लालू सोचते होंगे- अब आई सीपीएम की भैंस पानी में

Publsihed: 12.Jun.2009, 05:16

अब सीपीएम भी बेदाग नहीं। सीपीएम के केरल सेक्रेटरी के खिलाफ भ्रष्टाचार की चार्जशीट। प्रकाश करात ने पिनराई विजयन को बचाने की लाख कोशिश की। सीबीआई को मुकदमा चलाने की इजाजत न मिले। अपने ही सीएम वीएस अच्युतानंदन पर दबाव डाला। एडवोकेट जनरल से विजयन के हक में रिपोर्ट लिखवाई। केबिनेट से विजयन के हक में फैसला करवाया। पर गवर्नर आरएस गवई ने केबिनेट की सिफारिश ठुकरा दी। सीबीआई को मुकदमा चलाने की इजाजत दे दी। गवर्नर ने वही किया। जो उन्हें करना चाहिए था। यह पहली बार नहीं हुआ। भाई महावीर जब एमपी के गवर्नर थे। तो उनने भी सीएम दिग्विजय की सिफारिश के खिलाफ मंत्रियों पर मुकदमे की इजाजत दी थी। कांग्रेस ने सिर्फ एक ही गवर्नर ऐसा बनाया- जो कांग्रेसी नहीं था।

आरपीआई बैकग्राउंड के हैं आरएस गवई। कांग्रेस से गठजोड़ करके भी लोकसभा चुनाव हार गए थे गवई। पर बात सीपीएम के घोटाले की। घोटाले की शुरूआत कांग्रेस राज में हुई। सीपीएम राज में नहीं। अपन जरा घोटाले की हिस्ट्री बता दें। मार्च 1994 में करुणाकरन सरकार ने तीन हाईडल प्रोजेक्टों को रेनोवेट की रणनीति बनाई। कनेडियन कंपनी लावलीन से एमओयू हुआ। पर फरवरी 1996 में करुणाकरन की जगह एंटनी आ गए। बिजली मंत्री थे कार्तिकेन। उनने लावलीन कंपनी को ही सलाहकार बना दिया। पर उसी साल मई में सरकार बदल गई। सीपीएम के ई के नायनार सीएम हो गए। पिनराई विजयन बिजली मंत्री हुए। तो एक कमेटी बनाई गई। पोलित ब्यूरो के मेंबर बालानंदन कमेटी के प्रमुख हुए। कमेटी की रिपोर्ट अभी आई नहीं थी। पिनराई विजयन 23 अक्टूबर 1996 को कनाडा हो आए। दो फरवरी 1997 को कमेटी ने रिपोर्ट दी- 'बड़े रेनोवेट की जरूरत नहीं। सो पीएसयू भारत इलेक्ट्रीकल से ही काम करवाया जाए।' पर रपट के आठवें दिन ही सीपीएम सरकार ने लावलीन से एमओयू साइन कर लिया। ग्यारह जून को सीएम नायनार और बिजली मंत्री पिनराई कनाडा गए। घोटाले की शुरूआत इसी दौरे में हुई। कनेडियन निर्यात विकास निगम बीच में आया। निगम के साथ केरल सरकार ने समझौता किया- 'निगम मालाबार केंसर सेंटर को 96 करोड़ दान करेगा।' पर दान हुआ सिर्फ कुछ लाख का। बाकी पैसा कहां गया? यही है घोटाले का असली पेंच। घोटाले का पर्दाफाश तब शुरू हुआ। जब एके एंटनी 2001 में फिर सीएम बन गए। उनने विजलेंस जांच के आदेश दे दिए। विजलेंस ने पांच साल बर्बाद किए। रपट से पहले फिर लेफ्ट सरकार आ गई। पर लेफ्ट सरकार के दौरान ही नौ जुलाई 2005 को कैग ने रिपोर्ट दी- 'तीनों परियोजनाओं के रेनोवेट पर 374 करोड़ रुपए बर्बाद किए गए। एक भी यूनिट ज्यादा बिजली उत्पादन नहीं हुई।' इस पर मार्क्सी मुख्यमंत्री अच्युतानंदन ने कहा- 'सौदे पर सीपीएम या एलडीएफ में विचार नहीं हुआ था।' यानी उनने पिनराई विजयन को कटघरे में खड़ा किया। पर सरकार पर सीएम का नहीं पोलित ब्यूरो का जोर चला। केन्द्र में भी सरकार लेफ्ट के समर्थन से थी। सो 28 फरवरी 2006 को विजलेंस रिपोर्ट आई- 'विजयन को आरोपी बनाने के सबूत नहीं।' पर दबाव बना तो पहली मार्च को मामला सीबीआई को सौंपने का फैसला हुआ। लेफ्ट में दरार साफ नजर आई। विजयन और अच्युतानंदन आमने-सामने खड़े हुए। खूब बयानबाजी हुई। दोनों को तीन महीने के लिए पोलित ब्यूरो से निकाला गया। अच्युतानंदन की गलती लेफ्ट ने दिल्ली से सुधरवाई। हंसराज भारद्वाज लाख कहें- सीबीआई का कहीं दुरुपयोग नहीं हुआ। पर सीबीआई ने 16 नवंबर 2006 को हाईकोर्ट में कहा- 'हम केस हाथ में नहीं ले रहे।' एडवोकेट जनरल ने भी कोर्ट में कहा- 'सीबीआई जांच नहीं चाहिए।' केबिनेट का फैसला कैसे बदला गया। यह अपन ने बताया। पर हाईकोर्ट ने सीबीआई को जांच का आदेश दिया। तो सीबीआई लाइन पर आई। सीबीआई ने गवर्नर से पिनराई पर मुकदमे की इजाजत मांगी। पर aपोलित ब्यूरो के दबाव में केबिनेट ने मांग ठुकरा दी। गवर्नर ने केबिनेट की सलाह नहीं मानी। सात जून को गवर्नर ने मुकदमे की इजाजत दे दी। गुरुवार को चार्जशीट भी दाखिल हो गई। अब सीपीएम मुश्किल में। अपन याद दिला दें- लालू पर जब चारा घोटाले की एफआईआर हुई थी। तो सीपीएम पहली पार्टी थी- जिसने लालू से इस्तीफा मांगा। पर अब जब सीपीएम का सेक्रेटरी कटघरे में। तो सीपीएम ने अपनी नैतिकता ताक पर रख दी।

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