दो राष्ट्रपति, दो भाषण वादा देश-दुनिया बदलने का

Publsihed: 04.Jun.2009, 20:36

अपनी राष्ट्रपति का इस साल दूसरा अभिभाषण हुआ। हर साल के पहले सेशन में तो अभिभाषण होता ही है। नई लोकसभा चुनकर आए, तब भी अभिभाषण। सो 2004 के बाद 2009 में ऐसा हुआ। अपन जहां अपनी राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील के अभिभाषण की बात करें। वहीं गुरुवार को एक और राष्ट्रपति का भाषण हुआ। जिसकी चर्चा दुनियाभर में। यह हैं- अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक हुसैन ओबामा। अपन पहले भी इसी कालम में लिख चुके- बाराक ओबामा के पिता मुस्लिम थे। अब जब पूरी दुनिया के मुसलमान अमेरिका के खिलाफ। तो अपन को बाराक ओबामा से ही कुछ उम्मीद थी। सो ओबामा ने गुरुवार को मिश्र की राजधानी काहिरा जाकर शुरूआत की।

काहिरा की यूनिवर्सिटी में भाषण देते उनने कहा- 'आओ नई शुरूआत करें। न अमेरिका इस्लाम के खिलाफ रहे। न मुसलमान अमेरिका को अपना दुश्मन समझें।' यों बाराक ओबामा भी इस नंगी सच्चाई से वाकिफ। अविश्वास की यह खाई इतनी चौड़ी। जो एक भाषण से पटनी नहीं। सो उनने कहा- 'मैं जानता हूं, एक भाषण से अविश्वास खत्म नहीं होगा। पर दोनों तरफ से कोशिश होनी चाहिए।' जार्ज बुश ने मुसलमानों को अमेरिका का दुश्मन बनाने में कसर नहीं छोड़ी। पहले चार साल में ही उनने अफगानिस्तान-इराक पर हमले किए। अब बुश की गलतियां सुधारने की कोशिश कर रहे हैं ओबामा। मुस्लिम देशों के दौरे की शुरूआत ओबामा ने कुछ इस ढंग से की। भाषण देने खड़े हुए ओबामा ने कहा- 'असलायमु अलायकुम।' बाराक ओबामा ने तालियां तो खूब बटोरी। पर क्या अमेरिका मुस्लिम विरोध छोड़ देगा। क्या मुसलमान आसानी से अमेरिकी राष्ट्रपति पर भरोसा करेंगे। ओबामा ने वादा तो किया है- 'इस्लाम के खिलाफ नकारात्मक सोच खत्म करेंगे।' उनने मुसलमानों से अपील की। वे भी अमेरिका के बारे में अपनी सोच बदलें। पर सोच बदलती है करनी से, कथनी से नहीं। सच ओबामा की जुबान पर आ ही गया। जब उनने कहा- 'अमेरिका स्वार्थी देश नहीं।' अपन तो इस्लामिक देश नहीं। पर अब अपनी भी धारणा अमेरिका के स्वार्थी देश होने की। हाफिज मोहम्मद सईद की बात ही लो। यह बात अपने गले नहीं उतरती- पाक ने बिना अमेरिका की सहमति के हाफिज को रिहा किया होगा। कहने को भले ही- लाहौर हाईकोर्ट का फैसला हुआ। पर पाक सरकार अदालत में सबूत रखती। तो हाफिज की रिहाई इस तरह आसानी से न होती। अपन जमात-उद-दावा के आतंकी वारदात के लिंक के सबूत दे चुके। मुंबई वारदात के बाद ही संयुक्त राष्ट्र ने जमात-उद-दावा पर रोक लगाई। फिर जमात-उद-दावा का मुखिया रिहा कैसे हुआ। अपनी सरकार में कूटनीतिज्ञों का भी मानना- 'अमेरिका को भारत में आतंकवाद की फिक्र नहीं। वह स्वार्थी देश। हमारी लड़ाई हमें खुद लड़नी होगी।' अमेरिका का दो मुंहपन कदम-कदम पर दिखने लगा। आतंकवाद की फैक्ट्री पाक को हर साल डेढ़ बिलियन डालर की मदद। भारत के बारे में अपने नागरिकों को हिदायत- 'भारत मत जाइयो। जाइयो तो होशियार होकर रहियो। छह तरह के आतंकवादी मौजूद। कभी भी हो सकता है आतंकी हमला।' हां, अपन मानते हैं- अपने यहां आए दिन आतंकी वारदातें। पर वारदातों की जड़ में है पाकिस्तान। जो बैठा है अमेरिका की गोद में। अपने पी चिदम्बरम अमेरिकी वार्निंग पर लाल-पीले हुए। पर आतंरिक सुरक्षा के सच से चिदम्बरम भी वाकिफ। आतंरिक सुरक्षा के बंटाधार ने ही तो चिदम्बरम को होम मिनिस्टर बनवाया। यूपीए के पहले पांच साल में आतंरिक सुरक्षा का तो बंटाधार हुआ। बंटाधार तो इनफ्रास्टक्चर का भी हुआ। निर्यात का भी हुआ। छोटे और मझौले उद्योग धंधों का भी हुआ। हाऊसिंग सेक्टर का तो बेड़ा गर्क हो गया। अब गुरुवार को जब प्रतिभा पाटील ने सरकार का एजेंडा रखा। तो यही सब बातें एजेंडे में शामिल। यानी पहले पांच साल जिनकी अनदेखी हुई। अब उन्हीं पर जोर देगी कांग्रेस। अपन राष्ट्रपति का अभिभाषण पढ़ें। तो बीजेपी के वे सब मुद्दे शामिल। जिनसे चुनाव में कांग्रेस को दो-चार होना पड़ा। आंतरिक सुरक्षा- नागरिक पहचान पत्र। विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाने का वादा। एक वादा मनमोहन की ओर से प्रतिभा पाटील का। दूसरा वादा अमेरिकी की ओर से बाराक ओबामा का।

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