हाथ मिलाकर अछूत हो गए नीतिश कुमार

Publsihed: 12.May.2009, 05:30

चेन्नई वाली अम्मा की भविष्यवाणी करना आसान नहीं। लखनऊ वाली बहन जी के बारे में भी कुछ नहीं कह सकते। एक बात तय- जिधर करुणानिधि होंगे। उधर जयललिता जयराम अम्मा नहीं होगी। जिधर मुलायम होंगे। उधर बहन मायावती नहीं होंगी। अब मनमोहन सिंह को अम्मा-बहन जी चाहिए। तो सीधा सा रास्ता। करुणानिधि-मुलायम से पिंड छुड़ा लेते। अम्मा ने चुनाव से पहले मौका भी दिया। याद होगा 18 फरवरी का बयान। जब उनने कहा- 'डीएमके डूबता हुआ जहाज। कांग्रेस उसमें बैठी रहेगी। तो डूबेगी ही। सो वक्त रहते डीएमके सरकार से समर्थन वापस ले ले। केंद्र से डीएमके मंत्रियों को भी हटा दे। तभी वोटरों का सामना कर सकेगी कांग्रेस।' यों यह गठबंधन की पेशकश तो नहीं थी। पर इशारा साफ था। कांग्रेस या तो हकीकत नहीं समझी। या इशारा नहीं समझी। वीरप्पा मोइली ने टका सा जवाब देते हुए कहा- 'कांग्रेस-डीएमके गठजोड़ मजबूत।'

चिड़िया के खेत चुग जाने के बाद पछताने का फायदा नहीं होता। पर पांच मई को राहुल बाबा जयललिता को इशारे करने लगे। जवाब का इंतजार किया गया। इंतजार में सोनिया की रैली भी रद्द हुई। पर बहुत देर हो चुकी थी। जयललिता का जवाब नहीं आया। तो सोनिया-मनमोहन-राहुल तीनों तमिलनाडु दौड़े। बीमार पड़े करुणानिधि के साथ फोटू खिंचाए। रैली पर साथ दिखे। यह कांग्रेस की अकलमंदी ही थी। वरना बड़े की उम्मीद में छोटा भी जाता। अब जयललिता का असली रंग दिखने लगा। सोमवार को सोनिया पर करीब-करीब वैसे ही भड़की। जैसे विदेशी मूल पर 1998 में भड़का करती थी। बोली- 'कांग्रेस से गठबंधन का सवाल ही नहीं। मैं अभी चुनाव बाद गठबंधन पर सोच ही नहीं रही। यह सोलह मई के बाद सोचेंगे।' जयललिता का यह बयान रविशंकर प्रसाद को गदगद कर गया। आखिर जयललिता सोलह मई के बाद गठबंधन पर विचार करेगी। लेफ्ट की घिग्गी बंधी होगी। पहले चंद्रशेखर राव गच्चा देकर एनडीए की गोदी में जा बैठे। चुनाव बाद जयललिता के जाने का खतरा। वैसे बात जयललिता की चल ही रही है। तो बता दें- अन्नाद्रमुक-बीजेपी के घोषणापत्रों में कई समानताएं। जैसे राम मंदिर और रामसेतु। सो बीजेपी काफी भरोसेमंद। पर बात चली थी चंद्रशेखर राव की। तो चंद्रबाबू नायडू का कोई बयान नहीं आया। लेफ्ट के पांवों तले से जमीन जरूर खिसकी। चंद्रबाबू की चुप्पी से बीजेपी गदगद। रविशंकर प्रसाद बोले- 'चंद्रबाबू नायडू हमेशा कांग्रेस विरोधी रहे हैं।' बीजेपी के एक नेता ने अपन से कहा- 'बाबू को एसेंबली में बहुमत की उम्मीद नहीं। त्रिशंकु एसेंबली आई। तो टीआरएस के साथ बीजेपी भी मददगार होगी। सो नायडू ने ही चंद्रशेखर राव को भेजा होगा।' यों अपन को यह पहले से पता था- टीआरएस तेलंगाना के लिए बीजेपी के साथ आएगा। चंद्रशेखर राव की आडवाणी से बात भी हुई थी। राहुल का इशारा तो बेकार गया। पर आडवाणी को बिना इशारे ही नए सहयोगी मिलने लगे। राहुल ने एक इशारा नीतिश को भी किया था। पर नीतिश तो एनडीए रैली में नरेंद्र मोदी का हाथ थामकर खड़े हो गए। लालू ने राहुल को ताना मारते हुए कहा- 'हमें तो पहले से नीतिश का सेक्युलरिज्म पता था। कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी को नहीं पता था।' यों वीरप्पा मोइली पहले ही नीतिश के इशारे समझ गए थे। सो उनने वक्त रहते कहा- 'बीजेपी के साथ रहकर नीतिश अपने सेक्युलरिज्म को नुकसान पहुंचा रहे हैं।' इसी बात पर मोइली को चलता किया गया। पर जब मोदी-नीतिश साथ दिखे। तो कांग्रेस में खलबली मची। हफ्तेभर से नीतिश को सेक्युलर होने का सेर्टिफिकेट दे रहे अश्विनी कुमार बोले- 'जनता दल यू सेक्युलर नहीं।' पर जब लगा अब नीतिश नहीं आएंगे। तो असली जवाब उसी लुधियाना में अपने मनमोहन सिंह ने दिया। जब वह बोले- 'मोदी से हाथ मिलाने वाले नीतिश के सेक्युलर होने पर संदेह।'

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