पवार को ठिकाने लगाने का नौ पर दो का फार्मूला

Publsihed: 20.May.2009, 04:21

इस बार नौटंकी की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। कोई इमोशनल ब्लैकमेल नहीं। स्क्रिप्ट, डायलाग पहले से तय थे। अपने प्रणव दा ने नाम पेश किया सोनिया का। शुरूआत हुई तो बीस ने नाम पेश किया। बीस ने समर्थन किया। सोनिया चेयरपरसन चुनी गई। तो बाकी काम रहा सोनिया का। उनने मनमोहन को पीएम के लिए नोमीनेट किया। सबने तालियां बजा दी। प्रणव दा लोकसभा में नेता होंगे। मनमोहन लोकसभा के मेंबर नहीं। सोनिया-मनमोहन के भाषण हुए। पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग खत्म। अब चर्चा सरकार की। तो आज यूपीए मीटिंग से शुरूआत होगी। फिर सोनिया-मनमोहन-प्रणव दा महामहिम से मिलेंगे। अपन ने कल लिखा ही था- बाईस मई। तो अब तक 22 मई का ही फैसला। बात सरकार की चली। तो बता दें- मायावती ने बिन मांगा समर्थन दे दिया। माया बाजी मार ले गई। तो मुलायम की धुकधुकी तेज हुई। सो उनने अमर सिंह को सीधे राष्ट्रपति भवन भेज दिया। अमर सिंह कांग्रेस को समर्थन की चिट्ठी दे आए। है ना अजब बात।

समाजवादी संसदीय दल की मीटिंग नहीं हुई। नेता नहीं चुना गया। पर पार्टी जनरल सेक्रेट्री चिट्ठी दे आए। यह है पारिवारिक पार्टियों की डेमोक्रेसी। पर अपन को क्या। कांग्रेसी माया-मुलायम की होड़ पर मुस्कराए। दिग्गी राजा बोले- 'थेंक्यू, बट नो एंट्री इन यूपीए।' सत्ता का चुंबक होता है बहुत पावरफुल। अजित सिंह की बात ही लो। दस साल से कुर्सी की गरमाहट नसीब नहीं हुई। सो एनडीए छोड़ यूपीए में जाने को उतावले। पर दिग्गी राजा ने कहा- 'कांग्रेस में विलय करें पार्टी फिर बात करेंगे।' अजित पर कौन भरोसा करे। कभी थर्डफ्रंट, कभी एनडीए, कभी यूपीए। फिर भी पासवान जैसे नसीब नहीं। जो तेरह साल हर सरकार में मंत्री रहे। जुगाड़ू का जुगाड़ इस बार जनता ने ही तोड़ा। मंत्री पद पाने को लालू भी बेकरार। पर सोनिया का मन नहीं। आप इसी से अंदाज लगाइए। उनने पार्लियामेंट्री पार्टी में कहा- 'खंडित राजनीति के कई साल बाद अब संसद की गरिमा लौटाएंगे। सम्मानजनक बहस होनी चाहिए। लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान बहाल करना जरूरी।' समझदारों को इशारा काफी। सोनिया ने लालू को यूपीए मीटिंग में नहीं बुलाया। यों यूपीए मीटिंग तो आज होगी। पर फारुख, कुमारस्वामी, करुणानिधि मंगल को ही मिल लिए। अपन को हैरानी तो तब हुई। जब अपन ने बाबू लाल मरांडी को दस जनपथ में घुसते देखा। बैकग्राउंड आरएसएस का। वाजपेयी सरकार में मंत्री थे। झारखंड के पहले सीएम बनाए गए थे। आडवाणी ने अर्जुन मुंडा को सीएम बनवाया। तो मरांडी पार्टी छोड़ गए। अब अपनी पार्टी के खुद मुख्तियार। चुनावों में थर्ड फ्रंट के साथ थे। पुराने संघी शंकर सिंह वाघेला चुनाव हार गए। सो मरांडी अपना भाग्य आजमाने दस जनपथ पहुंचे। पर अहम बात करुणानिधि की। यों करुणानिधि की सीटें बढ़ गई। पर इस बार सत्ता की मलाई में हिस्सेदारी घटेगी। कांग्रेसी फार्मूला नौ सांसदों पर एक केबिनेट एक स्टेट मिनिस्टर का। यानी नौ पर दो। सो करुणानिधि के दो केबिनेट, दो स्टेट मंत्री बनेंगे। पर करुणानिधि पुराने भ्रम में, सात मांग ली। बेटे अजगरी, बेटी कन्नीमुरी के साथ नाती दयानिधि मारन का भी नाम। दयानिधि को टेलीकम्युनिकेशन की सिफारिश। बालू को स्पीकर बनवाने की। पर कांग्रेस ने फैसला कर लिया। स्पीकर अब कांग्रेस का होगा। होम, फाइनेंस, फॉरेन, डिफेंस, रेल, कामर्स, टेली कम्युनिकेशन किसी को नहीं। सो लालू पर सोनिया की कृपा हुई भी। तो रेल नहीं। दयानिधि का नंबर लगा भी। तो टेली कम्युनिकेशन नहीं। सोनिया ज्यादा ही मेहरबान हुई। तो एक-आध मंत्री पद ज्यादा मिलेगा। स्पीकर तो कतई नहीं। स्पीकर पद पर वी किशोरचंद्र देव का नंबर। उनने सांसदों की खरीद-फरोख्त वाले मामले को बाखूबी निपटाया। सो ईनाम मिलेगा। पर अपन बात कर रहे थे केबिनेट की। तो 'नौ पर दो' पवार को निपटाने का फार्मूला। एनसीपी नौ सीटें ही जीती। पवार, प्रफुल्ल तो केबिनेट हो नहीं सकते। अब प्रफुल्ल को केबिनेट बनवाएं। तो सुप्रिया सुले स्टेट मिनिस्टर होगी। सोनिया नौ पर दो के फार्मूले पर अड़ी। तो शिबू सोरेन भी निपटेंगे।

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