लुभाए जाएं। अंबिका ने कहा- 'हेल्थ और एजुकेशन का बजट दुगुना हो।' पिछली गलतियों से सीखने की बात भी हुई। यानी जोर इनफ्रांस्टक्चर पर हो। पर सबसे बड़ी बात राजनीति की हुई। राजनीति केन्द्रीय योजनाओं की। सबसे बड़ा फिक्र तो यही रहा- 'केन्द्रीय योजनाओं की पहचान तय की जाए। ताकि कोई मोदी, धूमल, बादल, येदुरप्पा, खंडूरी, शिवराज फायदा न उठा सके।' यानी केन्द्रीय योजनाओं का नाम गांधी,नेहरू, इंदिरा, राजीव, सोनिया, राहुल रखा जाए। और कुछ हो न हो। बजट में इन नामों को खूब देखेंगे आप। मीटिंग से निकलकर प्रणव दा बोले- 'पार्टी नेताओं की बात सुनी। इसकी झलक आप बजट में देखेंगे।' हां, बात अपन जैसे मिडिल क्लास की भी। इनकम टेक्स में राहत का सवाल भी उठा। बुजुर्गों-महिलाओं के लिए खासकर। वोट बैंक की ऐसी फिक्र जसवंत-यशवंत करते। तो बीजेपी का ऐसा बंटाधार न होता। जैसा दो चुनावों में हुआ।

आपकी प्रतिक्रिया