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Exclusive Articles written by Ajay Setia

अब झारखंड का नैतिक दबाव होगा कांग्रेस पर

Publsihed: 08.Sep.2009, 00:25

तो चुनावी बुखार चढ़ने लगा। भले ही शरद पवार पूरी तैयारी कर रहे हों। पर गठबंधन टूटना नहीं। जनार्दन द्विवेदी बता रहे थे- 'बात जारी, गठबंधन होगा।' पवार की अकेले तैयारी का कारण भी बताते जाएं। उनके कान में किसी ने डाल दिया- 'कांग्रेस बात में उलझाकर रखेगी। आखिर में गठबंधन नहीं करेगी।' सो उनकी तैयारी दोनों तरह की। पवार का आंख-कान खोलकर चलना जायज। पर कांग्रेस दिग्गी-सत्यव्रत के कहने पर फैसला नहीं करेगी। अपन को कांग्रेस का एक जनरल सेक्रेट्री बता रहा था- 'महाराष्ट्र कोई यूपी-बिहार नहीं। जो अकेले लड़ लें। यूपी-बिहार में खोने को क्या था। महाराष्ट्र में तो खोने को सत्ता है। यों भी कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना-बीजेपी में टक्कर मुकाबले की। वोट बैंक में कोई ज्यादा फर्क नहीं दोनों गठबंधनों में।'

मुख्यमंत्री पद की दौड़ से स्तब्ध हुई सोनिया

Publsihed: 05.Sep.2009, 05:18

लालकृष्ण आडवाणी भी श्रध्दांजलि देकर लौटे। तो जन सैलाब से अभिभूत थे। आखिर राजशेखर रेड्डी ने आंध्र में करिश्मा न किया होता। तो 2004 में एनडीए सरकार जाती ही नहीं। देर-सबेर आडवाणी पीएम हो जाते। सोनिया गांधी के बहुत करीब थे राजशेखर रेड्डी। पर अपन ने सालों पहले कहीं पढ़ा था- 'मरने वालों के साथ कोई मर नहीं जाता।' जीवन की यह सच्चाई सब जगह लागू नहीं होती। एमजीआर की मौत हुई। तो तमिलनाडु में दर्जनों ने आत्महत्या की। कन्नड़ हीरो राजकुमार का अपहरण हुआ। तो कर्नाटक में कई दीवाने जल मरे। अब ऐसी ही खबरें राजशेखर रेड्डी के दीवानों की। अपन राजशेखर रेड्डी के पुराने इतिहास पर नहीं जाते। इतिहास में सफेद हो तो काला भी होगा। पर आज बात सिर्फ सफेद की। राजशेखर के पास पहुंचकर कोई कभी खाली हाथ नहीं लौटा। अगर कोई कालेज में एडमिशन के लिए भी गया। तो सिर्फ सिफारिश हल नहीं होता था।

गुड गवर्नेंस के जनूनी सीएम का ऐसे चले जाना

Publsihed: 03.Sep.2009, 21:29

बात स्पीड हादसों की। कुछ सड़क हादसे। तो कुछ हवाई हादसे। दो नेता तो ट्रेन में कत्ल कर दिए गए। दीन दयाल उपाध्याय तब जनसंघ के अध्यक्ष थे। ललित नारायण मिश्र तो तब खुद रेलमंत्री थे। राजेश पायलट, साहिब सिंह वर्मा सड़क पर स्पीड के सवार शिकार हुए। तो संजय गांधी, माधवराव सिंधिया, बालयोगी, ओपी जिंदल-सुरेंद्र सिंह हवाई हादसों के। अब राजशेखर रेड्डी। राजेश पायलट खुद की स्पीड ड्राइविंग का शिकार हुए। तो राजशेखर भी गुड गवर्नेंस के जुनून का शिकार हुए। बुधवार को वह हेलीकाप्टर पर चढ़े। तो मौसम ठीक नहीं था। बारीश हो रही थी। सीएम हवाई दौरे पर जा रहे होंगे। तो मौसम विभाग से पूछताछ जरूर हुई होगी। पर राजशेखर ने दौरे पर निकलना ठान लिया। दौरे पर निकलने से ठीक पहले उनने कहा- 'मैं हर महीने दो-तीन गांवों में अचानक जाया करूंगा। देखूंगा सरकारी योजनाओं पर जमीनी अमल कितना?' यह था गुड गवर्नेंस का जनून।

करनूल के जंगलों में सीएम का हेलीकाप्टर गायब

Publsihed: 03.Sep.2009, 10:28

हड़कंप मचना ही था। आंध्र के सीएम राजशेखर रेड्डी का हेलीकाप्टर लापता हो गया। वाईएस राजशेखर रेड्डी से अपनी पहली मुलाकात शिमला में हुई। मौका था- कांग्रेस कनक्लेव। जब आठ जुलाई 2003 को अपनी मुलाकात हुई। तो वह उनका जन्मदिन था। उस दिन 54 साल के हुए थे राजशेखर। मुलाकात शिमला के उस होटल में हुई। जहां वह ठहरे हुए थे। राजशेखर की राजनीतिक किस्मत तब जागी। जब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनी। बीस साल तक बागी कांग्रेसी के तौर पर जाने गए राजशेखर। चेन्ना रेड्डी, जनार्दन रेड्डी, विजय भास्कर रेड्डी सभी के बागी। सो अस्सी से तिरासी के तीन साल ही मंत्री रह पाए। यों पांच बार एमएलए और चार बार एमपी बने। सोनिया कांग्रेस की अध्यक्ष बनी। तब जाकर 1998 में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने। हालांकि कईयों ने इसकी वजह राजशेखर का ईसाई होना माना। पर राजशेखर ने अपनी काबिलियत साबित की।

अब दोनों गठबंधनों को फिक्र चुनावों की

Publsihed: 01.Sep.2009, 20:57

तो बीजेपी में शांति लौटने लगी। वसुंधरा ने बुखार के बहाने गच्चा दिया। तो भी राजनाथ सिंह का पारा नहीं चढ़ा। यों राजनाथ सिंह अब किनारे। वैसे पहले ही खुद पिक्चर में न आते। तो वसुंधरा भी खम न ठोकती। जैसे अब वेंकैया नायडू को सौंपा। सो वसुंधरा को ठीक होने तक मोहलत। यह बात सुनी। तो अपन को अजीत जोगी का किस्सा याद आया। बात पिछली लोकसभा की। छत्तीसगढ़ एसेंबली के चुनाव हुए। तो जोगी को सरकार बनने की उम्मीद थी। सो उनने एसेंबली चुनाव लड़ लिया। पर सरकार नहीं बनी। तो लोकसभा में रहने का इरादा था। पर सोनिया चाहती थी- एसेंबली में जाएं। जोगी अस्पताल में भर्ती हो गए। यही गलती कर दी उनने। पंद्रह दिन बाद लोकसभा की मेंबरशिप खत्म हो गई। जोगी की चालाकी काम नहीं आई। पर यह बात वसुंधरा पर लागू नहीं होगी। यह एसेंबली या लोकसभा का नहीं। अलबत्ता पार्टी का अंदरूनी मामला।

आडवाणी की रवानगी वाली 'ब्रेकिंग न्यूज' की कपाल क्रिया

Publsihed: 01.Sep.2009, 04:16

अपन को पहले भी कोई भ्रम नहीं था। भ्रम तो उनको था। जो पांच दिन से भ्रम फैलाते रहे। अपन ने तो चार जून को ही दो टूक लिख दिया था- 'राजनाथ-आडवाणी-अरुण की तिकड़ी छह महीने ही।' अपन कुछ ज्यादा कहें। तो अच्छा नहीं लगता। पर पिछले पांच दिन विजुअल मीडिया ने जो कहा। जरा कमरा बंद करके अपनी सीडी दुबारा देख लें। लिखाड़ भी अपना लिखा-छपा दुबारा पढ़ लें। राजनाथ से तुरत-फुरत इस्तीफे की उम्मीद लगाए बैठे थे। आडवाणी की तो उल्टी गिनती शुरू कर दी थी। पर न ऐसा होना था, न हुआ। अब आपको बता दें- इतना बवाल मचा क्यों। मोहन भागवत की प्रेस कांफ्रेंस का ऐलान हुआ। तो बीजेपी बीट वालों को लगा- 'भागवत ने शौरी का कहा मान लिया। अब चलाएंगे चाबुक।' यों भागवत की जगह सुदर्शन होते। तो इतने राजनीतिक सवालों का जवाब ही न देते।

जूतम-पैजार के 'मंथन' से निकला जूतम-पैजार

Publsihed: 21.Aug.2009, 10:05

बीजेपी के दिन अच्छे नहीं। वरना चिंतन-मंथन बैठक का ऐसा बंटाधार न होता। गए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास। इरादा था- हार के कारणों का मंथन करें। पार्टी में सुधार के बारे में चिंतन करें। पर गुटबाजी खत्म होने का सवाल ही नहीं। गोपीनाथ मुंडे ने मुंबई में मंथन से इंकार करके अच्छा ही किया। वरना महाराष्ट्र में चुनावी माहौल का वैसा ही बाजा बजता। जैसा शरद पवार-दिग्विजय की बयानबाजी से कांग्रेस-एनसीपी का। दिग्विजय सिंह ने फिर कहा- 'एनसीपी का कांग्रेस में विलय हो जाना चाहिए।' इस बार झल्लाकर शरद पवार बोले- 'अगर मैं कहूं, कांग्रेस का एनसीपी में विलय हो जाए। तो कैसा रहेगा।'

निकले, तो बड़े बेआबरू होकर बीजेपी से निकले

Publsihed: 20.Aug.2009, 10:11

शिमला में रिज के पीछे से सड़क जाती है जाखू। जाखू हनुमान का प्राचीन मंदिर। कहावत है- लक्ष्मण मूर्छित हुए। लंका के वैद्य सुशैन ने हिमालय से बूटी लाने को कहा। तो पवनपुत्र समुद्र किनारे से चलकर यहीं आकर रुके थे। बुधवार को जसवंत सिंह बीजेपी से निकाले गए। तो उनने खुद को हनुमान कहा। बोले- 'मुझे पार्टी के हनुमान से रावण बना दिया गया।' जाखू मंदिर के कारण ही खुद को हनुमान समझ बैठे होंगे जसवंत। बुधवार को बीजेपी की चिंतन बैठक शुरू होनी थी। यों हार के तीन महीने बाद चिंतन का क्या मतलब। चिंतन पहले मुंबई में होना था। फिर शिमला तय हुआ। पर चिंतन से पहले नई चिंताओं ने घेर लिया बीजेपी को।

वाजपेयी को ढाल बनाकर पतली गली से निकले पीएम

Publsihed: 29.Jul.2009, 21:03

यों तो मनमोहन पर भारी पड़े यशवंत सिन्हा। सिन्हा ही क्यों। मुलायम और शरद यादव भी। याद है गिलानी के साथ साझा बयान। अपन ने तेईस जुलाई को लिखा था- 'देखते हैं 29 जुलाई को संसद में क्या जवाब देते हैं मनमोहन।' सो 29 जुलाई को विदेशनीति पर बहस भी हो गई। मनमोहन का जवाब भी हो गया। विपक्ष भले सहमत नहीं हुआ। संतुष्ट भी नहीं हुआ। पर पिछली बार की तरह वाकआउट भी नहीं हुआ। भले मनमोहन बाहर जाकर कूटनीति में हार गए। पर यहां बैक डोर डिप्लोमेसी काम कर गई। वरना पीएम के इतने लच्चर जवाब पर वाकआउट न हो। अपन को हजम नहीं हुआ। कहां तो मुलायम कह रहे थे- 'जो गलती कर आए हो। जो दस्तखत कर आए हो। उसे कूड़ेदान में फेंकिए।' कहां शरद यादव कह रहे थे- 'आपने बलूचिस्तान का जिक्र ही क्यों किया। आपने 26 नवंबर के बाद बनी राजनीतिक सहमति क्यों तोड़ी।' यशवंत सिन्हा ने तो खिंचाई की कोई कसर नहीं छोड़ी।

राजनैतिक से नैतिकता विहीन राजनीति तक

Publsihed: 29.Jul.2009, 09:40

पहले बात अपनी दो खबरों की। अपन ने 24 जुलाई को लिखा था- 'सरकार कूटनीति में पैदल, राहुल राजनीति में मस्त।' तो अपन ने उसमें लिखा था- 'राहुल ने चिदंबरम को मेमोरेंडम दिया। अब 28 या 29 को मनमोहन सिंह को भी देंगे।' तो 28 जुलाई को राहुल की हो गई मनमोहन से मुलाकात। यूपी के सारे एमपी-एमएलए साथ थे। मायावती की जमकर शिकायतें हुई। अब बात दूसरी खबर की। तो अपन ने 17 जुलाई को लिखा था- 'साझा बयान में हाफिज सईद का जिक्र तक नहीं। अब पाक की सुप्रीम कोर्ट से बरी होंगे। तो पाक बेशर्मी से कहेगा- अदालतें तो सरकार के बस में नहीं।' आखिर वही हुआ। अदालत के सिर ठीकरा फोड़ना तो दूर की बात।