सोनिया की रणनीति से हुई सिर्फ कांग्रेसियों की शपथ

Publsihed: 23.May.2009, 08:20

फारुख अब्दुल्ला ने खुलासा किया। तो अपने कान खड़े हुए। दक्षिण अफ्रीका जाने से पहले बोले- 'मंत्री तय करना मनमोहन-सोनिया का काम। पीएम ने मुझे फोन किया। उनने कहा- डीएमके का मामला फंस गया है। उसे पहले निपटा लें।' पर फारुख को फोन भी तब गया। जब उमर ने गुरुवार की रात खुलासा किया- 'फारुख अब्दुल्ला शुक्रवार को मैच देखने दक्षिण अफ्रीका जाएंगे। शपथ ग्रहण में नहीं होंगे। कांग्रेस घमंडी हो गई है। फोन तक नहीं किया।' अपन ने टीवी पर अभिषेक मनु को मिमियाते देखा। बोले- 'फारुख को चौबीस घंटे तो इंतजार करना चाहिए।' टीवी पर हुए इस ब्रेकिंग खुलासे के बाद फारुख को फोन गया। फब्ती कसते हुए फारुख बोले- 'मैं नहीं होऊंगा तो शपथ ग्रहण नहीं रुकेगा।' चीफ मिनिस्टर बेटे ने कहा- 'शपथ ग्रहण का न्योता नहीं आया। पर आईपीएल का न्योता था। सो वह दक्षिण अफ्रीका चले गए।' पर अब खबर है- 'मंगल-बुध को मंत्रिमंडल विस्तार होगा। तो फारुख के साथ बालू, राजा, अजगरी, कन्नीमुरी की शपथ भी होगी।' एक जमाना था- जब शपथ लेने वाले को 24 घंटे पहले फोन जाता।

ताकि वक्त पर दिल्ली पहुंच सके। फिर रात दस बजे के बाद जाने लगा। पर लिस्ट लीक नहीं होती थी। पूरी लिस्ट तो कभी नहीं। वाजपेयी के जमाने तक गोपनीयता बनी रही। अपन राष्ट्रपति भवन से पूछा करते थे- 'कितनी कुर्सियों का फरमान हुआ।' ताकि तादाद का अंदाज तो लग सके। जब आखिरी वक्त पर दबाव की राजनीति का दौर चला। तो अपन ने ऐन वक्त पर अशोका हाल में कुर्सियां घटती-बढ़ती भी देखी। पर इस बार युग ने एक करवट ले ली। सुबह पीएमओ से लिस्ट जारी हो गई। पीएम समेत बीस के नाम थे। साथ में लिखा था- 'जल्द ही एक और शपथ ग्रहण होगा। जिसमें केबिनेट और स्टेट मिनिस्टर होंगे।' लिस्ट को देखते ही अपने कान फिर खड़े हुए। फारुख के बयान और लिस्ट से एक जैसी गंध आई। गंध थी- 'पहले दिन सिर्फ कांग्रेसियों के शपथ ग्रहण की।' पवार और ममता भी पुराने कांग्रेसी। मनमोहन ने वही किया। जो सोनिया गांधी से इशारा हुआ। उनने करुणानिधि-फारुख दोनों को फोन किया। अपन ने कल बताया ही था। मनमोहन का एतराज दो बातों पर। पहला- करुणानिधि के पूरे कुनबे को मंत्री बनाने पर। दूसरा-बालू-राजा पर। दोनों की कई शिकायतें थी। ऐतराज मलाईदार मंत्रालयों पर भी था। अब खबर है- उसी फार्मूले पर सहमति। जिसका खुलासा अपन ने गुरुवार को किया- 'दो केबिनेट एक इंडिपेंडेंट स्टेट मिनिस्टर, तीन स्टेट मिनिस्टर।' साथ में बालू-राजा भी होंगे। वैसे बालू-राजा को रोकने की मनमोहन ने कोशिश तो की। पिछली बार की तरह नहीं। जब पहली ही शपथ में दर्जनभर दागी थे। इस बार मनमोहन ने एक दागी नहीं लिया। लालू-शिबू मुंह ताकते रहे। लालू-शिबू के साथ अर्जुन-ओला भी नहीं आएंगे। यह अपन ने पहले ही लिख दिया था। याद करो- लेफ्ट को साथ लेकर कैसे ब्लैकमेल किया था अर्जुन ने। पर हंसराज भारद्वाज की शपथ नहीं हुई। अपन को बात कुछ हजम नहीं हो रही। अपन अगली शपथ का इंतजार करेंगे। यों अर्जन-भारद्वाज-ओला-पाटिल- महावीर कभी मनमोहन की पसंद नहीं थे। ये सभी पुराने जमाने के पुराने विचारों वाले नेता। यों तो नई केबिनेट में भी साठ से कम उम्र के सिर्फ तीन। आनंद शर्मा, ममता बनर्जी और अपने सीपी जोशी। सत्तर से ऊपर पीएम समेत छह। बाकी पांच- एसएम कृष्णा, बीके हांडिक, वायलार रवि, प्रणव मुखर्जी, मुरली देवड़ा। बाकी सभी ग्यारह मंत्री साठ से सत्तर के बीच। यानी सुलझे हुए नेताओं की केबिनेट। जिसमें छह तो पुराने चीफ मिनिस्टर। अब अगली बारी 'ट्रेनी' मिनिस्टरों की। पर आप पूछेंगे- पहली शपथ ग्रहण में पवार-ममता ही क्यों। तो बता दें- यह सोनिया की रणनीति से हुआ। देश को कांग्रेस के लौट आने का एहसास कराने के लिए। कांग्रेसी वर्करों में जोश पैदा करने के लिए। बताते जाएं- राष्ट्रवादी-तृणमूल कांग्रेस समेत कांग्रेस के 234 सांसद। यही एहसास कराना चाहती हैं सोनिया।

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