सात रेसकोर्स में चल रहा लिखने-मिटाने का खेल

Publsihed: 27.May.2009, 08:06

तो बजट चार जुलाई को पेश करने का इरादा। यों तो चार जुलाई को शनिवार। पर मनमोहन-प्रणव ठान लें। तो कौन रोकेगा। ठान लिया, तो कोई पहली बार नहीं बैठेगी संसद। प्रणव दा ने खुलासा किया- 'वोट ऑन अकाउंट की दूसरी किस्त पेश करने का इरादा नहीं।' आपको याद होगा। चिदंबरम ने जुलाई तक का वोट ऑन अकाउंट पेश किया था। तो अब बजट पर अटकलें शुरू होंगी। इस बार कांग्रेस ने बीजेपी को शहरों में भी पीटा। सो शहरियों को भी मिलेगा तोहफा। नौकरीपेशा को भी, छोटे धंधे वालों को भी। चुनाव फंड का बंदोबस्त करने वालों को एफबीटी से राहत। नौकरीपेशा को इनकम टेक्स से। चिदंबरम पूंजीवादियों के हमदर्द दिखते थे। तो प्रणव बजट को समाजवादी पुट देंगे। मंदी से निपटना कोई खाला जी का घर नहीं। सरकार का खजाना पहले से खाली। एनडीए की सरकार आती। तो अपन इन दिनों खाली खजाने की खबरें पढ़ते। पर अब खजाना प्रणव दा के हवाले। तो थोड़े में गुजारा प्रणव दा का मंत्र होगा।

रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़े लोगों को राहत मिले। तो अपन को हैरानी नहीं होगी। सरकार का फौरी बोझ तो घटेगा। बात चली समाजवादी पुट की। तो उसकी शुरूआत बंगाल की 'दीदी' ने कर दी। जब उनने बीस रुपए का पास जारी करने का ऐलान किया। अब बंगाल के 'दादा' की बारी। यह भी पहली बार होगा। जब आम और रेल बजट बंगालियों के हाथ होंगे। बात ममता दीदी की। उनने अंग्रेजी राज की याद ताजा कर दी। जब देश की हुकूमत कोलकाता से चला करती थी। ममता ने रेल मंत्रालय दिल्ली में नहीं संभाला। कम्युनिस्टों की मांद में घुसकर कोलकाता में संभाला। ताकि कम्युनिस्टों को 'सरकार' की धमक सुनाई दे। ममता ने वादा किया था- 'मंगल को शपथ लेंगी।' यों इरादा तो केबिनेट विस्तार के बाद शपथ का था। ताकि तृणमूल के सारे नए मंत्री मौजूद हों। राइटर्स बिल्डिंग की बराबरी पर ममता की सरकार दिखे। पर मंगलवार विस्तार हुआ ही नहीं। नहीं होगा, यह अपन ने कल लिख ही दिया था। खैर अब तो राष्ट्रपति भवन से फरमान आ गया। गुरुवार को सुबह साढ़े ग्यारह बजे। मनमोहन-सोनिया के पास अब तो जमा-घटाओ का काफी वक्त। अब फच्चर करुणानिधि या ममता का नहीं। फच्चर खुद कांग्रेस का। सोमवार को दिनभर दस जनपथ में मगज खपाई हुई। मंगलवार की मगज खपाई जगह बदल-बदलकर हुई। आधी दस जनपथ पर। तो आधी सात रेसकोर्स में हुई। मनमोहन-सोनिया के साथ प्रणव दा, एंटनी, अहमद बैठे। अपन ने मनमोहन का नाम पहले जानबूझकर लिखा। बता दें- मनमोहन की पसंद को इस बार खास अहमियत। पर इस बार कांग्रेस का कुनबा संभालना मुश्किल। सोनिया ने आनंद शर्मा को केबिनेट मंत्री बनवा तो दिया। पर अब वीरभद्र सिंह का क्या करें। चार एमपी वाली स्टेट से दो केबिनेट तो नहीं हो सकते। राहुल ने सीपी जोशी को केबिनेट मंत्री बनवा तो दिया। पर अब गिरिजा व्यास का क्या करें। दो-दो ब्राह्मण तो नहीं हो सकते। राहुल के पैरवी सचिन पायलट के लिए। महिला लेनी हो। तो युवा ज्योतिमिर्धा क्या बुरी। ठाकुर लेनी हो। तो चंद्रेश कुमारी ठीक। राजस्थान-हिमाचल दोनों का संकट कटेगा। केरल से एंटनी-वायलार केबिनेट मंत्री बन गए। दोनों राज्यसभा से। मुस्लिम लीग के ई अहमद को बनाना जरूरी। तो अब लोकसभा में चुनकर आए पंद्रह कांग्रेसियों का क्या करें। महाराष्ट्र से शिंदे, देवड़ा, पवार तीन केबिनेट मंत्री हो चुके। अब विलासराव-वासनिक में से किसको लें। राहुल चाहते हैं- वासनिक। मनमोहन चाहते हैं- विलासराव। ऐसा ही संकट यूपी का। मोहसिना किदवई को लें। या सलमान खुर्शीद को। श्रीप्रकाश जायसवाल को हटाएं या रखें। जतिन प्रसाद को लेना जरूरी। वह राहुल की पसंद। पंजाब से अंबिका सोनी केबिनेट मंत्री हो गई। अब प्रणीत कौर का क्या करें। महेंद्र सिंह गिल को भी कैसे लें। पीएम की पसंद अश्विनी कुमार का क्या करें। यों दीपा दासमुंशी का नंबर लगना पक्का। सबसे बड़ा संकट तो तैंतीस सांसद लाने वाले आंध्र का। किसे छोड़ें, किसे रखें। इसी संकट में उलझे कभी लिख, तो कभी मिटा रहे हैं सोनिया-मनमोहन।

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